Edited By ,Updated: 31 Jul, 2023 04:06 AM
छोड़ो मेहंदी खड्ग संभालो, खुद ही अपना चीर बचा लो,
द्यूत बिछाए बैठे शकुनि, मस्तक सब बिक जाएंगे,
सुनो द्रौपदी शस्त्र उठा लो, अब गोविंद न आएंगे।
छोड़ो मेहंदी खड्ग संभालो, खुद ही अपना चीर बचा लो,
द्यूत बिछाए बैठे शकुनि, मस्तक सब बिक जाएंगे,
सुनो द्रौपदी शस्त्र उठा लो, अब गोविंद न आएंगे।
यह पुकार हिंसक होने की नहीं बल्कि न्याय के लिए खड़े होने की है। उक्त पंक्तियां लिखते समय कवि पुष्यमित्र उपाध्याय ने शायद भविष्य में होने वाली घटनाओं को भांप लिया था कि द्वापर युग में तो द्रौपदी की लाज बचाने सत्य, न्याय और निर्बल का बल कहलाने वाले गोविंद (श्री कृष्ण) आ गए परंतु गोविंद जैसे गुण आज किसमें देखने को मिलते हैं!
28 जुलाई को नई दिल्ली में शादी टूटने और फिर दोस्ती से इंकार करने पर गुस्साए इरफान नामक युवक ने नर्गिस नामक युवती की सिर पर लोहे की छड़ मार कर दिन दिहाड़े हत्या कर दी। इरफान कई दिनों से नर्गिस से मिलने की कोशिश कर रहा था लेकिन नर्गिस नहीं मिलती थी। घटना के दिन जब वह एक पार्क में बैठी थी तभी उसकी इरफान ने हत्या कर दी। वहीं 29 जुलाई को चेन्नई पुलिस ने एक आदतन अपराधी को गिरफ्तार किया है जिसने सड़कों पर 100 से अधिक महिलाओं को छेड़ा था।
इससे पहले 20 जून को दिल्ली में एक 10 वर्षीय बच्ची के साथ, 30 अप्रैल को कल्याणपुरी में घर के बाहर गली में खेल रही नाबालिग से तथा 4 फरवरी को 3 वर्ष की बच्ची से गैंगरेप की घटनाएं हुईं। ये तो चंद उदाहरण मात्र हैं इसके अलावा भी न जाने कितनी अबलाएं राजधानी और देश के दूसरे हिस्सों में दरिंदगी का रोज शिकार हो रही हैं और जहां तक मणिपुर का सवाल है तो यह घिनौना अध्याय अभी भी जारी है। यदि हम पीछे मुड़ कर देखें तो 16 दिसम्बर, 2012 को दिल्ली में ‘निर्भया’ को न्याय दिलवाने के लिए देश भर में लोग उठ खड़े हुए थे। कई दिनों तक राजधानी दिल्ली और देश के विभिन्न हिस्सों में प्रदर्शन होते रहे। लोगों ने राष्ट्रपति भवन के बाहर भी प्रदर्शन किया और तत्कालीन प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को भी घेर लिया था। सभी लोगों की जुबान और टी.वी. चैनलों पर उसी एक केस की चर्चा थी। निर्भया कांड के 3 महीनों के भीतर ही केंद्र सरकार ने नया कानून भी बना दिया तो आशा बंधी थी कि इससे महिलाओं के विरुद्ध अपराध घटेंगे परंतु ऐसा नहीं हुआ तथा अब हर चीज बदल गई है।
अब न तो कभी उस तरह का कोई प्रदर्शन किसी घटना के विरुद्ध हुआ और न ही किसी ने मणिपुर, बंगाल, राजस्थान और अन्य स्थानों पर महिलाओं के विरुद्ध हुए भयावह अत्याचारों के विरुद्ध उतनी तीव्रता से आवाज उठाई जिसके परिणामस्वरूप महिलाओं के विरुद्ध दरिंदगी लगातार जारी है। देश की जनता अब दूसरी बातों में ही उलझ कर रह गई है। ऐसे हालात में शायद हमारी सोच यह बन गई है कि ऐसा दूसरी जगहों पर भी हो रहा है, इसलिए होने दो और कुछ नहीं हुआ समझ कर भूल जाओ। तो क्या हम गणित का कोई प्रश्र हल कर रहे हैं जिसमें 2 नैगेटिव मिल कर एक पॉजिटिव बन जाता है? क्या हम बलात्कार जैसे मामले पर भी यही फार्मूला लागू करेंगे कि चूंकि किसी दूसरे को भी पीड़ा पहुंचाई गई है इसलिए यदि तुम्हारे साथ भी ऐसा हो गया तो कोई बात नहीं।
दूसरी बात यह है कि क्या हम आज भी उसी दौर में जी रहे हैं कि हम लड़की के साथ कुछ गलत होने का औचित्य यह कह कर ठहराएं कि उसने सही कपड़े नहीं पहने थे या वह घर से बाहर निकली इसलिए उसके साथ ऐसा हो गया। क्या हम अपने समाज को या लड़कों को यह नहीं सिखा सकते कि यदि तुमने किसी लड़की पर गलत नजर डाली या तुमने उसके साथ गलत व्यवहार किया तो तुम्हें जल्द से जल्द कड़ी सजा दिलवाई जाएगी। क्या हम लड़कों को उनकी सामाजिक और कानूनी सीमाएं नहीं सिखा सकते?
आज नारी जाति की रक्षा के लिए न ही केंद्र और राज्य सरकारें, पुलिस और न ही न्यायपालिका आगे आ रही है। ऐसा प्रतीत होता है कि सामाजिक कार्यकत्र्ताओं के दिलों में भी दया और ममता नहीं रही जिससे सहज ही प्रश्न उठता है कि ऐसे हालात में क्या हमें अपनी बच्चियों को स्कूल और कालेजों में मार्शल आर्ट सिखाना शुरू नहीं कर देना चाहिए ताकि वे कम से कम अपनी इज्जत तो संभाल सकें क्योंकि वर्तमान हालात में कोई दूसरा रास्ता तो उनकी सुरक्षा के लिए आगे नजर नहीं आता।