सुप्रीम कोर्ट की हीरक जयंती और न्यायपालिका में सुधार

Edited By ,Updated: 29 Jan, 2024 03:14 AM

diamond jubilee of supreme court and reforms in judiciary

सत्तारूढ़ भाजपा का राम राज्य का वादा हो या फिर विपक्षी नेता राहुल गांधी की न्याययात्रा। दोनों के केंद्र में न्यायपालिका है। यह एक सुखद संयोग है कि पूरा देश गणतंत्र के साथ सुप्रीम कोर्ट की 75वीं हीरक जयंती मना रहा है।

सत्तारूढ़ भाजपा का राम राज्य का वादा हो या फिर विपक्षी नेता राहुल गांधी की न्याययात्रा। दोनों के केंद्र में न्यायपालिका है। यह एक सुखद संयोग है कि पूरा देश गणतंत्र के साथ सुप्रीम कोर्ट की 75वीं हीरक जयंती मना रहा है। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डिजी एस.सी.आर. लांच किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के फैसले नि:शुल्क ऑनलाइन उपलब्ध हैं। समारोह के एक दिन पहले छुट्टी के दिन सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों को कोलकाता हाईकोर्ट के जजों के विवाद पर आपातकालीन सुनवाई करनी पड़ी। ऐसे अनेक मामलों और बढ़ रहे विवादों से साफ है कि प्रतीकात्मक समारोहों से परे जाकर न्यायपालिका को ठोस सुधारों की जरूरत है। 

कोलकाता हाईकोर्ट में जजों का भद्दा विवाद-पश्चिम बंगाल के मैडीकल कॉलेजों में फर्जी प्रमाण पत्र से दाखिले पर जस्टिस गंगोपाध्याय की सिंगल बैंच ने पूरी सुनवाई के बगैर सी.बी.आई. जांच के आदेश दे दिए। उसके बाद राज्य सरकार की तरफ से एडवोकेट जनरल की मैशनिंग पर जस्टिस सोमेन सेन और उदय कुमार की डिवीजन बैंच ने सिंगल जज के आदेश पर रोक लगा दी। उसी दिन शाम को सिंगल जज ने डिवीजन बैंच के आदेश को दरकिनार करते हुए एडवोकेट जनरल से सारे दस्तावेज सी.बी.आई. को देने के आदेश दिए। अगले दिन डिवीजन बैंच ने सिंगल जज के आदेश को निरस्त कर दिया। उसके बाद सिंगल जज ने नया आदेश पारित करते हुए कहा कि डिवीजन बैंच के आदेश पर अमल करने की जरूरत नहीं है। 

जस्टिस गंगोपाध्याय ने यह भी कहा कि डिवीजन बैंच में शामिल जस्टिस सेन की सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस और ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी के साथ मिलीभगत है। उसके जवाब में टी.एम.सी. के नेताओं और एडवोकेट जनरल ने कहा है कि जस्टिस गंगोपाध्याय को जज के तौर पर फैसला देने की बजाय सीधे भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़कर राजनीति करनी चाहिए। चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली 5 जजों की बैंच ने सिंगल और डबल बैंच की कार्रवाई पर रोक लगाकर पूरे मामले को अपने पास ले लिया है। लेकिन इससे विवाद खत्म नहीं हुआ है। 

जस्टिस गंगोपाध्याय का विवादों से पुराना नाता है। पिछले साल टैलीविजन इंटरव्यू में उनके  राजनीतिक बयानों की सुप्रीम कोर्ट ने निंदा की थी। उसके बाद गंगोपाध्याय ने रजिस्ट्रार जनरल को नोटिस जारी कर दिया था। उसके बाद मई में उन्होंने 32,000 टीचरों की नियुक्ति में भ्रष्टाचार के आरोपों पर पूरी भर्ती को ही निरस्त कर दिया था। उस मामले में भी डिवीजन बैंच और फिर सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा। 50 करोड़ की मनी लान्ड्रिंग के मामले में सितंबर मे उन्होंने सी.आई.डी. पर 5 लाख का जुर्माना ठोक दिया था। उसके बाद उन्होंने एक मामले में राज्य के कानून मंत्री को तलब कर लिया था। इन सारे मामलों में 5 बातें साफ हैं। पहला,पश्चिम बंगाल में भर्तियां और दूसरे मामलों मे बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार है। दूसरा,राज्य सरकार उन मामलों को पुलिस के माध्यम से दबाना चाहती है। 

