डा. अम्बेदकर ने श्रमिकों के ‘अधिकारों’ की नींव रखी

Edited By Updated: 02 May, 2020 03:48 PM

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श्रमीक को सम्मानित करने के लिए 1 मई को अन्तर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस मनाया जाता है। देश के भाग्य को आकार देने में श्रम की एक निॢववाद भूमिका होती है। पुराने समय से मजदूर वर्ग ने अधिक से अधिक कारणों के लिए संघर्ष और बलिदान किया है।


श्रमीक को सम्मानित करने के लिए 1 मई को अन्तर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस मनाया जाता है। देश के भाग्य को आकार देने में श्रम की एक निॢववाद भूमिका होती है। पुराने समय से मजदूर वर्ग ने अधिक से अधिक कारणों के लिए संघर्ष और बलिदान किया है। पहले स्वतंत्रता के लिए, फिर एक-एक ईंट जोड़ कर राष्ट्र का निर्माण किया है। कोविड-19 के खिलाफ चल रही लड़ाई में श्रमिकों सहित सभी के लिए अस्थायी कठिनाई ला दी है लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जीवन को आजीविका से बड़ा होने के रूप में तोला है और अब इस संकट को अवसर में बदलने का खाका तैयार किया है। अनुकूलनशीलता, दक्षता, समावेषिता, अवसर और सार्वभौमिकता के माध्यम से श्रमिकों के लिए भारत निर्माण करने के लिए और अधिक अवसर खुलेंगे। 

कई नेता श्रमिकों के लिए एक प्रकाश स्तम्भ थे और संविधान निर्माता डाक्टर बी.आर. अम्बेदकर उनमें से एक थे। गोलमेज सम्मेलन में अवसादग्रस्त वर्गों के प्रतिनिधि के रूप में अम्बेदकर ने क्रूर जमींदारों के चंगुल से किसानों को आजाद कराने, उनके लिए सभ्य काम करने की स्थिति, जीवित मजदूरी तथा उनकी स्वतंत्रता के लिए आग्रह किया। उन्होंने उन धार्मिक बुराइयों को दूर करने के लिए भी संघर्ष किया जिन्होंने गरीबों  के जीवन को प्रभावित किया।  उन्होंने भूमिहीन, गरीब काश्तकारों, कृषकों और श्रमिकों की जरूरतों और शिकायतों को पूरा करने के लिए 1936 में एक व्यापक कार्यक्रम के साथ इंडीपैंडेंट लेबर पार्टी (आई.एल.पी.) का गठन किया। 1937 में नवनिर्वाचित भारत सरकार अधिनियम 1935 के तहत बॉम्बे विधानसभा के पहले चुनाव में लड़ी गई 17 सीटों में से 15 सीटें जीत कर आई.एल.पी. ने शानदार सफलता हासिल की। 17 सितम्बर 1937 को बॉम्बे विधानसभा के पूना सत्र के दौरान उन्होंने कोंकण में भूमि अवधि की खोती प्रणाली को समाप्त करने के लिए एक विधेयक प्रस्तुत किया। 

अम्बेदकर ने औद्योगिक विवाद विधेयक (1937) के पेश करने का विरोध किया क्योंकि इसने श्रमिकों के हड़ताल करने के अधिकार को हटा दिया। श्रम मामलों के बारे में उनके ज्ञान को 1942 से 1946 तक वायसराय की कार्यकारी परिषद के श्रम सदस्य के रूप में सार्वभौमिक रूप से स्वीकार किया तथा प्रदॢशत किया गया। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जब विश्व व्यवस्था पिघल रही थीं। तब अम्बेदकर भारतीय श्रम का मार्गदर्शन कर रहे थे। बदलती अर्थव्यवस्था ने उद्योगों के विस्तार के अवसर प्रदान किए। जबकि उद्यमी और प्रबंधक समृद्धि की आशा कर सकते थे। 

श्रम को उसका बनता हिस्सा नहीं दिया गया था। अम्बेदकर ने सरकार की श्रम नीति के लिए बुनियादी ढांचे की नींव रख कर श्रम कल्याण के लिए उपाय किए और उनको शुरू किया। उन्होंने गुंजलदार समस्याओं का निवारण किया तथा कर्मचारियों तथा नियोक्ताओं से समान रूप से आदर और सम्मान जीता। 
8 नवम्बर 1943 को भीमराव अम्बेदकर द्वारा पेश इंडियन ट्रेड यूनियन (संशोधन) विधेयक ने नियोक्ताओं को व्यापार संघों को स्वीकार करने के लिए मजबूर किया। 8 फरवरी 1944 को विधानसभा में कोयला खदानों में भूमिगत काम पर महिलाओं के रोजगार पर प्रतिबंध की बहस के दौरान डाक्टर अम्बेदकर ने कहा, ‘‘यह पहली बार है कि मुझे लगता है कि किसी भी उद्योग में समान काम के लिए समान वेतन जो बिना लैंगिक भेदभाव के सिद्धांत साबित किया गया है।’’ यह एक ऐतिहासिक क्षण था खान मातृत्व लाभ (संशोधन) विधेयक 1943 के माध्यम से, उन्होंने मातृत्व लाभ के साथ महिला श्रमिकों को सशक्त बनाया। 


