क्या हम ‘भारत माता’ की पूजा नहीं कर सकते

Edited By ,Updated: 15 Sep, 2022 06:28 AM

can t we worship  bharat mata

पूछो क्यों? आप सबको नहीं लगता कि ‘भारत माता’ वास्तव में देवी है? ‘भारत माता’ देश में सर्वत्र विद्यमान है, ‘भारत माता’ के चरण सर्वत्र फैले हुए हैं, ‘भारत माता’ के हाथों का विस्तार सर्वत्र एक

पूछो क्यों? आप सबको नहीं लगता कि ‘भारत माता’ वास्तव में देवी है? ‘भारत माता’ देश में सर्वत्र विद्यमान है, ‘भारत माता’ के चरण सर्वत्र फैले हुए हैं, ‘भारत माता’ के हाथों का विस्तार सर्वत्र एक सा है, ‘भारत माता’ के कान सब कुछ सुन रहे हैं, ‘भारत माता’ की करुणामयी आंखों का सब दर्शन कर रहे हैं, दक्षिण में समुद्र ‘भारत माता’ के चरण धो रहा है, उत्तर में उत्तंग हिमालय मणि-मानकों जडि़त इस ‘भारत माता’ का मुकुट है, अरावली जैसे छोटे-मोटे पहाड़ ‘भारत माता’ के उरोज हैं, नदियां-दरिया इसकी धमनियां हैं, लहलहाते खेत-खलिहान ‘भारत माता’ के रोएं हैं, समस्त वायुमंडल इस ‘भारत माता’ के प्राण हैं, बहती हवा ‘भारत माता’ की सांसें हैं, भारत के गरीब-अमीर, ऊंच-नीच, क्षत्रिय-ब्राह्मण सब इस ‘भारत माता’ की पूंजी हैं, सब जाति-समूह एक इसी ‘भारत माता’ के पुजारी हैं, खेतों का अन्न, फल-फूल ‘भारत माता’ द्वारा दिया जा रहा प्रसाद है, मंदिरों में स्थापित प्राचीन मूर्तियां लम्बी अवधि से गहरी निद्रा में हैं। 

लगता है इन मूर्तियों ने भारत को भुला दिया है। हमें मंदिरों में एक सजीव मूर्ति स्थापित करनी है। और वह मूर्ति सिर्फ और सिर्फ ‘भारत माता’ की ही हो सकती है। वैष्णवी, काली और भगवान शंकर को भारत की चिंता ही नहीं। महंगाई, बेरोजगारी से ‘भारत माता’ कराह उठी है अत: हमें एक सजीव मूर्ति की अपेक्षा है। जो भारत के लोगों का दर्द है महसूस कर सके।

ऐसी मूर्ति, ऐसी प्रतिमा, मंदिरों में स्थापित हो जाए तो क्या हर्ज है? देखिए न, दक्षिण भारत के देवता शनिदेव के मंदिर उत्तर भारत में बन गए हैं, साईं बाबा की प्रतिमाओं का धड़ाधड़ मंदिरों में अनावरण हो रहा है तो ‘भारत माता’ की प्रतिमाएं मंदिरों में लग जाएं तो क्या हर्ज है जीवंत ऐश्वर्य की प्रतिमा मंदिरों में स्थापित हो जाए तो हमें फिर देशभक्ति के उपदेश नहीं देने पड़ेंगे। मूर्तिकार, कलाकार, कवि, शायर, साहित्यकार तनिक अपने औजारों को इस दिशा की ओर मोड़ें। 

कलाकार ‘भारत माता’ के उक्त शब्द चित्रों को मूर्त रूप दें। अपनी कल्पना से ‘भारत माता’ की भव्य मूर्ति गढ़ें। फिर वह ‘भारत माता’ की मूर्ति मंदिरों में लगनी शुरू हो जाए। अपने आप एक विशाल भारत का चित्र उभर आएगा। ‘भारत माता’ के मंदिर देश में बन जाएं तो एक विचार मंदिरों से जाने लगेगा। देश भक्ति का कत्र्तव्य बोध पनपने लगेगा। पुरानी देव-प्रतिमाओं ने हमें भुला दिया है। 