तीसरा,जस्टिस गंगोपाध्याय राजनीति से प्रेरित होकर ऐसे मामलों में सभी पक्षों को सुने बगैर सी.बी.आई. और ई.डी. को भेजने के चक्कर में डिवीजन बैंच के आदेशों को भी ठेंगा दिखा रहे हैं। चौथा, इन सभी मामलों में पर्दे के पीछे से केंद्र सरकार की सक्रिय भूमिका है। 5वां, केंद्र की ई.डी. और सी.बी.आई. के साथ राज्यों मे पुलिस के बाद जजों की सियासी नाकेबंदी होना संघीय तौर पर खतरनाक और संवैधानिक व्यवस्था के लिए शर्मनाक है। 

न्यायपालिका की साख बहाली के लिए जरूरी सुधार-अगले आम चुनावों में पूर्ण बहुमत मिलने पर मोदी सरकार अपने तीसरे कार्यकाल में जजों की नियुक्ति प्रणाली वाले एनजेएसी कानून को नए तरीके से लागू कर सकती है। लेकिन उसके पहले इस विवाद से जुड़े 3 बड़े पहलुओं पर सुप्रीम कोर्ट को स्पष्ट नियम बनाने की जरूरत है। पहला, सॉलिसिटर जनरल के अनुसार अपील मैमो के बगैर डिवीजन बैंच ने जो स्थगन आदेश दिया था वह जजों के अधिकार क्षेत्र से बाहर है।  लेकिन इस तरीके की सुनवाई हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में रोजाना होती है। इसलिए बगैर अपील के मैंशङ्क्षनग और सुनवाई के बारे में स्पष्ट नियम होने चाहिएं। दूसरा, छुट्टियों के दिन सुनवाई। 

राम मंदिर के उद्घाटन पर अवकाश की घोषणा के खिलाफ लॉ स्टूडैंट्स ने पी.आई.एल. दायर किया। बाम्बे हाईकोर्ट ने छुट्टी के दिन सुनवाई करके उसे डिसमिस कर दिया। लाखों बेगुनाह लोग जेलों में बंद हैं। उनकी जमानत की अर्जी को छोड़कर बेतुकी पी.आई.एल. पर छुट्टियों के दिन सुनवाई के लिए क्या  छात्रों के साथ, हाईकोर्ट की रजिस्ट्री और जज भी दोषी नहीं हैं? इसलिए देर रात या छुट्टियों के दिन सुनवाई के लिए स्पष्ट नियम बनाने की जरूरत है। तीसरा, जनता या अधिकारी जजों का आदेश नहीं माने तो उनके खिलाफ अवमानना का मामला चलता है। लेकिन अगर हाईकोर्ट के जज ही डिवीजन बैंच या सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को नहीं मानें तो उनके खिलाफ कैसे कार्रवाई हो? 

सनद रहे कि आजादी के बाद अभी तक किसी भी जज को महाभियोग के तहत नहीं हटाया गया है। जजों को संवैधानिक तौर पर सुरक्षा मिलने की वजह से उनके खिलाफ ट्रांसफर के अलावा अन्य आपराधिक या अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं हो सकती है। बहुमत वाली सरकार के दौर में नेताओं और अफसरों के हस्तक्षेप से बचने के लिए पं. बंगाल मामले से सबक लेते हुए जजों को अपनी कार्यप्रणाली जल्द सुधारने की जरूरत है। कानून का पालन करके जल्द न्याय देने वाले सिस्टम में ही जजों की साख और रसूख बरकरार रह सकेगा।-विराग गुप्ता(एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट) 
 

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