झूठ के ‘ढेर’ पर खड़ा ड्रैगन

Edited By Updated: 15 Jun, 2020 03:48 AM

dragon standing on the pile of lies

चीन झूठ के ढेर पर खड़ा है। प्रपंच की यह रेत किसी भी क्षण पैरों तले से दरक सकती है। वह विश्व विजेता जैसी धौंस दिखाने की भूल नहीं कर सकता। चीन भी इसे समझता है। यही वजह है कि अब वास्तविक नियंत्रण रेखा से उसके जवान पीछे लौटने लगे हैं। पूर्वी लद्दाख और...

चीन झूठ के ढेर पर खड़ा है। प्रपंच की यह रेत किसी भी क्षण पैरों तले से दरक सकती है। वह विश्व विजेता जैसी धौंस दिखाने की भूल नहीं कर सकता। चीन भी इसे समझता है। यही वजह है कि अब वास्तविक नियंत्रण रेखा से उसके जवान पीछे लौटने लगे हैं। पूर्वी लद्दाख और सिक्किम में बना तनाव पूरा नहीं तो कुछ-कुछ छंटने लगा है। 

भारत और चीन के  बीच सीमा विवाद लंबे समय से चला आ रहा है। मगर ताजा प्रकरण 5 मई को शुरू हुआ, जब पैंगोंग त्सो के उत्तरी किनारे पर चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पी.एल.ए.) और भारतीय जवानों में झड़प हुई। कुछ को हल्की चोट आई। उसके बाद 8 मई को पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा के करीब पांच और जगह जवानों का आमना-सामना हुआ। 9 मई को उत्तरी सिक्किम में भी चीन ने भारत को उकसाने की कार्रवाई की। 14 मई को सैटेलाइट तस्वीरों से पता चला कि चीन ने गलवान घाटी में 80 से 100 टैंट लगा लिए हैं। टैंक और बड़ी गाडिय़ां खड़ी हैं। बंकर बनाने का काम चल रहा है। पैंगोंग त्सो झील के उत्तरी किनारे पर भी चीनी सेना ने टैंट लगा लिए थे। डेमचौक में भी ऐसा ही हो रहा था। 

अब सवाल उठता है कि चीन ऐसा क्यों कर रहा है? भारत को क्यों उकसा रहा है? इसमें उसका क्या हित है? क्या वह कोई बड़ा खेल खेलना चाह रहा है? इन सवालों को समझने के लिए पूरे विवाद को समझना और उसकी जड़ तक जाना जरूरी है। 

आजादी के बाद से ही दोनों देशों के बीच सीमा का विवाद चला आ रहा है। इसी वजह से 1962 की लड़ाई हुई। इस लड़ाई में दोनों सेनाओं की जो स्थिति थी उसे ही वास्तविक नियंत्रण रेखा (एल.ए.सी.) मान लिया गया। मगर इस वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भी चीन सहमत नहीं है और कई जगह आगे बढऩे की कोशिश करता रहता है।

उसकी ये हरकतें ही विवाद को जन्म देती हैं। विवाद न हो, इसके लिए वाजपेयी सरकार के समय वर्ष 2000 में दोनों देशों ने सीमा निर्धारण पर काम शुरू किया था। तय यह किया गया था कि दोनों देश वास्तविक नियंत्रण रेखा का नक्शा बनाकर आदान-प्रदान करेंगे। शुरूआत मध्य सैक्टर से की गई और वहीं काम अटक गया। चीन जिसे वास्तविक नियंत्रण रेखा बता रहा था, वह उसकी बढ़ती महत्वाकांक्षा का प्रतीक था। वह भारतीय हिस्सों को भी अपना बता रहा था, इसलिए नक्शा अंतिम रूप नहीं ले सका। 

चीन ने अपने बारे में दुनिया में बहुत से भ्रम गढ़े हैं। वह बहुत चालाकी से दुनिया का ताकतवर देश होने की छवि बनाना चाहता है, मगर असल में ऐसा है नहीं। चीन के ऐसे ही 12 मिथक हैं, जिनका दुनिया के सामने पर्दाफाश करना बेहद जरूरी है। भारत को अब इसके लिए रणनीति बनाकर काम करना चाहिए। ये भ्रम इस तरह हैं- 

