समाज में ‘व्याप्त बुराइयां’ दूर करने के लिए आगे आ रहे कुछ ‘समाज सेवी समूह’

Edited By ,Updated: 09 Feb, 2019 03:33 AM

some of the  social sevi groups  coming forward to remove the  evils

शादी-विवाहों में दहेज का लेन-देन, मृत्यु भोज और शराब का सेवन आदि ऐसी बुराइयां हैं जिनसे बड़ी संख्या में परिवार तबाह हो रहे हैं। जहां शादी पर दहेज देने की मजबूरी में अनेक परिवार कर्ज में डूब जाते हैं वहीं किसी परिजन की मृत्यु पर दिए जाने वाले मृत्यु...

शादी-विवाहों में दहेज का लेन-देन, मृत्यु भोज और शराब का सेवन आदि ऐसी बुराइयां हैं जिनसे बड़ी संख्या में परिवार तबाह हो रहे हैं। जहां शादी पर दहेज देने की मजबूरी में अनेक परिवार कर्ज में डूब जाते हैं वहीं किसी परिजन की मृत्यु पर दिए जाने वाले मृत्यु भोज से भी शोक संतप्त परिवार पर भारी अनावश्यक आर्थिक बोझ पड़ता है। इसी प्रकार शराब के सेवन से भी बड़ी संख्या में परिवार तबाह हो रहे हैं।

इसी को देखते हुए अब कुछ लोग और समाज सेवी समूह इन बुराइयों के विरुद्ध खड़े हो रहे हैं जिसके कुछ उदाहरण हाल में सामने आए हैं : 20 जनवरी को हरियाणा की नरवाल खाप के मुख्यालय गांव कथूरा में खाप के वरिष्ठ प्रतिनिधियों के सम्मेलन में खाप के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री भले राम नरवाल ने दहेज के लेन-देन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की घोषणा की और इस अवसर पर नया आह्वान किया, ‘‘एक रुपए में बेटी दो, एक ही रुपए में बहू लाओ।’’ 

श्री नरवाल ने परिवारों के टूटने का एक बड़ा कारण दहेज को बताते हुए कहा कि आज दिखावे को महत्व मिलने के कारण सर्वाधिक खर्च शादियों में दहेज देने और शराब परोसने पर होता है। अत: भविष्य में खाप अब दहेज के आदान-प्रदान के साथ ही विवाहों में शराब परोसने से भी पूरी दूरी बना कर रखेगी तथा शराब के काऊंटर नहीं लगेंगे। बैठक में मृत्यु भोज पर भी पूर्ण रूप से रोक लगाते हुए कहा गया कि मृत्यु भोज देने का कोई औचित्य नहीं है। मृत्यु अंतत: मृत्यु ही है। मृतक की आयु चाहे जितनी भी हो, उसे वापस नहीं लाया जा सकता। परिवार के लिए वह क्षति हमेशा अपूर्णीय रहेगी। अत: मृत्यु पर सामाजिक मजबूरी के नाम पर मृत्यु भोज आयोजित करना सिरे से गलत है। इसी प्रकार यह बात भी स्वागत योग्य है कि जिला गुरदासपुर के लगभग 40 गांवों ने दहेज के लेन-देन पर रोक लगाने और रिंग सैरेमनी न करने का ऐतिहासिक निर्णय किया है। 

बैठक में कहा गया कि रिंग सैरेमनी पंजाब की संस्कृति का हिस्सा नहीं है। विवाह पर लंगर चलेगा परन्तु शराब और मांस आदि पर रोक रहेगी। रिबन काटने की रस्म भी बंद होगी। आर्केस्ट्रा या गाने वालों के कार्यक्रम बंद किए जाएंगे और विवाह में 31 व्यक्ति ही बाराती होंगे। 29 जनवरी को इलाके के 40 गांवों के प्रतिनिधियों की बैठक के बाद विवाह समारोहों में दहेज एवं फालतू खर्च विरोधी समाज सुधार कमेटियां बनाई जा रही हैं। प्रत्येक गांव में एक 5 सदस्यीय कमेटी होगी जो लोगों को दहेज का लेन-देन न करने बारे जागरूक करेगी। इसके अतिरिक्त गांव में किसी की मृत्यु होने पर संस्कार तथा अस्थियां इकट्ठी करने के अवसर पर दूर के रिश्तेदारों को नहीं बुलाया जाएगा तथा मृतक के भोग वाले दिन भी फालतू खर्च पर रोक रहेगी। 

यहीं पर बस नहीं, इन दिनों कर्नाटक में शराबबंदी लागू करने की मांग पर बल देने के लिए आंदोलन चल रहा है। इस सिलसिले में शराब के दुष्प्रभावों के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए मद्य निषेध आंदोलन (एम.एन.ए.) नामक एन.जी.ओ. के नेतृत्व में लगभग 2500 महिलाओं ने 19 जनवरी से 30 जनवरी तक राज्य में सभाएं और प्रदर्शन करके लोगों को शराब के सेवन के दुष्परिणामों से आगाह किया। इस प्रदर्शन में शामिल महिलाओं ने बेंगलूर विधानसभा के समक्ष प्रदर्शन करके 30 जनवरी को अपने आंदोलन को विराम दिया। राज्य में शराबबंदी अभियान चलाने के लिए ‘एम.एन.ए.’ का गठन 2016 में किया गया था जिसे 30 समविचारक संगठनों का समर्थन प्राप्त है। 

दहेज लेन-देन, रिंग सैरेमनी और मृत्यु भोज न करने तथा शराब आदि पर नरवाल खाप, गुरदासपुर जिले की 40 पंचायतों और कर्नाटक की महिलाओं द्वारा किए जाने वाले प्रयास अनुकरणीय हैं। आवश्यकता इस बात की है कि इन अभियानों को बढ़ावा दिया जाए और इस बारे लिए जाने वाले निर्णयों को सही अर्थों में लागू करवाने के लिए ठोस कदम उठाए जाएं। इससे निश्चय ही समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने में सहायता मिलेगी।—विजय कुमार

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