उम्मीदवारों के भाग्य पर दाव लगा रहा है सट्टा बाजार

Edited By Updated: 19 Nov, 2022 05:20 AM

betting market is betting on the fate of the candidates

गुजरात विधानसभा चुनाव में चुनाव आयोग और राजनीतिक दलों द्वारा सीधे तौर पर देश को लगभग 1000 करोड़ रुपए खर्च करने पड़ सकते हैं।

गुजरात विधानसभा चुनाव में चुनाव आयोग और राजनीतिक दलों द्वारा सीधे तौर पर देश को लगभग 1000 करोड़ रुपए खर्च करने पड़ सकते हैं। यह खर्च 2017 की तुलना में लगभग 250 प्रतिशत अधिक होगा। चुनाव आयोग के फैसले के अनुसार उम्मीदवारों को मुद्रास्फीति की लागत से अधिक खर्च करने की अनुमति दी गई है। चुनावी खर्च स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देता है। विभिन्न प्रकार के झंडों, मतदाताओं को अन्य उपहारों, नेताओं की तस्वीरों की बिक्री के साथ-साथ छोटी और बड़ी बैठकें आयोजित करने के लिए वाहनों, आडियो सिस्टम और अन्य सुविधाओं से कई सेवाएं ऐसे खर्चों में शामिल हैं।

एक और दिलचस्प पहलू सट्टा बाजार में सट्टेबाजी है। ऐसा कहा जाता है कि उम्मीदवार अपनी लोकप्रियता बढ़ाने के लिए कभी-कभी खुद सट्टे में भाग लेते हैं। सट्टा बाजार में हजारों-करोड़ों रुपए का निवेश शामिल होता है। असल खर्चा तो चुनावों के बाद ही पता चल पाएगा लेकिन यह तय है कि चुनाव आयोग 2 चरणों में होने वाले चुनाव में 450 करोड़ रुपए खर्च करेगा। राज्य सरकार ने 2022-23 के वार्षिक बजट में 2022 के विधानसभा चुनावों के लिए मुख्य निर्वाचन अधिकारी द्वारा अनुमानित लागत के आधार पर चुनाव खर्च के लिए 387 करोड़ रुपए आबंटित किए।

2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव में 250 करोड़ रुपए खर्च होने थे लेकिन वास्तवकि खर्च 326 करोड़ रुपए था। इसी तरह 2012 के चुनावों में 175 करोड़ रुपए का अनुमान लगाया गया था लेकिन वास्तविक खर्च अनुमानित राशि से कहीं अधिक बैठा था। चुनाव कर्मचारियों से प्राप्त पारिश्रमिक की लागत में वृद्धि, रसद, वाहनों की लागत में वृद्धि और बूथों व मतदान केंद्रों की संख्या में बढ़ौतरी के कारण खर्च बढ़ सकता है। 2012 में एक उम्मीदवार 16 लाख रुपए खर्च कर सकता था।

इसे अब बढ़ाकर 40 लाख रुपए कर दिया गया है इसलिए औसतन अगर 3 प्रमुख दलों जिसमें कि भाजपा, कांग्रेस और ‘आप’ के तीन उम्मीदवार शामिल हैं तो 182 सीटों के लिए उम्मीदवार का खर्च 218.4 करोड़ रुपए हो जाएगा लेकिन कई निर्वाचन क्षेत्रों में अनेक छोटे क्षेत्रीय और राज्य स्तरीय दल हैं जोकि चुनाव लड़ रहे हैं तो कुल खर्च 400 करोड़ रुपए से ज्यादा हो सकता है। पार्टियों को इलैक्टोरल बांड और चंदे से फंड मिलता है। 2017 में केंद्र में भाजपा ने 160.7 करोड़ रुपए और गुजरात इकाई ने 88.5 करोड़ रुपए एकत्रित किए।

भाजपा ने चुनाव आयोग को 115.02 करोड़ रुपए और गुजरात-भाजपा इकाई ने पार्टी का खर्च 15.84 करोड़ रुपए दिखाया। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के 3 दौरों समेत शीर्ष नेताओं पर 76.24 लाख रुपए खर्च हुए। वहीं अन्य नेताओं पर 35.64 लाख रुपए खर्च हुए। कांग्रेस पार्टी ने 2017 में 49.1 करोड़ रुपए और गुजरात की कांग्रेस इकाई ने 20.1 करोड़ रुपए एकत्रित किए। खर्च के आंकड़े केंद्रीय पार्टी द्वारा 12.4 करोड़ रुपए और गुजरात कांग्रेस द्वारा 7.6 करोड़ रुपए थे।

भाजपा उपाध्यक्ष गौरधन जड़फिया ने मांग की है कि गुजरात में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुनावी रैलियों पर होने वाले खर्च को पार्टी की चुनावी रैलियों में जोड़ा जाए। कांग्रेस ने राज्य के अपने दौरे के दौरान मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार के साथ अपनी बैठकों के दौरान चुनावी प्रक्रिया में अधिक पारदर्शिता लाने की मांग की। कई मामलों में इन्हें उम्मीदवारों के खर्च में जोड़ दिया जाता है। कांग्रेस के केंद्रीय मुख्यालय ने स्टार प्रचारकों की यात्रा पर और राहुल गांधी, मनमोहन सिंह, अशोक गहलोत और अन्य वरिष्ठ नेताओं के दौरे पर 6.05 करोड़ रुपए खर्च किए।

भाजपा ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी से 2.5 गुणा अधिक खर्च किया। एक बड़ा खर्च प्रचार पर किया गया था। कुल मिलाकर भाजपा ने मीडिया और विज्ञापनों पर 45.6 करोड़़ रुपए खर्च किए जबकि कांग्रेस ने 8.68 करोड़ रुपए खर्च किए। कांग्रेस के 1.30 करोड़ रुपए की तुलना में भाजपा ने प्रचार सामग्री जैसे होर्डिंग, झंडे, मेहराब, बैनर, स्टिकर इत्यादि पर 13.01 करोड़ रुपए खर्च किए। यह खर्च चुनाव के दौरान 45 दिन या उससे कम की अवधि के लिए थे। विभिन्न तरीकों से वास्तविक प्रचार बहुत पहले शुरू हो गया था।

सत्ताधारी दल के लिए राज्य सरकार के खर्चे परिलक्षित नहीं होते हैं। चूंकि इस बार प्रत्येक वस्तुओं के दाम कई गुणा बढ़ गए हैं तो ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि राजनीतिक दलों का कुल खर्च दोगुना हो जाएगा। एक दिलचस्प पहलू यह भी है कि सट्टा बाजार उम्मीदवारों के भाग्य पर दाव लगा रहा है। हालांकि यह अब एक राष्ट्रीय घटना बन गई है। गुजरात में विधानसभा चुनाव लोगों के लिए विशेष रूचि पैदा करते हैं। सट्टा बाजार प्रत्येक उम्मीदवार के भाग्य में गहरी दिलचस्पी लेता है। ऐसा भी कहा जाता है कि उम्मीदवार कभी-कभार अपनी लोकप्रियता बढ़ाने और चुनाव जीतने की तमन्ना में सट्टा में भाग लेते हैं। फिलहाल तो सट्टा बाजार भाजपा को अपना समर्थन दे रहा है। इस बार 40,000 से 50,000 करोड़ रुपए के कारोबार की उम्मीद की जा रही है। -शिवाजी सरकार

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