ऐसी गिरफ्तारी जिसने अंतरात्मा को झकझोर कर रख दिया

Edited By ,Updated: 05 Apr, 2024 05:00 AM

an arrest that shocked the conscience

मैं अरविंद केजरीवाल से सिर्फ एक बार मिला हूं। यह मुलाकात 2005 या 2006 में कभी पी.सी.जी.टी. के ट्रस्टियों की बैठक में हुई थी। उस समय भारत सरकार के पूर्व कैबिनेट सचिव और प्रधानमंत्री के पूर्व प्रधान निजी सचिव बी.जी. देशमुख, पी.सी.जी.टी. के अध्यक्ष थे।

मैं अरविंद केजरीवाल से सिर्फ एक बार मिला हूं। यह मुलाकात 2005 या 2006 में कभी पी.सी.जी.टी. के ट्रस्टियों की बैठक में हुई थी। उस समय भारत सरकार के पूर्व कैबिनेट सचिव और प्रधानमंत्री के पूर्व प्रधान निजी सचिव बी.जी. देशमुख, पी.सी.जी.टी. के अध्यक्ष थे। उन्होंने केजरीवाल को पी.सी.जी.टी. से मिलने के निमंत्रण को मंजूरी दे दी थी। उन्हें कहा गया कि वह यह बताएं कि दिल्ली में आयकर विभाग में भ्रष्टाचार से निपटने के लिए क्या काम कर रहे थे। 

केजरीवाल एक सेवारत आई.टी. अधिकारी थे। उस समय उनकी भर्ती  यू.पी.एस.सी. की सिविल सेवा परीक्षा के माध्यम से भारतीय राजस्व सेवा (आई.आर.एस.) में हुई थी। इस सेवा के लिए बी.जी. देशमुख और मैंने वर्षों पहले कोशिश की थी। केजरीवाल आधिकारिक समय से एक घंटा पहले काम पर पहुंचते थे और सैंट्रल आई.टी. कार्यालय के बाहर कुर्सी के साथ एक छोटी सी मेज लगा लेते थे। आई.टी. के लिए आवेदक रिफंड या पैन कार्ड के लिए उनकी मदद लोग ले सकते थे ताकि उनका काम ‘स्पीड मनी’ के भुगतान के बिना शीघ्रता से पूरा हो जाए। उन्होंने अपने कई अधिकारियों को नाराज कर दिया। आज उसमें से कितने प्रवर्तन निदेशालय में हैं? क्या उनमें से कोई उसके खिलाफ जांच संभाल रहा है? मुंबई के आम निवासियों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने के स्पष्ट उद्देश्य के लिए पी.सी.जी.टी. स्थापित किया गया था। केजरीवाल ने हमें एक एन.जी.ओ. के बारे में बताया। राजधानी शहर में वह मार्गदर्शन कर रहे थे ताकि लोगों की समस्याओं का समाधान किया जा सके। पी.सी.जी.टी. के ट्रस्टी ईमानदारी और न्याय के प्रति उनकी प्रतिबद्धता से प्रभावित हुए। 

क्या सुशासन के मूल्यों के प्रति इतना समर्पित व्यक्ति रातों-रात एक राक्षस में बदल सकता है जो गंदी कमाई से अपना पेट भरने पर आमादा है? जो लोग उनके व्यक्तित्व, उनकी सोच और उनके दिल और दिमाग के व्यवहार से अवगत हुए हैं, उनके लिए एक पल के लिए भी यह असंभव लगता है। जैसे कि ‘आप’ के सांसद संजय सिंह के पास पैसे का कोई पता नहीं चला। अगली बार अरविंद केजरीवाल मेरे ध्यान में तब आए जब वह अच्छे आचरण और ईमानदार, सरल जीवन के महान प्रतिपादक-अन्ना हजारे के सम्पर्क में आए। अपने राज्य के कई लोगों की तरह मैं भी अन्ना के बारे में ज्यादातर बातें जानता हूं और मुझे कई मौकों पर उनके साथ बातचीत करने का अवसर मिला है। अन्ना एक साधारण व्यक्ति हैं, चूंकि उन्हें कई बार कई लोगों द्वारा सराहना और सम्मान मिला है, इसलिए इस प्रशंसा ने संभावनाओं को शांति से तौलने की उनकी क्षमता को प्रभावित किया है। 

