सोशल मीडिया से बढ़ती नफरत की भावना चिंताजनक

Edited By ,Updated: 14 Apr, 2025 05:30 AM

the growing feeling of hatred on social media is worrying

डिजीटल युग में जहां आए दिन सोशल मीडिया पर ऑनलाइन धमकियां, हैकिंग और धोखाधड़ी के कारण पीड़ितों को आॢथक नुकसान उठाना पड़ता है वहीं माना जाता है कि यह अपराध भारत में 75 वर्ष की आयु से अधिक लोगों के साथ घटते हैं परंतु ऐसा नहीं। आज कल बच्चे बहुत ज्यादा...

डिजीटल युग में जहां आए दिन सोशल मीडिया पर ऑनलाइन धमकियां, हैकिंग और धोखाधड़ी के कारण पीड़ितों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है वहीं माना जाता है कि यह अपराध भारत में 75 वर्ष की आयु से अधिक लोगों के साथ घटते हैं परंतु ऐसा नहीं। आज कल बच्चे बहुत ज्यादा तकनीक और इंटरनैट के संपर्क में हैं जिससे वे साइबर अपराध के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं। मानसिक और भावनात्मक तौर पर उनके स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचता है। हाल ही में लैंसेट में प्रकाशित  डाटा से पता चलता है कि हर तीसरा बच्चा सोशल मीडिया का आदी है, ऐसे में 10 से 24 वर्ष की आयु के लोगों में मानसिक बीमारी और आत्मक्षति की दर भी बढ़ी है। 

लड़कों में हिंसा में लिप्त होने तथा नारी विद्वेष की भावना इतनी प्रबल है कि ब्रिटेन के पुलिस प्रमुखों ने कहना शुरू कर दिया है कि 16 वर्ष से कम आयु के लड़कों को सोशल मीडिया के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने की आवश्यकता है। इंगलैंड के 4 वरिष्ठतम पुलिस अधिकारियों के अनुसार सार्वजनिक सुरक्षा, राष्ट्रीय सुरक्षा और युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य के लिए इन प्लेटफार्मों पर और अधिक नियंत्रण की आवश्यकता है क्योंकि ये समाज के लिए बड़ा खतरा पैदा कर रहे हैं। लड़के (युवक) जो कुछ इन प्लेटफार्मों पर देख रहे हैं उसे निजी जीवन में दोहरा रहे हैं। यह न केवल बच्चों और युवाओं के लिए, बल्कि समाज के लिए एक गंभीर खतरा है। युवा हिंसा और गला घोंटने जैसे व्यवहार कर रहे हैं क्योंकि वे इसे ऑनलाइन देखते हैं। ये ऐसी भयावह चीजें हैं जिन्हें सामान्य माना जा रहा है। संस्थाओं ने चेतावनी देते हुए कहा है कि लड़कों को लगता है कि महिलाओं का गला घोंटना कोई बड़ी बात नहीं है।

इसी तरह की पृष्ठभूमि में ‘एडोलसैंस’ नामक वैब सीरीज का प्रसारण हुआ है जिसमें 13 वर्ष के एक किशोर ने अपनी क्लास में एक लड़की का खून कर दिया और इसके पीछे के कारणों में दिखा रहे हैं कि मां-बाप अपने आपमें और बच्चे फोन में व्यस्त हैं और वे ऑनलाइन उपलब्ध सामग्री के जरिए क्या सीख रहे हैं। ‘एडोलसैंस’ ने ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टारमर को इतना प्रभावित किया कि उन्होंने यहां तक कह दिया है कि इसे सभी स्कूलों तथा अन्य शिक्षा संस्थानों में मुफ्त दिखाया जाना चाहिए ताकि बच्चों के माता-पिता को पता चले कि बच्चे ऑनलाइन क्या कुछ देख रहे हैं तथा ऑनलाइन उपलब्ध सामग्री बच्चों का कितना नुकसान कर रही है। अब वहां की पुलिस का कहना है कि 16 वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए ऑनलाइन जाने पर बैन लगा दिया जाए। हालांकि, ऐसा कहना तो आसान है परंतु ऐसा करेंगे किस प्रकार? दूसरी बात यह कि सिर्फ ऑनलाइन अकाऊंट बनाने पर रोक लगाने से ही समस्या का हल नहीं हो जाएगा। आपके मोबाइल फोन में ही व्हाट्सएप आदि पर ही कितने ऐसे ‘वायलैंट’ मैसेजेस आ सकते हैं। 

अभी तक आस्ट्रेलिया, कनाडा तथा नार्वे सहित कुछ देशों की सरकारों ने ऐसा करने की दिशा में कदम उठाए हैं जबकि इंगलैंड की सरकार बच्चों द्वारा ऑनलाइन सामग्री के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने के विषय में सोच रही है। ऑनलाइन सामग्री कमजोर महिलाओं और लड़कियों को निशाना बनाती हैं और खाने-पीने के विकार व आत्महत्या मंचों जैसी वैबसाइटों पर उनका शोषण करने के लिए मजबूर कर रही है। गंभीर नुकसान पहुंचाने के इच्छुक युवा लड़कों से खतरा इतना गंभीर है कि आतंकवाद रोधी अधिकारी राष्ट्रीय अपराध एजैंसी (एन.आई.ए.) के साथ मिल कर उनकी तलाश कर रहे हैं क्योंकि उन्हें डर है कि वे हमला या हत्या कर सकते हैं।

इस संबंध में सबसे बड़ी बात तो यह है कि ऑनलाइन सामग्री उपलब्ध करवाने वाली कम्पनियां ट्विटर, इंस्टाग्राम आदि स्वयं भी ऐसी सामग्री पर नजर रख कर हिंसा और यौन अपराधों आदि पर आधारित सामग्री की निगरानी कर सकती हैं परंतु कम्पनियां ऐसा करना नहीं चाहतीं तो हम बच्चों तक आपत्तिजनक सामग्री पहुंचने से किस प्रकार रोक सकते हैं। ऐसे में सबसे बड़ी जिम्मेदारी माता-पिता और सरकार की है। भारत में साइबर अपराध को मुख्य रूप से सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 (आई.टी. अधिनियम) और भारतीय दंड संहिता (आई.पी.सी.) के माध्यम से संबोधित किया जा सकता है जिसके अंतर्गत 3 साल की कैद और 5 लाख रुपए का जुर्माना भी हो सकता है परंतु ज्यादातर गतिविधियों पर कोई कार्रवाई नहीं होती या उन्हें गंभीरता से नहीं लिया जाता। 

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