इतिहास हमेशा एक उदाहरण नहीं है, यह अधिक बार चेतावनी भी है 26 नवम्बर, 1945 को नई दिल्ली में आयोजित भारतीय श्रम सम्मेलन को संबोधित करते हुए, अम्बेदकर ने प्रगतिशील श्रम कल्याण कानून लाने की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया। ‘‘मजदूर अच्छी तरह से कह सकता है कि इस तथ्य को समझने के लिए ब्रिटिश को श्रम कानून का उचित कोड होने में 100 वर्ष लग गए। कोई तर्क नहीं कि भारत में भी हमें 100 वर्ष लगने चाहिएं। इतिहास हमेशा एक उदाहरण नहीं है। अधिक बार यह एक चेतावनी है।’’ 

कम्युनिस्टों ने अपने अंत की प्राप्ति के लिए कितने लोगों की हत्याएं कीं
अम्बेदकर ने माक्र्सवादी स्थिति को स्वीकार नहीं किया कि निजी सम्पत्ति का अंत गरीबी और पीड़ा को समाप्त करेगा। बुद्ध या कार्ल माक्र्स बारे अम्बेदकर लिख्रते हैं, ‘‘क्या कम्युनिस्ट यह कह सकते हैं कि अपने मूल्यवान अंत को प्राप्त करने में उन्होंने अन्य मूल्यवान सिरों को नष्ट नहीं किया है? उन्होंने निजी सम्पत्ति को तबाह कर दिया। यह मानते हुए कि यह एक मूल्यवान अंत है, क्या कम्युनिस्ट यह कह सकते हैं कि इसे प्राप्त करने की प्रक्रिया में अन्य मूल्यवान अंत को नष्ट नहीं किया है। अपने अंत की प्राप्ति के लिए उन्होंने कितने लोगों की हत्याएं की हैं? क्या मानव जीवन का कोई मूल्य नहीं है। क्या मानव जीवन का कोई मूल्य नहीं है? क्या वे मालिक की जान लिए बिना सम्पत्ति नहीं ले सकते थे?’’


श्रम बिरादरी एक विशेष सलामी की हकदार है
अम्बेदकर से प्रेरित होकर, वर्तमान मोदी सरकार ने श्रमिकों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिए कदम उठाए हैं। उदाहरण के तौर पर, प्रधानमंत्री ने वृद्धावस्था में असंगठित मजदूरों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए फरवरी 2019 में प्रधानमंत्री श्रम योजना-धन योजना शुरू की थी। श्रम सुविधा पोर्टल जैसे तकनीकी हस्तक्षेप के माध्यम से श्रम कानून के परिवर्तन में पारदॢशता और जवाबदेही सुनिश्चित की जाती है। सरकार मौजूदा केंद्रीय श्रम कानूनों के प्रावधानों को 4 श्रम संहिताओं-मजदूरी पर श्रम संहिता, औद्योगिक संबंधों पर, सामाजिक सुरक्षा एवं कल्याण तथा स्वास्थ्य और कार्य स्थितियों को सरलीकृत, मिश्रित करने तथा तर्कसंगत बनाने के लिए कार्य कर रही है। कोविड महामारी द्वारा लाई गईं असाधारण परिस्थितियों में श्रम बिरादरी एक विशेष सलामी की हकदार है। 29 मार्च को अपने मन की बात प्रसारण के दौरान पी.एम. मोदी ने असुविधा के लिए माफी मांगी।

उन्होंने कहा, ‘‘मैं सभी देशवासियों से माफी मांगता हूं और मैं दृढ़ता से अपने दिल की गहराई से महसूस करता हूं कि आप मुझे माफ कर देंगे क्योंकि कुछ निर्णय लेने से, जिसके परिणामस्वरूप आपके लिए असंख्य कष्ट थे और जब मेरे वंचित भाइयों और बहनों की बात आती है, तो वह सोच रहे होंगे कि उनके पास किस तरह के प्रधानमंत्री हैं, जिन्होंने उन्हें कगार पर धकेल दिया है। मेरी पूरी तरह से माफी विशेष रूप से उनके लिए है जिन्होंने महामारी के खिलाफ लड़ाई लड़ी।’’ इसका ज्यादातर श्रेय श्रम बिरादरी की दृढ़ता को जाता है। जैसा कि हम राष्ट्र निर्माण में अनगिनत मजदूरों के असंख्य योगदान को याद करते हैं श्रममेव जैसी बढ़ती भावना के साथ हमें अम्बेदकर के योगदान को याद रखना चाहिए।

-अर्जुन राम मेघवाल
(केंद्रीय मंत्री) भाजपा

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