नेताओं की घर वापसी का फायदा नहीं उ,ठा पाया अकाली दल बादल

Edited By ,Updated: 19 Apr, 2024 05:25 AM

akali dal badal could not take advantage of leaders returning home

देश में हो रहे लोकसभा चुनाव के चलते पूरे भारत में चुनाव प्रचार चरम पर है। वहीं, पंजाब भी इससे अछूता नहीं है, लेकिन पंजाब की सियासी फिजा अप्रत्याशित दिशा में आगे बढ़ रही है पंजाब की सभी राजनीतिक पाॢटयों के बड़े नेता अपनी वफादारी बदल कर दूसरी...

देश में हो रहे लोकसभा चुनाव के चलते पूरे भारत में चुनाव प्रचार चरम पर है। वहीं, पंजाब भी इससे अछूता नहीं है, लेकिन पंजाब की सियासी फिजा अप्रत्याशित दिशा में आगे बढ़ रही है पंजाब की सभी राजनीतिक पाॢटयों के बड़े नेता अपनी वफादारी बदल कर दूसरी पार्टियों में शामिल हो रहे हैं और उन पार्टियों की उम्मीदें भी बढ़ा रहे हैं। पंजाब की 5 प्रमुख पार्टियां आम आदमी पार्टी, कांग्रेस, अकाली दल, भाजपा और बसपा ऐसी कोई पार्टी नहीं बची है जिसके नेता इधर-उधर न गए हों।हालांकि दल बदलने का चलन नया नहीं है और नेता लंबे समय से ऐसा करते आ रहे हैं। लेकिन अब अकाली दल बादल की स्थिति अन्य पार्टियों से कुछ अलग है।

2017 के विधानसभा चुनाव में हार के बाद अकाली दल के कई बड़े नेताओं, जिनमें मुख्य रूप से पूर्व केंद्रीय मंत्री और अकाली दल के महासचिव सुखदेव सिंह ढींडसा, लोकसभा सदस्य रणजीत सिंह ब्रह्मपुरा, रतन सिंह अजनाला और सेवा सिंह सेखवां आदि शामिल थे, ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया था। ब्रह्मपुरा ने अपने सहयोगियों के साथ टकसाली अकाली दल का गठन किया और सुखदेव सिंह ढींडसा ने यूनाइटेड अकाली दल का गठन किया। 2022 के विधानसभा चुनाव में अकाली दल को एक बार फिर शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा जब पार्टी के 100 साल के इतिहास में पहली बार अकाली दल को केवल 3 सीटें मिलीं। इस हार ने अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल के नेतृत्व पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। 

बाद में शिरोमणि कमेटी की पूर्व अध्यक्ष बीबी जगीर कौर ने भी सुखबीर सिंह बादल की पार्टी की संप्रभुता को स्वीकार करने से इंकार कर दिया और घोषणा की कि वह अकाली दल बादल के उम्मीदवार के खिलाफ शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति के अध्यक्ष पद के लिए स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ेंगी। शिरोमणि अकाली दल ने बीबी जगीर कौर को पार्टी से निलंबित कर दिया। ये सब यहीं नहीं रुका बल्कि दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के पूर्व अध्यक्ष मनजिंदर सिंह सिरसा ने भी अकाली दल से नाता तोड़ लिया और बाद में बड़ी संख्या में दिल्ली कमेटी के सदस्यों ने अकाली दल से इस्तीफा दे दिया और अकाली दल हाशिए पर चला गया। पार्टी अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने इन सब पर काबू पाने की योजना बनाई। श्री अकाल तख्त पर पहुंच कर सिख संगत से माफी मांगी गई। सुखबीर सिंह बादल ने अकाली दल से अलग हुए पूरे नेतृत्व से घर वापसी की अपील की और धीरे-धीरे दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के पूर्व अध्यक्ष परमजीत सिंह सरना और मंजीत सिंह जी.के. समेत कई नेता अकाली दल में शामिल हो गए। 

