चुनाव सुधार समय की मांग

Edited By ,Updated: 17 Jun, 2022 06:11 AM

election reform is the need of the hour

आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष में चुनाव आयोग और शक्तिशाली होना चाहता है। अपने 72 साल के लंबे एवं कटु अनुभवों के आधार पर चुनाव आयोग ने बड़े बदलाव की कार्य-योजना को मूर्त रूप दिया

आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष में चुनाव आयोग और शक्तिशाली होना चाहता है। अपने 72 साल के लंबे एवं कटु अनुभवों के आधार पर चुनाव आयोग ने बड़े बदलाव की कार्य-योजना को मूर्त रूप दिया है। नए मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार की अध्यक्षता में हुई मैराथन मीटिंग में 6 सिफारिशों की केन्द्र सरकार से प्रबल संस्तुति की गई है। बेशक, ये सारे प्रस्ताव अनमोल हैं। 

मसलन, एक उम्मीदवार, एक सीट का वक्त आ गया है। ओपीनियन और एग्जिट पोल पर रोक लगाई जानी चाहिए। राजनीतिक दलों का पंजीकरण रद्द करने का अधिकार आयोग को मिलना चाहिए। आधार कार्ड को वोटर आई.डी. से लिंक किया जाए। पात्र लोगों को वोटर के रूप में पंजीकृत होने के लिए 4 कट ऑफ तिथियों के नियम को अधिसूचित किया जाए। 2000 से ज्यादा के सभी चंदों के बारे में जानकारी सार्वजनिक करने के लिए फार्म 24ए में संशोधन की भी दरकार है। 

यदि केन्द्र सरकार फौरी तौर पर इन सिफारिशों पर सहमत हो जाती है तो यह वक्त बताएगा कि इलैक्शन कमीशन और कितना पारदर्शी होगा, सियासी दलों से लेकर वोटर्स तक का कितना नफा-नुक्सान होगा। इन 6 सुझावों के पीछे चुनाव आयोग की नीयत नि:संदेह साफ है, वह चुनाव में बेवजह वक्त और धन नहीं खर्च करना चाहता, बल्कि चुनाव को मितव्ययी और पारदर्शी बनाना चाहता है। 18 साल के युवक को मतदाता पहचान पत्र दिलाना इसके एजैंडे में सर्वोच्च है, ताकि मतदान प्रतिशत में इजाफा हो सके। हालांकि यह भी चर्चा में है कि पूरे देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक-साथ होने चाहिएं। 

एक प्रत्याशी-एक सीट के प्रावधान की जरूरत : जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत आप एक या दो नहीं, बल्कि आपको इससे भी ज्यादा सीटों से एक साथ चुनाव में लडऩे की आजादी थी। अधिनियम की धारा 33 पर सवाल उठने लगे तो 1996 में इसमें संशोधन किया गया। अब धारा 33(7) के अनुसार कोई भी उम्मीदवार केवल 2 सीटों पर ही एक साथ चुनाव लड़ सकता है। 1957 के आम चुनाव में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने एक-साथ यू.पी. के 3 लोकसभा क्षेत्रों लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर से अपना भाग्य आजमाया। 

1980 में इंदिरा गांधी रायबरेली और मेडक से लड़ीं और दोनों सीटों से विजयी रहीं। उन्होंने रायबरेली को चुना और मेडक सीट पर उपचुनाव हुआ। आयोग बार-बार होने वाले उपचुनाव नहीं चाहता, क्योंकि समय और धन बर्बाद होते हैं। इसीलिए आयोग ने एक प्रत्याशी, एक सीट की प्रबल संस्तुति की है। चुनाव प्रहरी ने 2004 में भी यह अनमोल सुझाव दिया था कि यदि इसे स्वीकार नहीं किया जाता है तो कानून में एक स्पष्ट प्रावधान होना चाहिए, जिसके तहत कोई भी उम्मीदवार दो सीटों पर जीतता है तो छोड़ी गई सीट के उपचुनाव का सारा खर्च विजयी प्रत्याशी को खुद वहन करना होगा। आयोग का यह सुझाव भी फिलहाल ठंडे बस्ते में है। 

