चारा घोटाले के चौथे मामले में भी लालू को 14 वर्ष कैद

Edited By Punjab Kesari,Updated: 25 Mar, 2018 02:41 AM

lalu gets 14 years in the fourth case of fodder scam

लालू यादव एक निर्धन परिवार से उठ कर राजनीति में उच्च शिखर पर पहुंचे। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के सुप्रीमो के रूप में अपने लम्बे राजनीतिक सफर के दौरान वह केंद्र में पूरे 5 साल रेल मंत्री रहने के अलावा 3 बार बिहार के मुख्यमंत्री भी रहे। 21 वर्ष पूर्व...

लालू यादव एक निर्धन परिवार से उठ कर राजनीति में उच्च शिखर पर पहुंचे। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के सुप्रीमो के रूप में अपने लम्बे राजनीतिक सफर के दौरान वह केंद्र में पूरे 5 साल रेल मंत्री रहने के अलावा 3 बार बिहार के मुख्यमंत्री भी रहे। 

21 वर्ष पूर्व लालू के बिहार के मुख्यमंत्री काल के दौरान 1997 में सामने आए 950 करोड़ रुपए के घोटाले ने बिहार की राजनीति में भूचाल ला दिया जब चाईबासा के तत्कालीन उपायुक्त अमित खरे द्वारा पशु पालन विभाग के दफ्तरों पर मारे गए छापों में मिले दस्तावेजों से पता चला कि 1990 के दशक में ऐसी कम्पनियों को सरकारी खजाने से चारा आपूर्ति के नाम पर पैसे जारी किए गए जो थीं ही नहीं। इस घोटाले में संलिप्तता के चलते लालू को मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र देना पड़ा। मई, 1996 में सी.बी.आई. को पटना हाईकोर्ट ने इस मामले की जांच का आदेश दिया जिस पर सुप्रीमकोर्ट ने भी मोहर लगा दी। 

मई, 1997 में सी.बी.आई. ने लालू के विरुद्ध मुकद्दमा चलाने के लिए बिहार के राज्यपाल से औपचारिक अनुरोध किया और जून, 1997 में राज्यपाल की अनुमति मिलने के बाद 23 जून को सी.बी.आई. ने आरोप पत्र दायर किया जिसमें 55 लोगों को आरोपी बनाया गया। 2001 में नया राज्य बनने के बाद सुप्रीमकोर्ट ने यह मामला झारखंड को ट्रांसफर कर दिया जहां रांची की विशेष सी.बी.आई. अदालत में इस मामले की सुनवाई शुरू हुई। सी.बी.आई. अदालत द्वारा 1 मार्च, 2012 को लालू, पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र व अन्य पर आरोप तय करने के बाद लालू के विरुद्ध चारा घोटाले से जुड़े कुल 5 मामलों में रांची में मुकद्दमे चल रहे थे। 

03 अक्तूबर, 2013 को चाईबासा खजाने से अवैध निकासी से जुड़े चारा घोटाले के एक मामले में लालू को 5 साल और जगन्नाथ मिश्र को 4 साल की सजा सुनाई गई। लालू की लोकसभा की सदस्यता समाप्त हो गई और सजा पूरी होने के 6 साल बाद तक उनके चुनाव लडऩे पर रोक लगा दी गई। 06 जनवरी, 2018 को चारा घोटाले के दूसरे मामले में लालू को  3.5 साल की सजा सुनाई गई। 1990 से 1994 के बीच देवघर कोषागार से फर्जीवाड़ा कर अवैध ढंग से पशु चारे के नाम पर निकासी के इस मामले में लालू यादव पर आरोप है कि उन्होंने साजिश रचने वालों को बचाने की कोशिश की। सी.बी.आई. का कहना था कि लालू यादव को गबन के बारे में पता था फिर भी उन्होंने इस लूट को नहीं रोका। 

24 जनवरी, 2018 को चारा घोटाले के तीसरे और 35 करोड़ 62 लाख रुपए के गबन के चाईबासा कोषागार से संबंधित मामले में भी लालू को दोषी करार दिया गया और 5 साल कैद की सजा सुनाई गई। और अब 24 मार्च को रांची न्यायालय में सी.बी.आई. के विशेष न्यायाधीश शिवपाल सिंह की अदालत ने उक्त घोटाले के दुमका कोषागार मामले में लालू यादव को 3 करोड़ 13 लाख रुपए गबन का दोषी ठहराते हुए विभिन्न धाराओं के अंतर्गत 14 वर्ष की सश्रम जेल और साथ ही 60 लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया। जुर्माना नहीं देने पर उन्हें 2 साल की और सजा भुगतनी होगी। इसके साथ ही अदालत ने इस मामले में लालू सहित सभी आरोपियों द्वारा 1990 के बाद से अर्जित सभी सम्पत्तियों की जांच करने और उनकी जब्ती की कार्रवाई के निर्देश भी दिए हैं। 

चारा घोटाले से जुड़े मामलों में लालू को मिली यह सबसे बड़ी सजा है। इस मामले में लालू यादव को 19 मार्च को दोषी करार दिया गया था। सी.बी.आई. के विशेष न्यायाधीश शिवपाल सिंह की अदालत पिछले कई दिनों से सजा के बिंदुओं पर लगातार सुनवाई कर रही थी तथा इस मामले में भी अदालत ने उन्हें आपराधिक भ्रष्टाचार का दोषी पाया। फिलहाल लालू यादव चारा घोटाले के विभिन्न मामलों में रांची की बिरसा मुंडा जेल में बंद हैं और उन्हें हाईकोर्ट से इन मामलों में अब तक राहत नहीं मिल सकी। लालू यादव के विरुद्ध चारा घोटाले से संबंधित एक और मामले में भी जल्द फैसला आ सकता है और लालू प्रसाद की मुश्किलें अभी और बढ़ सकती हैं। चारा इतना चर गए, पहुंच गए हैं जेल, सजा पे सजा भुगत रहे, मिलनी मुश्किल बेल।—विजय कुमार 

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