1. पी.एल.ए. बहुत ताकतवर है 
यह भ्रम है कि चीन की सेना पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पी.एल.ए.) बहुत ताकतवर है। बहुत प्रशिक्षित है। असल में यह सिर्फ एक दिखावा है। 1967 और उसके बाद भी भारत ने कई बार चीन को पीछे हटने के लिए बाध्य किया है। अब जून 2020 में भी यही हो रहा है। 
2. चीनी उत्पाद
यह भी भ्रम है कि चीनी उत्पादों की तकनीक और गुणवत्ता उच्चकोटि की होती है। असल में चीन अमरीकी और दुनिया की तकनीकों को कॉपी-पेस्ट करता है, जो दोयम दर्जे का है। अधिकांश चीनी उत्पाद गुणवत्ता में बेहद निम्न श्रेणी के होते हैं।  
3. चीन के लोग खुशहाल और खुश हैं
यह एक बड़ा झूठ है, जो चीन दुनिया को दिखाने की कोशिश करता है। चीन के लोग कैसे खुश रह सकते हैं, जबकि उन पर इतनी बंदिशें हैं। पी.एल.ए. और चीन की पुलिस उन्हें चैन से जीने ही नहीं देती।
4. चीन की कोई कमजोरी नहीं
तिब्बत, हांगकांग, शिनजियांग, मंगोलिया, ताईवान, साऊथ चाइना-सी हर जगह चीन घरेलू मोर्चे पर जूझ रहा है, इसलिए चीन की कमजोरियां काफी बड़ी हैं। 
5. भारत-चीन बॉर्डर चिन्हित है 
यह भी एक भ्रम है। भारत और चीन सीमा पूरी तरह निर्धारित नहीं है। विवाद सिर्फ एल.ए.सी. पर ही नहीं है, बल्कि अक्साई चिन को लेकर सीमा पर भी विवाद है। 
6. एल.ए.सी. पर शांति रहती है
यह सही है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (एल.ए.सी.) पर 1975 के बाद से कोई गोली नहीं चली है। मगर सीमा को लेकर खींचतान 1950 के दशक में ही शुरू हो गई थी। 1962 में इसी वजह से युद्ध हुआ। 
7. तनातनी का कारण लोकल कमांडर
यह भी भ्रम है कि तनातनी दोनों तरफ के जवानों और कमांडरों में स्थानीय स्तर पर हो जाती है। असल में इसके पीछे चीन की महत्वाकांक्षाएं हैं। 
8. चीन की संस्कृति अधिक महान
यह चीन का प्रोपेगंडा है कि उसकी संस्कृति सबसे महान है। हकीकत यह है कि चीन को धर्म भी भारत से मिला है। बौद्ध धर्म भारत से ही चीन पहुंचा। श्रेष्ठता में भारतीय सभ्यता की तुलना दुनिया में किसी से नहीं हो सकती। 
9. 1962 का प्रचार
चीन का यह प्रचार कि उसने 1962 में बहुत बड़ी जीत दर्ज की थी, एक सफेद झूठ है। कुछ रणनीतिक बिंदुओं पर जरूर हार हुई थी। मगर रिजांग्ला, बुमला, वालोंग, हाईलोंग सब जगह जवानों ने डटकर चीन का मुकाबला किया था और मुंहतोड़ जवाब दिया। 
10. मनोवैज्ञानिक बढ़त
चीन खुद को मनोवैज्ञानिक रूप से काफी मजबूत दिखाने की कोशिश करता है। 1967 में नाथूला  और चो ला प्रकरण के बाद से स्थितियां बिल्कुल बदल गई हैं।  
11 .  तकनीकी ज्ञान 
यह भी एक बड़ा भ्रम चीन ने दुनिया में फैलाया है कि वह साइबर, स्पेस, आर्टीफिशियल इंटैलीजैंस के क्षेत्र में काफी आगे है। 
12. चीन पूरी तरह संगठित
यह सबसे बड़ा फरेब है। चीन का पूरा राजनीतिक सिस्टम क्रूर और अडिय़ल है, वह कभी भी टूट सकता है। चीन के लोग चाहते हैं कि उन्हें भी आजादी मिले, लोकतंत्र मिले। पी.आर.सी. और पी.एल.ए. की मनमानियों व अत्याचार से उन्हें मुक्ति मिले।-लैफ्टिनैंट जनरल गुरमीत सिंह(पूर्व उप-सेना अध्यक्ष)

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