‘भारत में एक और महामारी का प्रकोप’

Edited By ,Updated: 13 Jan, 2021 04:36 AM

another outbreak of epidemic in india

लगता है भगवान नाराज हैं। जहां एक आेर सारा देश कोरोना महामारी के टीके की प्रतीक्षा कर रहा है तो दूसरी आेर बर्ड फ्लू का प्रकोप फैलने लगा है। राजस्थान, मध्य प्रदेश, हिमाचल, केरल, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, आेडिशा, छत्तीसगढ़, जम्मू

लगता है भगवान नाराज हैं। जहां एक आेर सारा देश कोरोना महामारी के टीके की प्रतीक्षा कर रहा है तो दूसरी आेर बर्ड फ्लू का प्रकोप फैलने लगा है। राजस्थान, मध्य प्रदेश, हिमाचल, केरल, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, आेडिशा, छत्तीसगढ़, जम्मू कश्मीर और दिल्ली में बर्ड फ्लू के मामले सामने आए हैं और इन राज्यों में मुर्गी, कौवे तथा प्रवासी पक्षियों की मौत हो रही है। राज्यों को सतर्क कर दिया गया है। 

पशु पालन विभाग के एक अधिकारी के अनुसार स्थिति भयावह है। किंतु क्या यह पर्याप्त है? क्या इससे सरकार द्वारा विलंब से कदम उठाने और कुप्रबंधन को नजरअंदाज किया जा सकता है? पशु पालन राज्य मंत्री बलियान के अनुसार यह बीमारी केवल कुछ राज्यों में स्थानीय स्तर पर फैली है। यह बड़ा खतरा नहीं है। यह कोई नई बात नहीं है। 2015 से हर वर्ष एेसा हो रहा है। क्या वास्तव में ऐसा है? आप किसे बेवकूफ बना रहे हैं? शायद उन्हें बर्ड फ्लू कहां से फैला, इसकी जानकारी नहीं है। 

महाराष्ट्र में 2006 में बर्ड फ्लू के फैलने की खबरें आई थीं। आेडिशा, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल में पालतू और वन्य पक्षियों में इसके प्रकोप की खबरें आती रहती हैं। 2006 से 2018 के बीच देश में बर्ड फ्लू संक्रमण के 225 केन्द्र रहे हैं और इस दौरान 83.49 लाख पक्षियो को मारना पड़ा। न केवल इस संक्रमण के प्रति अपितु अन्य बीमारियों के प्रति भी सरकार का ढुलमुल रवैया रहा है और यह बताता है कि हमारे शासक इनके बारे में गंभीर नहीं रहे हैं। 

हमारे देश में मानव जीवन के प्रति राजनीतिक और प्रशासनिक उदासीनता देखने को मिलती है। उनके लिए नागरिक केवल एक संख्या है। यह तथ्य इससे स्पष्ट हो जाता है कि देश में गरीब लोग विशेषकर बच्चे एेसी बीमारियों के कारण काल का ग्रास बन जाते हैं जो पूर्णतया उपचार योग्य हैंं। देश में लगभग 6 लाख डाक्टरों तथा 20 लाख नर्सों की कमी है। ये आंकड़े सैंटर फोर डिसीज डायनैमिक्स, इकानोमिक्स एंड पोलिसीज के हैं।

शहरों में जो लोग स्वयं को डाक्टर कहते हैं उनमें से केवल 58 प्रतिशत के पास और ग्रामीण क्षेत्रों में केवल 19 प्रतिशत लोगों के पास चिकित्सा डिग्री है और अधिकतर 10वीं, 12वीं पास हैं। यही नहीं देश में 1,00189 लोगों पर केवल एक एलोपैथिक डॉक्टर है। 2036 व्यक्तियों पर एक बिस्तर और 90343 लोगों पर एक सरकारी अस्पताल है। देश में 130 करोड़ लोगों के लिए केवल 10 लाख एलोपैथिक डाक्टर हैं। देश में प्रतिदिन कुपोषण के कारण 3000 बच्चों की मौत होती है। हमारे देश में 14$9 प्रतिशत जनसंख्या कुपोषित है और स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं की कमी के कारण प्रतिवर्ष यहां लगभग 10 लाख लोगों की मौत हो जाती है। किंतु यदि राज्य सरकार डाक्टरों की शिक्षा के लिए अधिक संसाधन उपलब्ध कराए तो अधिक डॉक्टर बन सकते हैं।

सरकार एेसा क्यों नहीं करती और इसके लिए मतदाता उन्हें दंडित क्यों नहीं करते? इसका कारण यह है कि शायद हमारे नेताआें और राजनीतिक दलों के लिए स्वास्थ्य कोई मुद्दा ही नहीं है क्योंकि उन्हें जाति और धर्म के आधार पर वोट मिल जाते हैं इसलिए वे धनराशि का उपयोग मतदाताआें को तुष्ट करने और विद्यमान पहचान आधारित धुव्रीकरण पर खर्च कर देते हैं और इस तरह वे स्वास्थ्य नीति की उपेक्षा करते हैं। यदि हमारे नेतागणों को यह भय होता कि स्वास्थ्य क्षेत्र का विकास न करने के कारण उन्हें दंडित किया जाएगा तो वे इस क्षेत्र में सुधार के लिए कदम उठाते। 

बर्ड फ्लू के अलावा डेंगू, चिकनगुनिया, मलेरिया, आंत्र्रशोथ आदि बीमारियां यहां फैलती रहती हैं। इसके अलावा काला ज्वर, जापानी इंसेफ्लाइटिस, वायरल हैपेटाइटिस आदि बीमारियां भी अपने पांव पसारने लगी हैं। हमारे देश में स्वास्थ्य पर सकल घरेलू उत्पाद की केवल 1$4 प्रतिशत राशि खर्च की जाती है और इससे स्पष्ट हो जाता है कि देश में स्वास्थ्य सुविधाएं विकसित क्यों नहीं हैं जिसके चलते गरीब लोगों को निजी अस्पतालों की दया पर निर्भर रहना पड़ता है। हमारे देश को रोगों के निवारण और प्रसार को रोकने के लिए वैज्ञानिक प्रगति के लाभों का उपयोग करना चाहिए और इस क्षेत्र में उदासीनता को हावी होने देना उचित नहीं होगा। लोक स्वास्थ्य के संरक्षण के लिए हमेशा सजग रहना ही शासन करना है।

सरकार को अनौपचारिक स्वास्थ्य देखभाल सुविधाएं उपलब्ध कराने वालों को मान्यता देनी होगी और उन्हें प्रशिक्षित करना होगा, एम.बी.बी.एस. डाक्टरों, प्रशिक्षित नर्सों की संख्या बढ़ानी होगी। उच्च स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए इंटरमीडिएट डिग्री की व्यवस्था करनी होगी। चिकित्साकर्मियों के लिए सेलफोन आधारित चैकलिस्ट विकसित करनी होगी। कुल मिलाकर हमें स्वास्थ्य के बारे में बुनियादी बातें सीखनी होंगी। बीमारियों के प्रसार पर रोक लगाने के प्रयासों के बिना हम बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध नहीं करा सकते हैं। सरकार को प्रत्येक नागरिक को स्वस्थ रखने के लिए गर्भ से कब्र तक की नीति का अनुसरण करना होगा।-पूनम आई. कौशिश

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