हार का डर : दरअसल ये राजनीतिज्ञ हार के डर से दूसरी सुरक्षित सीट चुनते हैं। उदाहरण के तौर पर 2019 में राहुल गांधी को अमेठी में केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी से कड़ी चुनौती मिली तो उन्होंने केरल में वायनाड को सुरक्षित सीट के तौर पर चुना। चुनाव आयोग 18 बरस पूर्व भी जनप्रतिनिधित्व एक्ट की धारा 33(7) में संशोधन का प्रस्ताव कर चुका है। 

ओपीनियन-एग्जिट पोल पर उठते सवाल : लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहे जाने वाले मीडिया की चुनावों में भी अहम भूमिका को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। चुनाव लोकसभा का हो या विधानसभा का, ओपीनियन और एग्जिट पोल चुनिंदा क्षेत्रों और वोटरों की पसंद और नापसंद पर होते हैं। 

उल्लेखनीय है, चुनावी मौसम आते ही सर्वेक्षणों की भरमार लग जाती है। कोई कहता है कि भाजपा को इतने वोट मिलेंगे तो कोई कहता है कि कांग्रेस को इतने वोट मिलेंगे। इन अलग-अलग सर्वेक्षणों को मुख्यत: 2 भागों में बांटा जाता है। दिल्ली, पश्चिम बंगाल और पंजाब में समय-समय पर सर्वे देखने का चश्मा अलग-अलग रहा। दरअसल ये सर्वेक्षण जमीनी हकीकत को सूंघ नहीं पाते, इसीलिए सर्वे और नतीजे भिन्न-भिन्न हो जाते हैं। कई बार सर्वे औंधे मुंह गिरते हैं। कांग्रेस तो चुनाव आयोग से पहले ही इन पर प्रतिबंध लगाने की मांग कर चुकी है। 

पंजीकरण रद्द करने का मिले अधिकार : चुनाव आयोग को जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29ए राजनीतिक दलों को पंजीकृत करने का हक तो है, लेकिन किसी पंजीकृत पार्टी का पंजीयन रद्द करने की शक्ति नहीं है। आयोग की यह मांग भी लंबे समय से लंबित है। उल्लेखनीय है कि आयोग में 21,000 से अधिक गैर मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल पंजीकृत हैं। आयोग का मत है, ये दल सिर्फ रजिस्ट्रेशन कराते हैं, लेकिन कभी चुनाव नहीं लड़ते, सिर्फ आयकर छूट का लाभ ही उठाते हैं। चुनाव प्रहरी ने सरकार से यह भी बदलाव चाहा है कि 20,000 की बजाय 2,000 का डोनेशन दिखाने के लिए भी फार्म 24ए में परिवर्तन होना ही चाहिए। 

वोटर आई.डी. को आधार से जोड़ा जाए : दिसम्बर 2021 में राज्यसभा ने चुनाव कानून (संशोधन) विधेयक-2021 को ध्वनिमत से पारित कर दिया था। इसमें सबसे बड़ा बदलाव यही था कि आधार को वोटर आई.डी. से लिंक किया जाए। अब चुनाव आयोग ने कानून मंत्रालय से आधार को वोटर आई.डी. से जल्द से जल्द लिंक कराने की अधिसूचना जारी करने का अनुरोध किया है।  चुनाव आयोग का एक और सुझाव भी एक दशक से अधिक समय से लंबित है। मौजूदा वक्त में लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 की धारा 14(बी) के अनुसार मतदाता सूची में पात्रता की योग्यता तिथि 01 जनवरी है। 

ऐसे में युवा 18 साल का होने पर भी वोट से वंचित रह जाता है, क्योंकि नामावली अगले वर्ष संशोधित होती है। यदि बीच में कोई चुनाव आता है तो ये युवा वोटर अपने मताधिकार से वंचित रह जाते हैं। ऐसे में आयोग का सुझाव है कि युवाओं को बतौर मतदाता रजिस्ट्रेशन करने के 4 मौके मिलने चाहिएं। आयोग ने पहले भी जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्तूबर में पंजीयन कराने का सुझाव रखा था, लेकिन कानून मंत्रालय ने 2 तिथियों का सुझाव दिया था, 1 जनवरी और 1 जुलाई। हालांकि अभी तक इसे भी अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका।-प्रो. श्याम सुंदर भाटिया 
 

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