भारत माता : प्रत्येक भारतीय की आवाज

Edited By Updated: 15 Aug, 2023 04:17 AM

bharat mata the voice of every indian

‘जो बात दिल से निकलती है वह दिल में उतरती है’   पिछले साल अपने घर, यानी भारत माता के आंगन में, मैं 145 दिनों तक पैदल चला। समुद्र तट से मैंने शुरूआत की और धूल, धूप, बारिश से होकर गुजरा। जंगलों, चरागाहों, शहरों, खेतों, गांवों, नदियों और पहाड़ों से...

‘जो बात दिल से निकलती है वह दिल में उतरती है’  
पिछले साल अपने घर, यानी भारत माता के आंगन में, मैं 145 दिनों तक पैदल चला। समुद्र तट से मैंने शुरूआत की और धूल, धूप, बारिश से होकर गुजरा। जंगलों, चरागाहों, शहरों, खेतों, गांवों, नदियों और पहाड़ों से होते हुए मैं महबूब कश्मीर की नर्म बर्फ तक पहुंचा। 

रास्ते में अनेक लोगों ने मुझसे पूछा ‘‘ये आप क्यों कर रहे हैं?’’ आज भी कई लोग मुझसे यात्रा के लक्ष्य के बारे में पूछते हैं। आप क्या खोज रहे थे? आपको क्या मिला? असल में, मैं उस चीज को समझना चाहता था जो मेरे दिल के इतने करीब है, जिसने मुझे मृत्यु से आंख मिलाने और ‘चरैवेति’ की प्रेरणा दी, जिसने मुझे दर्द और अपमान सहने की शक्ति दी। और जिसके लिए मैं सब कुछ न्यौछावर कर सकता हूं। दरअसल मैं जानना चाहता था कि वह चीज आखिर है क्या, जिसे मैं इतना प्यार करता हूं? यह धरती? ये पहाड़? यह सागर? ये लोग या कोई विचारधारा? शायद मैं अपने दिल को ही समझना चाहता था। वह क्या है, जिसने मेरे दिल को इस प्रयास से पकड़ रखा है? वर्षों से रोजाना वर्जिश में लगभग हर शाम मैं 8-10 किलोमीटर दौड़ लगाता रहा हूं। मैंने सोचा बस ‘पच्चीस’? मैं तो आराम से 25 किलोमीटर चल लूंगा। मैं आश्वस्त था कि यह एक आसान पदयात्रा होगी। 

लेकिन जल्द ही दर्द से मेरा सामना हुआ। मेरे घुटने की पुरानी चोट, जो लम्बे इलाज के बाद ठीक हो गई थी, फिर से उभर आई। अगली सुबह, लोहे के कंटेनर के एकांत में मेरी आंखों में आंसू थे। बाकी बचे 3800 किलोमीटर कैसे चलूंगा? मेरा अहंकार चूर-चूर हो चुका था। भिनुसारे ही पदयात्रा शुरू हो जाती थी-और ठीक इसके साथ ही दर्द भी-एक भूखे भेडि़ए की तरह दर्द हर जगह मेरा पीछा करता और मेरे रुकने का इंतजार करता। कुछ दिनों बाद मेरे पुराने डॉक्टर मित्र आए, उन्होंने कुछ सुझाव भी दिए। मगर दर्द जस का तस। लेकिन तभी कुछ अनोखा अनुभव हुआ। यह एक नई यात्रा की शुरूआत थी। 

जब भी मेरा दिल डूबने लगता, मैं सोचता कि अब और नहीं चल पाऊंगा अचानक कोई आता और मुझे चलने की शक्ति दे जाता। कभी खूबसूरत लिखावट वाली 8 साल की एक प्यारी बच्ची, कभी केले के चिप्स के साथ एक उजास बुजुर्ग महिला, कभी एक आदमी-जो भीड़ को चीरते हुए आए, मुझे गले लगाए और गायब हो जाए। जैसे कोई खामोश और अदृश्य शक्ति मेरी मदद कर रही हो, घने जंगलों में जुगनुओं की तरह, वह हर जगह मौजूद थी। जब मुझे वाकई इसकी जरूरत थी यह शक्ति मेरी राह रौशन करने और मदद करने वहां पहले से थी। पदयात्रा आगे बढ़ती गई। लोग अपनी समस्याएं लेकर आते रहे। शुरूआत में मैंने सबको अपनी बात बतानी चाही। मैंने उन्हें भरसक समझने की कोशिश की। मैंने लोगों की परेशानियों और उनके उपायों पर बातें कीं। जल्द ही लोगों की संख्या बहुत ज्यादा हो गई और मेरे घुटने का दर्द बदस्तूर-ऐसे में, मैंने लोगों को महज देखना और सुनना शुरू कर दिया। 

