भाजपा अपने घोषणा पत्र को लागू करने की ‘जल्दबाजी’ में

Edited By ,Updated: 23 Jan, 2020 04:01 AM

bjp in haste to implement its manifesto

केरल के मुख्यमंत्री पिनारई विजयन विवादास्पद नागरिकता संशोधन कानून (सी.ए.ए.) का विरोध करके अग्रणी बन चुके हैं। उन्होंने घोषणा की है कि वामदलों द्वारा शासित राज्य संसद द्वारा पारित इस कानून को लागू नहीं करेंगे। वहीं पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन...

केरल के मुख्यमंत्री पिनारई विजयन विवादास्पद नागरिकता संशोधन कानून (सी.ए.ए.) का विरोध करके अग्रणी बन चुके हैं। उन्होंने घोषणा की है कि वामदलों द्वारा शासित राज्य संसद द्वारा पारित इस कानून को लागू नहीं करेंगे। वहीं पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह की कांग्रेस सरकार ने एक कदम आगे बढ़ते हुए राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर की प्रक्रिया से संबंधित दस्तावेज में संशोधन करने के साथ-साथ सी.ए.ए. को खत्म करने की मांग की है।

केरल सरकार में सी.ए.ए. का विरोध इसी तथ्य से उपजा है कि यह संविधान की मूल भावना धर्मनिरपेक्षता तथा समानता का उल्लंघन है। यह नया कानून पूरी तरह से असंवैधानिक है तथा सी.ए.ए.-एन.आर.सी. दोनों ही भेदभावपूर्ण हैं। विधानसभा में प्रस्ताव पारित करने तथा सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने से राज्य के गवर्नर तथा विजयन सरकार के बीच तनातनी बन गई है। 

वहीं पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने हिटलर के अधीन जर्मनी में जो हुआ तथा भारत में मोदी सरकार के अंदर जो घटित हो रहा है उसे एक समान बताया है। कैप्टन ने कहा है कि विवादास्पद सी.ए.ए. भारत के धर्मनिरपेक्ष धागे के विरुद्ध है। पंजाब विधानसभा में बोलते हुए उन्होंने कहा कि जैसी घटनाएं अब देखी जा रही हैं वैसी जर्मनी में 1930 में देखी गईं जब एडोल्फ हिटलर अपनी चरमसीमा पर था। उसके विरुद्ध जर्मन वासी तब नहीं बोल पाए तथा उनको इस बात का बाद में अफसोस हुआ। मगर हमें अभी ही बोलना होगा क्योंकि हम बाद में पछताना नहीं चाहते। 1930 में हिटलर के जर्मनी की सफाई की गई और अब ऐसा ही भारत में किया जा रहा है। 

घोषणा पत्र का 90 प्रतिशत हिस्सा लागू कर दिया है
भाजपा के गठबंधन सहयोगी शिरोमणि अकाली दल ने संसद में सी.ए.ए. के पक्ष में वोट किया था मगर उसके बाद यू-टर्न लेते हुए पंजाब में इसने राज्य विधानसभा में सी.ए.ए. के विरुद्ध कांग्रेस सरकार के प्रस्ताव का समर्थन किया। सी.ए.ए. के पास होने के बाद से ही पक्ष और विपक्ष में बहस जारी है। केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह यह दोहरा रहे हैं कि इस कानून को लेकर कोई भी समझौता नहीं होगा और बिना किसी समझौते के वह इसे लागू करके रहेंगे।

देश भर से इसके खिलाफ प्रदर्शनों की रिपोर्टें आ रही हैं जिसमें युवक तथा युवतियां मुख्य विपक्षी दलों के समर्थन के बिना इन प्रदर्शनों में भाग ले रहे हैं। लगता है भाजपा किसी तरह अपने घोषणा पत्र को लागू करने में जल्दबाजी में है। वास्तविकता यह है कि शाह ने कहा था भाजपा के सत्ता में लौटने के बाद एक साल से भी कम समय के भीतर पार्टी ने अपने घोषणा पत्र का 90 प्रतिशत हिस्सा लागू कर दिया है। वहीं लखनऊ में शाह ने कहा कि मैं आज लखनऊ की भूमि से डंके की चोट पर यह कहने आया हूं कि जिसको विरोध करना है वह कर ले मगर यह कानून वापस नहीं होने वाला है। 

सरकार ने इस कानून से प्रभावित होने वाले लोगों तक अपनी पहुंच बनाने का कोई प्रयास नहीं किया। हाल ही के घटनाक्रमों का गम्भीर असर यह देखने को मिल रहा है कि केन्द्र तथा राज्य सरकारों के रिश्तों में कड़वाहट आई है। सी.ए.ए. के अलावा 15वें वित्त आयोग, जी.एस.टी., भूमि अधिग्रहण पालिसी, नई शिक्षा नीति पर भाषाई बंटवारा तथा प्रस्तावित आल इंडिया न्यायिक सेवाओं को लेकर भी मतभेद नजर आए हैं। इस मसले को विभिन्न राजनीतिक दलों ने देश के सर्वोच्च न्यायालय के सहारे छोड़ दिया है। इस दौरान ऐसे राजनीतिक दलों को भड़काऊ बयानबाजी से भी परहेज करना होगा।-विपिन पब्बी
 

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