बाद में, सुखबीर सिंह बादल यूनाइटेड अकाली दल के अध्यक्ष सुखदेव सिंह ढींडसा और बीबी जगीर कौर को फिर से पार्टी में शामिल करने में सफल रहे। इस तरह सुखबीर सिंह बादल एक बार लोकसभा चुनाव से पहले यह संदेश देने में कामयाब रहे और वह अकाली दल को एकजुट करने में लगभग सफल हो गए हैं। हालांकि, जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव की तारीख नजदीक आ रही है, सुखबीर सिंह बादल के सामने नई चुनौतियां खड़ी हो रही हैं। अकाली दल को एकजुट करने की उनकी मुहिम जोर पकड़ती नजर आ रही है। अकाली नेता सिकंदर सिंह मलूका के बेटे और उनकी आई.ए.एस. पत्नी ने नौकरी छोड़कर अकाली दल को अलविदा कह दिया और भाजपा में शामिल हो गए। 

इसके अलावा दोआबा में अकाली दल का दलित चेहरा माने जाने वाले पूर्व विधायक पवन टीनू भी अकाली दल छोड़कर आम आदमी पार्टी में शामिल हो गए हैं, जिससे अकाली दल को गहरा झटका लगा।  टीनू के साथ जिला जालंधर शहरी के पूर्व अध्यक्ष गुरचरण सिंह चन्नी भी अकाली दल को छोड़कर आम आदमी पार्टी में शामिल हो गए हैं। चुनाव के लिए नामांकन भरने में अभी काफी समय है और यह कहना मुश्किल है कि यह सिलसिला कब रुकेगा। इसके अलावा अकाली दल ने संगरूर लोकसभा क्षेत्र से सुखदेव सिंह ढींडसा के बेटे परमिंदर सिंह ढींडसा को नजरअंदाज कर इकबाल सिंह झूंदा को उम्मीदवार बनाया है, ढींडसा परिवार असमंजस में है, लेकिन राजनीतिक सोच रखने वाले आम लोगों को भी यह फैसला हजम नहीं हो रहा है। ढींडसा परिवार कुछ समय पहले अकाली दल में शामिल हुआ था और सुखबीर सिंह बादल ने उन्हें पूरा सम्मान देने का वादा किया था। ढींडसा को संगरूर और बरनाला जिलों के अकाली दल के निर्णय लेने में भाग लेने का विश्वास भी दिया गया था। बड़ी बात यह है कि परमिंदर सिंह ढींडसा संगरूर निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लडऩे के लिए पूरी तरह तैयार थे। 

हालांकि, अकाली सुप्रीमो द्वारा झूंदा को उम्मीदवार घोषित करने से पहले ढींडसा परिवार इस बात पर नाखुशी जाहिर कर रहा है कि उन्हें विश्वास में नहीं लिया गया। बीबी जगीर कौर ने भी राय व्यक्त की है कि इस बारे में ढींडसा परिवार से चर्चा की जानी चाहिए थी। अब सुखदेव सिंह ढींडसा ने उस मुद्दे पर अपने साथियों के साथ बैठक की है जिसमें उन्हें कोई भी फैसला लेने का अधिकार दिया गया है। ढींडसा को यह  बैठक में मिले सुझावों के मद्देनजर अब यह तय किया जाना है कि अकाली दल के उम्मीदवार का विरोध किया जाए, बहिष्कार किया जाए या स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ा जाए। इस मुलाकात के बाद सुखबीर सिंह बादल ढींडसा से मिलने पहुंचे। लेकिन ढींडसा ने अभी तक कोई फैसला नहीं लिया है। अगर ढींडसा इन तीनों में से कोई भी फैसला लेते हैं तो अकाली दल बादल को नुकसान होना तय है। इस प्रकार अकाली दल द्वारा ढींडसा परिवार की उपेक्षा से अकाली दल के नाराज कार्यकत्र्ताओं और नेताओं में गलत संदेश गया है। जो लोग अकाली दल में वापसी की चाहत रख रहे हैं वे भी अब दोबारा सोचेंगे कि उनके साथ ऐसा व्यवहार नहीं होना चाहिए।-इकबाल सिंह चन्नी(भाजपा प्रवक्ता पंजाब)
 

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