यात्रा में शोर बहुत होता था। लोग नारे लगाते, तस्वीरें खींचते, बतियाते और धकियाते चलते। रोज का यही क्रम था। प्रतिदिन 8-10 घंटे मैं सिर्फ लोगों की बातें सुनता और घुटने के दर्द को नजरअंदाज करने की कोशिश करता। फिर एक दिन, मैंने एकदम अनजाने और अप्रत्याशित मौन का अनुभव किया। सिवाय उस व्यक्ति की आवाज के-जो मेरा हाथ पकड़े मुझसे बात कर रहा था। मुझे और कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था। मेरे भीतर की आवाज, जो बचपन से मुझसे कुछ कहती-सुनती आ रही थी, खामोश होने लगी। ऐसा लगा जैसे कोई चीज हमेशा के लिए छूट रही हो। वह एक किसान था और मुझे अपनी फसल के बारे में बता रहा था। उसने रोते हुए कपास की सड़ी हुई लडिय़ां दिखाईं, मुझे उसके हाथों में बरसों की पीड़ा दिखाई पड़ी। अपने बच्चों के भविष्य को लेकर उसका डर मैंने महसूस किया। उसकी आंखों के कटोरे तमाम भूखी रातों का हाल बताते थे। उसने कहा कि अपने मरणासन्न पिता के लिए वह कुछ भी नहीं कर पाया। उसने कहा कि कभी-कभी अपनी पत्नी को देने के लिए उसके हाथ में एक कौड़ी भी नहीं होती। 

शर्मिंदगी और विपत्ति के वे लम्हे जो उसने अपनी जीवनसाथी के सामने महसूस किए, मानो मेरे दिल में कौंध गए। मैं कुछ बोल नहीं पाया। बेबस होकर मैं रुका और उस किसान को बांहों में भर लिया। अब बार-बार यही होने लगा। उजली हंसी वाले बच्चे आए, माताएं आईं, छात्र आए, सबसे मिलकर यही भाव बार-बार मुझ तक आया। ऐसा ही अनुभव दुकानदारों, बढ़इयों, मोचियों,  नाइयों, कारीगरों और मजदूरों के साथ भी हुआ। फौजियों के साथ यही महसूस हुआ। अब मैं भीड़ को, शोर को और खुद को सुन ही नहीं पा रहा था। मेरा ध्यान उस व्यक्ति से हटता ही नहीं था जो मेरे कान में कुछ कह रहा होता। आसपास का शोरगुल और मेरे भीतर छिपा हुआ अहर्निश मुझ पर फैसले देने वाला आदमी  न जाने कहां गायब हो चुका था। जब कोई छात्र कहता कि उसे फेल होने का डर सता रहा है, मुझे उसका डर महसूस होता। चलते-चलते एक दिन, सड़क पर भीख मांगने को मजबूर बच्चों का एक झुंड मेरे सामने आ गया। वे बच्चे ठंड से कांप रहे थे। उन्हें देखकर मैंने तय किया जब तक ठंड सह सकूंगा, यही टी-शर्ट पहनूंगा।  

मेरी श्रद्धा का कारण अचानक खुद-ब-खुद मुझ पर प्रकट हो रहा था। मेरी भारत माता-जमीन का टुकड़ा-भर नहीं, कुछ धारणाओं का गुच्छा-भर भी नहीं है, न ही किसी एक धर्म, संस्कृति या इतिहास-विशेष का आख्यान, न ही कोई खास जाति-भर। बल्कि हरेक भारतीय की पारा-पारा आवाज है भारत माता-चाहे वह कमजोर हो या मजबूत। उन आवाजों में गहरे पैठी जो ख़ुशी है, जो भय और जो दर्द है, वही है भारत माता। भारत माता की आवाज को सुनने के लिए मेरी अपनी आवाज को, मेरी इच्छाओं को, मेरी आकांक्षाओं को चुप होना पड़ेगा।-राहुल गांधी 

IPL
Royal Challengers Bengaluru

190/9

20.0

Punjab Kings

184/7

20.0

Royal Challengers Bengaluru win by 6 runs

RR 9.50
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!