याद रखिए, भारत के प्रबुद्ध समाज में सदियों के परिश्रम से अनेक रूढिय़ां, मान्यताएं, घिसे-पिटे विचारों को तिलांजलि दी है तो एक रूढि़ और टूट जाए, तो क्या हर्ज है? मंदिरों में ‘भारत माता’ की प्रतिमा लग जाए तो क्या हर्ज है? देश की जनता भारत माता से जुड़ जाए तो क्या हर्ज है? देशभक्ति का भाव मंदिरों से जाने लगे तो क्या हर्ज है? यदि मैं गिनाने लगूं तो हमने कम रूढिय़ां नहीं तोड़ीं। तनिक मुझे निम्र रूढिय़ों पर हुए प्रहारों की चर्चा कर लेने दें : 

(क) सती-प्रथा पर प्रहार : बंगाल में राजा राम मोहन राय की भाभी का उनकी आंखों के सामने चिता-भस्म कर दिया। उन्होंने ‘ब्रह्म समाज’ की स्थापना कर सती प्रथा बंद करवाने का आंदोलन चलाया। रूढिय़ां सती प्रथा की टूटीं और उनके प्रयत्नों से 1829 में सती प्रथा खत्म हुई। एक क्रूर प्रथा समाप्त हुई। 

(ख) लड़कियों का पढऩा-पढ़ाना प्रतिबंधित था: तनिक सोचो आधे समाज का पढऩा ही बंद था। इस प्रथा पर पहला प्रहार किया ज्योतिबा फुले और उनकी धर्मपत्नी सावित्री बाई फुले ने। उन्होंने 1848 में पहला लड़कियों का स्कूल पुणे के भिंडेवाला में शुरू किया। आर्य समाज के स्वामी दयानंद, श्री गुरु नानक देव जी जैसे फरिश्ता व्यक्तियों ने नारी शिक्षा के हक में आवाज उठाई तो लड़कियों की पढ़ाई का क्रम शुरू हो गया। रूढिय़ां टूटीं तो समाज का एक वर्ग भी कल्पना चावला बन अंतरिक्ष को छूकर आ गया। इसी प्रकार इस फुले दम्पति ने नीच जाति के उत्थान के लिए अपनी आवाज बुलंद की। 

(ग) 1849 में छुआछूत समाप्ति की ओर समाज आगे बढ़ा : इसी भारतीय समाज ने 1849 में छुआछूत जैसी और जाति प्रथा जैसी रूढिय़ों पर प्रहार किया। छुआछूत और जात-पात की बातों को अपराध घोषित किया। 1856 में विधवाओं को पुनॢववाह करने का कानून बना। 1860 में ‘ब्रह्म समाज’ के ही केशव चंद्र सेन ने अपने हाथों से नीची जाति वालों को भोजन करवाया। 1856 में ही वह बम्बई आए और ‘विधवा मंडल’ की स्थापना की। महादेव गोविंद रानाडे सरीखे व्यक्तियों के सहयोग से विधवाओं को पुन: विवाह करने की स्वतंत्रता मिली। 

(घ) शिशु हत्या पर प्रतिबंध : समाज की विडम्बना देखिए लड़की को पैदा होते ही मार दिया जाता। यहां तक कि लड़कियों को जिंदा ही धरती में दबा दिया जाता। 1795 में ‘बंगाल रैगुलेशन एक्ट’ द्वारा शिशु हत्या पर प्रतिबंध लगा दिया गया। शिशु वध अपराध घोषित किया गया। ऐसी क्रूर रूढिय़ों ने समाज का रूप ही विकृत कर दिया था। आज समाज ने लाखों वर्षों पुरानी परम्पराओं को तोड़ा है। ‘हिंदू-मैरिज-एक्ट’ द्वारा लड़कियों को प्रताडि़त करना निषेद्ध है। विवाहित महिलाएं सम्पत्ति में पूर्ण अधिकारी हैं। समाज की यह रूढिय़ां यूं ही नहीं टूटीं। समाज यूं ही नहीं बदला। अनेक परिवर्तन हुए, अनेकों अभी होंगे पर जरूरी यह है कि वह कुप्रथाएं जिनसे समाज का विकास रुक जाता है उन्हें अपराध की श्रेणी में रखा जाए।-मा. मोहन लाल (पूर्व परिवहन मंत्री, पंजाब)

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!