Edited By ,Updated: 07 Aug, 2023 05:00 AM
हम अक्सर भारत विरोधी गतिविधियों के लिए पाकिस्तान को कोसते रहते हैं पर अब हमें असली खतरा तो चीन से है क्योंकि उसके अपने देश में हालात ठीक न होने के कारण लोगों का ध्यान हटाने के लिए वहां के शासक तरह-तरह के हथकंडे अपनाते रहते हैं। हाल ही के दिनों में...
हम अक्सर भारत विरोधी गतिविधियों के लिए पाकिस्तान को कोसते रहते हैं पर अब हमें असली खतरा तो चीन से है क्योंकि उसके अपने देश में हालात ठीक न होने के कारण लोगों का ध्यान हटाने के लिए वहां के शासक तरह-तरह के हथकंडे अपनाते रहते हैं। हाल ही के दिनों में कुछ बातेेंं हुई हैं, पहली यह कि चीन ने गत एक महीने में अपने दो जरनैलों को बदल दिया है और दूसरा उसके आसपास जो 14 देश हैं, अब उनमें से केवल 2 देशों भारत और भूटान के साथ उसके सीमा विवाद हैं। अन्य देशों के साथ उसने अपने विवाद सुलझा लिए हैं।
चीन के शासक भारत को ऐसे देश के रूप में देखते हैं जो एशिया में उसका मुकाबला कर सकता है। इसीलिए वे भारत को अपने लिए खतरा महसूस करने के कारण उसे विवादों में उलझाए रखना चाहते हैं और इसी शृंखला में चीन के शासकों ने दूसरे देशों में अपने ठिकाने बना रहे हैं। चीन का अफ्रीका से आने वाला कच्चा माल हिंद महासागर के रास्ते से गुजरता है। ऐसे में उसके लिए विभिन्न देशों में बंदरगाह बनाना जरूरी हो गया है लेकिन भारत ऐसा नहीं चाहता क्योंकि ऐसा होने से भारत के नजदीकी क्षेत्रों में चीन की दखलअंदाजी बढ़ जाएगी।
चीन द्वारा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किए जा रहे निर्माण कार्यों का विश्लेषण करने पर पता चला है कि चीन ने वर्ष 2000 से 2021 के मध्य तक दुनिया भर के 46 देशों में 78 बंदरगाहों पर 29.9 बिलियन डालर की लागत से 123 सी पोर्ट प्रोजैक्टों का निर्माण किया है। चीन ने जिन देशों में यह काम किया उनकी आर्थिक हालत बहुत अच्छी नहीं है। चीन की कम्पनियां इन देशों में विदेशी सहायता के रूप में अथवा निवेश के रूप में बंदरगाहों पर निर्माण कर रही हैं जिसका उद्देश्य युद्ध अथवा शांति की स्थिति में इनका इस्तेमाल करना है।
चीन दुनिया भर के आठ देशों की बंदरगाहों पर नजर गड़ाए हुए है। इनमें श्रीलंका सबसे ऊपर है। चीन ने हिंद महासागर में स्थित श्रीलंकाई बंदरगाह हंबनटोटा में 2 बिलियन डालर से ज्यादा का निवेश किया है, जो किसी भी अन्य बंदरगाह से काफी अधिक है। भारत को घेरने के लिए पाकिस्तान की ग्वादर बंदरगाह को आर्थिक गलियारे की अपनी नीति के तहत चीन विकसित कर रहा है, जबकि चीनी युद्धपोत पहले से ही पाकिस्तान में मौजूद हैं। इसके साथ ही पाकिस्तानी नौसेना चीनी हथियारों की सबसे बड़ी विदेशी खरीदार बन गई है। कैमरून की क्रिबी बंदरगाह पर भी चीन ने हंबनटोटा बंदरगाह जितना निवेश किया है। क्रिबी डीप सीपोर्ट कैमरून का निर्माण चीनी कम्पनी द्वारा किया गया है।
चीन ने कंबोडिया के रीम नेवल बेस पर बहुत बड़ी संख्या में इंफ्रास्ट्रक्चर को डिवैल्प किया है। इसमें नौसैनिकों के रहने के लिए आवास, नई आफिस बिल्डिंग, एयर डिफैंस मिसाइल बेस, ड्राई डैक और युद्धपोतों को ठहरने के लिए पहले से बड़ी जेट्टी शामिल हैं। रीम नेवल बेस को सबसे पहले अमरीका ने बनाया था लेकिन 2019 में कंबोडियाई सरकार ने कर्ज के बदले इसे चीन को सौंप दिया। यह नेवल बेस बंगाल की खाड़ी में मौजूद भारतीय सैन्य अड्डा अंडमान और निकोबार से सिर्फ 1200 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। ऐसे में हिंद महासागर में भारत की चिंता बढ़ सकती है। वानूआतू लुगानविले बंदरगाह को विकसित करने के लिए चीन ने 97 बिलियन डालर का निवेश किया है जो विश्व की 30 सबसे बड़ी इंवैस्टमैंट में से एक है।
चीन ने मोजाम्बिक की दो बंदरगाहों नकाला और बेइरा में निवेश किया है। बड़े युद्धपोतों के लिए बेइरा संभवत: कम उपयुक्त बंदरगाह है क्योंकि युद्धपोतों के लिए नियमित ड्रैङ्क्षगग की आवश्यकता होती है जबकि नकाला सबसे अधिक उपयुक्त है। इसमें बड़े पैमाने पर चीनी निवेश देखा गया है और यह एक गहरे पानी की बंदरगाह है। चीन का कानून इस बात की अनुमति देता है कि यदि उसकी जल सेना को किसी भी स्थिति में सिविलियन बंदरगाहों की जरूरत पड़े तो वह उसका इस्तेमाल कर सकती है। अब यह भारत सरकार को सोचना है कि चीन की ओर से पैदा हो रहे इस खतरे से कैसे निपटना है। इस निवेश के जरिए न सिर्फ वह इन देशों के साथ अपने रिश्ते मजबूत कर रहा है बल्कि इन देशों की बंदरगाहों का रणनीतिक इस्तेमाल करने का रास्ता भी खोल रहा है।