‘टाइम बम’ के समान हैं लगातार ऊंचे होते जा रहे कूड़े के पहाड़

Edited By Pardeep,Updated: 02 Apr, 2018 02:07 AM

similar to the time bomb the mountain of litter becoming increasingly high

एक अध्ययन के अनुसार भारत विश्व में कूड़े का सबसे बड़ा ‘उत्पादक’ बनने की दिशा में तेजी से बढ़ रहा है और वर्ष 2047 तक यहां कूड़े का ‘उत्पादन’ पांच गुणा बढ़ जाएगा। देश में कूड़ा प्रबंधन (वेस्ट मैनेजमैंट) बहुत बड़ी समस्या बन चुका है तथा अधिकांश शहरों...

एक अध्ययन के अनुसार भारत विश्व में कूड़े का सबसे बड़ा ‘उत्पादक’ बनने की दिशा में तेजी से बढ़ रहा है और वर्ष 2047 तक यहां कूड़े का ‘उत्पादन’ पांच गुणा बढ़ जाएगा। देश में कूड़ा प्रबंधन (वेस्ट मैनेजमैंट) बहुत बड़ी समस्या बन चुका है तथा अधिकांश शहरों में लगे अशोधित कूड़े के ढेर स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बनते जा रहे हैं। 

भारत में असंतोषजनक कूड़ा प्रबंधन 22 बीमारियों का कारण बनता है। एन.जी.ओ. ‘सैंटर फार साइंस एंड एनवायरनमैंट’ की निदेशक सुनीता नारायण ने भी चेतावनी दी है कि ‘‘हम अपने ही मल-मूत्र में डूबते जा रहे हैं।’’ वर्ष 2014-15 में देश में 514 लाख टन ठोस कूड़ा निकला था जिसमें से एकत्रित 91 प्रतिशत कूड़े में से मात्र 27 प्रतिशत का ही निपटारा किया गया और शेष 73 प्रतिशत को डम्पिंग साइट्स में दबा दिया गया। इसमें बड़ी मात्रा जमीन के नीचे इसकी उपजाऊ शक्ति को प्रभावित कर उसे प्रदूषित करने वाले पालीथीन की थी। पारम्परिक तरल और ठोस कूड़े के अलावा ‘प्लास्टिक कूड़ा’ और ‘ई-कूड़ा’ भी बड़ी समस्या का रूप धारण कर गया है तथा इस स्थिति में सुधार के कोई संकेत नजर नहीं आते। 

देश के विभिन्न भागों में उभर रहे कूड़े के पहाड़ कितना बड़ा खतरा बनते जा रहे हैं, यह इसी से स्पष्टï है कि गत वर्ष 2 सितम्बर को पूर्वी दिल्ली के गाजीपुर के पास धमाके के साथ कूड़े का पहाड़ ढहने से उसके निकट से गुजर रहे 2 लोगों की उसके नीचे दब जाने से मृत्यु हो गई और सड़क पर गुजर रही 5 गाडिय़ां भी ‘कौंडली नहर’ में गिर गईं। 26 मार्च को मुम्बई में देवनार के कूड़ा डम्पिंग क्षेत्र में एकत्रित कूड़े में भीषण आग लग गई जो बड़ी मशक्कत के बाद 28 मार्च को बुझाई जा सकी। इसी प्रकार जालंधर के निकट मोहल्ला चो गिट्टी में कूड़े के ढेर को भीषण आग लगी। इनके अलावा भी देश के अन्य हिस्सों में इसी कारण या कूड़े में आग लगने से दुर्घटनाएं होती रहती हैं और अब तो कूड़ा प्रबंधन में अपराधपूर्ण लापरवाही का मामला सुप्रीमकोर्ट तक पहुंच गया है। 27 मार्च को देश में ठोस कूड़ा प्रबंधन संबंधी नियमों को लागू न करने पर सुप्रीमकोर्ट ने घोर आपत्ति व्यक्त करते हुए चेतावनी दी कि, ‘‘एक दिन भारत कूड़े के ढेरों के नीचे दब जाएगा।’’ 

माननीय न्यायाधीशों एम.बी. लोकुर तथा दीपक गुप्ता पर आधारित पीठ ने कहा कि, ‘‘वह दिन दूर नहीं जब दिल्ली का गाजीपुर स्थित कूड़ा संग्रहण क्षेत्र कुतुबमीनार की 78 मीटर ऊंचाई की बराबरी कर लेगा और विमानों को इससे दूर रखने के लिए लाल बत्तियां लगानी पड़ेंगी।’’ ‘‘हमारे बार-बार आदेश पारित करने के बावजूद ठोस कूड़ा प्रबंधन संबंधी नियमों को लागू नहीं किया जा रहा। यदि किसी को आदेशों का पालन करने की फिक्र ही नहीं है तो फिर इन्हें जारी करने का लाभ ही क्या है।’’ इसके साथ ही शीर्ष न्यायालय ने सभी राज्यों और केंद्र शासित क्षेत्रों को तीन महीनों में ठोस कूड़ा प्रबंधन संबंधी नीति बनाने का आदेश दिया है। 

‘एमीकस क्यूरी’ के रूप में न्यायालय की सहायता कर रहे वरिष्ठï एडवोकेट कोलिन गोंसाल्वेस ने कहा कि ‘‘ठोस कूड़ा प्रबंधन संबंधी नियम बहुत स्पष्टï एवं व्यापक हैं। न्यायालय को देश के सभी स्थानीय निकायों को 3-4 महीने के भीतर इन्हें लागू करने का आदेश देना चाहिए और यदि वे ऐसा करने में विफल रहें तो उन्हें अदालत की मानहानि के लिए जिम्मेदार ठहराया जाए।’’ इस अवसर पर एडीशनल सोलिसीटर जनरल ए.एन.एस. नाडकर्णी ने कहा कि, ‘‘कूड़े के ढेर एक टाइम बम के समान हैं जिन पर हम बैठे हैं। अत: न्यायालय कूड़ा प्रबंधन संबंधी नियम लागू करने का आदेश दे।’’ 

जहां स्वास्थ्य के लिए खतरा बन रहे कूड़े के निपटारे के लिए सुप्रीमकोर्ट का नीति बनाने संबंधी आदेश सराहनीय है, वहीं विशेषज्ञों के अनुसार देश में जमा होने वाले कूड़े से बिजली उत्पादन तथा पैकिंग में इस्तेमाल होने वाली सामग्री का निर्माण करके अर्थिक लाभ भी उठाया जा सकता है। कूड़ा निपटान संबंधी सही राष्ट्रीय नीति निर्धारण पर तेजी से कार्यान्वयन तथा शोधन द्वारा इसके विभिन्न रूपों में उपयोग से जहां देश में कूड़े के कारण होने वाली दुर्घटनाओं को रोका जा सकता है, वहीं अर्थिक लाभ के साथ-साथ पर्यावरण को होने वाली क्षति को भी टाला जा सकता है।—विजय कुमार 

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