अन्ना और केजरीवाल की जोड़ी गेम चेंजर बनने का वादा कर रही थी। लेकिन केजरीवाल के विचार कुछ और थे। इन विचारों की न तो अन्ना को उम्मीद थी और न ही ज्यादातर नागरिकों को, जिन्होंने भारत की प्रगति में  सबसे बड़ी बाधाओं में से एक-भ्रष्टाचार के खिलाफ विद्रोह का झंडा बुलंद करना था। जैसे ही लड़ाई विजयी मोड़ ले रही थी, केजरीवाल ने भविष्य में चुनाव लडऩे के लिए आम आदमी पार्टी (आप) का गठन करके राजनीतिक क्षेत्र में प्रवेश करने के अपने इरादे की घोषणा की। इस फैसले से अन्ना और मेरे जैसे सैंकड़ों अन्य प्रशंसक निराश हो गए। उसने इस कदम में उस व्यक्ति द्वारा विश्वासघात देखा जिस पर उसने भरोसा किया था। अन्ना ने हमेशा खुद को एक नैतिक शक्ति के रूप में देखने का सपना देखा था जो राजनीति से पैदा होने वाली लूट से दूर रहे। लेकिन वह एक अलग कहानी है। आज हम अपने राजनीतिक प्रभुत्व के खिलाफ सभी विश्वसनीय विरोधों को खत्म करने की भाजपा की जटिल योजना से चिंतित हैं। 

अरविंद केजरीवाल पर देश की राजधानी में शराब की बिक्री को नियंत्रित करने वाली नीति के साथ छेड़छाड़ करके दिल्ली सरकार के उत्पाद शुल्क घोटाले की कल्पना करने और उसे निर्देशित करने का आरोप है। यदि उस नीति को आकार देने या बदलने में उनका हाथ होता तो मुझे आश्चर्य नहीं होता। सभी राजनीतिक दलों को संचालन के लिए धन की आवश्यकता होती है। उनके पास ठेकों से रिश्वत और व्यावसायिक घरानों को लाभ पहुंचाने के अलावा अपनी गतिविधियों के वित्तपोषण का कोई साधन नहीं है। बोफोर्स तोपों या राफेल जैट लड़ाकू विमानों की खरीद जैसी परियोजनाएं सबसे स्पष्ट प्रलोभन हैं। प्रत्येक नागरिक जानता है कि यह नियमित रूप से सत्तारूढ़ सरकारों द्वारा किया जाता है और विपक्षी दलों द्वारा इसकी निंदा की जाती है। लेकिन भारतीय नागरिक ऐसी बातों से अछूते हैं। भारतीय नागरिक प्रवर्तन निदेशालय और आई.टी. को उकसाकर विपक्षी दलों और उनके नेताओं पर एकाकी हमला करने का आदी नहीं है। भारत में विपक्ष-मुक्त राजनीति सुनिश्चित करने के लिए अधिकारी लगातार अपने विरोधियों के पीछे पड़े रहते हैं। 

अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी ने देश के सही सोच वाले नागरिकों की अंतरात्मा को आई.टी. से भी अधिक झकझोर दिया है। आई.टी. की वसूली के लिए कांग्रेस पार्टी के बैंक खातों को फ्रीज किया गया है। भाजपा द्वारा चुनाव लडऩे की लागत के वित्तपोषण के लिए चुनावी बांड लिए गए। इसकी चुनौतियां उन्हें जीत की ओर ले जाएंगी क्योंकि विपक्षी दल टुकड़ों में रह जाएंगे। ऐसे देश में जहां पैसे का इस्तेमाल वोट खरीदने और लोगों की पसंद के आधार पर बनी सरकारों को गिराने के लिए किया जाता है, वहां यह आश्चर्य की बात नहीं है  कि ‘आप’ जैसी उभरती हुई पार्टी अपने गुल्लक में पैसा जोडऩे की योजना बनाएगी। निश्चित रूप से अरविंद केजरीवाल ने शराब डीलरों, चाहे वे दक्षिण से हों या उत्तर से, से रिश्वत के माध्यम से उनकी पार्टी द्वारा जुटाए गए धन का उपयोग अपने निजी खर्चों के लिए नहीं किया है। अगर उन पर यह आरोप है तो कोई भी यकीन नहीं करेगा कि उनके दिमाग में ऐसा ख्याल भी आ सकता है। यह चौकीदार पर चोर होने का आरोप लगाने के बराबर है!-जूलियो रिबैरो(पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी)

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