10वीं का परिणाम : पंजाबी क्यों पिछड़ी

Edited By ,Updated: 31 May, 2023 06:09 AM

10th result why punjabi backward

पिछले दिनों पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड के दसवीं के परिणामों में पंजाबी विद्यार्थियों की पास प्रतिशतता बारे हैरानीजनक खुलासा हुआ। बोर्ड के परिणामों में 5 भाषाओं, जिनमें पंजाबी, हिन्दी, उर्दू, संस्कृत तथा अंग्रेजी शामिल हैं, में पंजाबी पिछड़कर सबसे...

पिछले दिनों पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड के दसवीं के परिणामों में पंजाबी विद्यार्थियों की पास प्रतिशतता बारे हैरानीजनक खुलासा हुआ। बोर्ड के परिणामों में 5 भाषाओं, जिनमें पंजाबी, हिन्दी, उर्दू, संस्कृत तथा अंग्रेजी शामिल हैं, में पंजाबी पिछड़कर सबसे निचले स्थान यानी पास प्रतिशतता में 5वें स्थान पर पहुंच गई है। इस खुलासे से पंजाब के पंजाबी से स्नेह रखने वालों को एक धक्का लगा है। इससे एक नई चर्चा छिड़ गई है कि पंजाब में ही पंजाबी की ऐसी स्थिति के लिए कौन जिम्मेदार है। हैरानी की बात है कि पंजाब में जहां पंजाबी की हालत तरसयोग्य हो गई है वहीं उर्दू इन परिणामों में दूसरे स्थान पर आ गई है जबकि पंजाब में उर्दू पढ़ाने वाले अध्यापक भी नहीं मिलते। 

जो जानकारी मिली है उसके अनुसार पंजाब में गत वर्षों में मुस्लिम आबादी बहुत तेजी से बढ़ रही है। बड़ी तेजी से मस्जिदों का निर्माण किया जा रहा है, वहीं उनमें मदरसे भी खोले जा रहे हैं और तकरीबन हर बच्चा इनमें उर्दू की पढ़ाई कर रहा है। वहीं संस्कृत भाषा, जो भारत में कुछ समय पहले आलोप होती लग रही थी और इस भाषा को बोलने वालों की गिनती हजारों तक सीमित होकर रह गई थी, उस भाषा के विद्यार्थी पास प्रतिशतता में पहले स्थान पर आए हैं। 

इसका एक कारण यह भी है कि पंजाब में संस्कृत के एक-दो बड़े कालेज चल रहे हैं। हिन्दी देश की राष्ट्रीय भाषा है और यह कुछ दक्षिणी राज्यों को छोड़कर बहुत बड़ी संख्या में बोली जाती है। इस भाषा को केंद्र सरकार के संस्थानों तथा कार्पोरेट कार्यालय में भी पहल मिलती है। यह सब कुछ होने के बावजूद भी हिन्दी तीसरे स्थान पर रही। कुछ समय पूर्व संयुक्त राष्ट्र ने पंजाबी भाषा बारे कहा था कि यदि पंजाबी की हालत इसी तरह चलती रही तो इसका अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। 

पंजाबी बोली की शुरूआत बेशक बहुत समय पहले हो गई थी परन्तु इसकी दस्तावेजी प्रमाणिकता के निशान 9वीं तथा 10वीं शताब्दी के समय से मिलते हैं। लगभग इसी समय पंजाबी को लिपि मिली, जिसे गुरमुखी लिपि का नाम दिया गया। 18वीं शताब्दी में गुरमुखी लिपि के अक्षरों में नए शब्द जोड़े गए तथा पंजाबी लिखनी विकसित भाषाओं की तरह आसान हो गई। 1947 में भारत की आजादी के बाद भी पंजाबी को उचित महत्व नहीं मिला लेकिन पंजाबी संघर्ष करके पंजाबी को पंजाब की सरकारी भाषा बनाने में सफल रहे। इस समय विश्व भर में पंजाबी बोलने वालों की संख्या 15 करोड़ तक पहुंच गई है और पंजाबी दुनिया की भाषाओं में 10वें नम्बर पर पहुंच गई। गत 15-20 वर्षों से पंजाबी पिछडऩे लगी। पंजाब की आर्थिक तथा सामाजिक तौर पर बदलती स्थिति और पंजाबी परिवारों का पंजाबी के प्रति लापरवाहीपूर्ण रवैया इसके लिए काफी हद तक जिम्मेदार है। इसमें कोई संदेह नहीं कि सरकारों का रवैया पंजाबी के प्रति सकारात्मक नहीं रहा। 

गत दिनों पंजाब के मुख्यमंत्री द्वारा सभी संस्थानों को अपने बोर्डों पर पहले स्थान पर पंजाबी लिखने का आदेश दिया गया था। परन्तु उसका भी अधिक असर नहीं हुआ। मगर सारी जिम्मेदारी सरकार पर डाल देना वाजिब नहीं। पंजाब के लोगों का विदेश जाने का रुझान भी इसका एक बड़ा कारण है। युवा भी इसीलिए अंग्रेजी को प्राथमिकता देते हैं, वह भी केवल आईलैट्स पास करके विदेश में सैटल हो जाने के मकसद से। इस कारण न तो वह पंजाबी में ही माहिर होते हैं और न ही अंग्रेजी पर अपनी पकड़ बना पाते हैं।

आज जो हालात बने हैं इनसे बचने के लिए पंजाबियों को बड़े प्रयास करने की जरूरत है। इसलिए पंजाब के बुद्धिजीवी वर्ग, अकादमिक क्षेत्र के अग्रणी, पंजाबी से संबंधित इतिहासकार, विदेशों में बसते पंजाबी प्रेमी, पत्रकार, पंजाबी से प्यार करने वाली संस्थाओं के अतिरिक्त सिख धार्मिक संस्थाओं तथा शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी को सरकार से मिलकर पंजाबियों को फिर से गुरुओं द्वारा बोली गई भाषा का महत्व समझाने के लिए आगे आना पड़ेगा।(पूर्व मीडिया सलाहकार एस.जी.पी.सी. तथा प्रवक्ता पंजाब भाजपा)-इकबाल सिंह चन्नी

Let's Play Games

Game 1
Game 2
Game 3
Game 4
Game 5
Game 6
Game 7
Game 8

Related Story

    Trending Topics

    IPL
    Punjab Kings

    Royal Challengers Bengaluru

    Teams will be announced at the toss

    img title
    img title

    Be on the top of everything happening around the world.

    Try Premium Service.

    Subscribe Now!