झूठे भविष्यवक्ता झूठे बयान ही देते हैं

Edited By ,Updated: 14 Apr, 2024 05:04 AM

false prophets give false statements

घोषणा पत्र उन मुद्दों पर इरादों और विचारों की एक लिखित घोषणा है जो लोगों के लिए मायने रखते हैं। कुछ उदाहरण जो दिमाग में आते हैं वे हैं संयुक्त राज्य अमरीका में 1776 की स्वतंत्रता की घोषणा और 14-15 अगस्त 1947 को जवाहरलाल नेहरू का ‘ट्रिस्ट विद...

घोषणा पत्र उन मुद्दों पर इरादों और विचारों की एक लिखित घोषणा है जो लोगों के लिए मायने रखते हैं। कुछ उदाहरण जो दिमाग में आते हैं वे हैं संयुक्त राज्य अमरीका में 1776 की स्वतंत्रता की घोषणा और 14-15 अगस्त 1947 को जवाहरलाल नेहरू का ‘ट्रिस्ट विद डेस्टिनी’  भाषण। डा. मनमोहन सिंह ने विक्टर ह्यूगो को उद्धृत करते हुए कहा, ‘‘पृथ्वी पर कोई भी शक्ति उस विचार को नहीं रोक सकती जिसका समय आ गया है।’’ 24 जुलाई 1991 को एक यादगार भाषण जिसने भारत की अर्थव्यवस्था की दिशा बदल दी। उन बयानों/भाषणों ने जोर-शोर से और स्पष्ट रूप से नए शासकों के इरादे की घोषणा की। 

एक बयान निर्माता के असली इरादे को भी छिपा सकता है। झूठे भविष्यवक्ता झूठे बयान देते हैं।  नरेंद्र मोदी को परेशान करने वाले बयान हैं ‘‘मैं प्रत्येक भारतीय के बैंक खाते में 15 लाख रुपए डालूंगा’’, ‘‘मैं प्रति वर्ष 2 करोड़ नौकरियां पैदा करूंगा’’ और ‘‘मैं किसानों की आय दोगुनी कर दूंगा’’ आदि-आदि। उनके सिपहसालारों ने उन्हें चुनावी जुमला कहकर उनका मजाक उड़ाया। भारत में राष्ट्रीय पदचिह्न वाले 2 प्रमुख राजनीतिक दल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी हैं। भाजपा ने 30 मार्च को अपनी घोषणापत्र समिति का गठन किया, कांग्रेस ने 5 अप्रैल को अपना घोषणापत्र जारी किया। काश मैं इस कॉलम में दोनों घोषणा पत्रों की तुलना कर पाता, लेकिन केवल कांग्रेस का ही घोषणा पत्र उपलब्ध है। इसलिए, मैं उन मुख्य विशेषताओं को सूचीबद्ध करूंगा जिनके आधार पर पाठकों और मतदाताओं को दोनों घोषणा पत्रों की तुलना करनी चाहिए। 

भारत का संविधान :  कांग्रेस ने कहा, ‘‘हम दोहराते हैं कि भारत का संविधान हमारी कभी न खत्म होने वाली यात्रा में हमारा एकमात्र मार्गदर्शक और साथी रहेगा।’’ लोग यह जानने को उत्सुक हैं कि क्या भाजपा संविधान का पालन करेगी या इसमें आमूल-चूल संशोधन करेगी। यह प्रश्न एक राष्ट्र-एक चुनाव जैसे अस्थिर करने वाले और विभाजनकारी विचारों के संदर्भ में उठा है। समान नागरिक संहिता नागरिकता संशोधन अधिनियम (अब सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती के अधीन), और अन्य। भाजपा को स्पष्ट करना चाहिए कि क्या वह संविधान में निहित संसदीय लोकतंत्र के वेस्टमिंस्टर सिद्धांतों का पालन करेगी। 

सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना, आरक्षण : कांग्रेस ने अपने इरादे साफ कर दिए हैं। कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार देशव्यापी सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना कराएगी। यह आरक्षण पर 50 प्रतिशत की सीमा को हटाने के लिए संविधान में संशोधन करेगी। आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ई.डब्ल्यू.एस.) के लिए नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में 10 प्रतिशत आरक्षण सभी जातियों और समुदायों के लिए खुला रहेगा।
कांग्रेस एक विविधता आयोग स्थापित करेगी जो रोजगार और शिक्षा में विविधता को मापेगा और बढ़ावा देगा। भाजपा को अपनी अस्पष्टता छोडऩी चाहिए और इन मामलों पर अपने इरादे बिल्कुल स्पष्ट करने चाहिएं ताकि लोगों को पता चले कि समानता के बड़े मुद्दे पर दोनों दल कहां खड़े हैं। 

अल्पसंख्यक: भारत में धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यक हैं। कांग्रेस ने कहा है कि उसका मानना है कि सभी भारतीय समान रूप से मानवाधिकारों का आनंद लेने के हकदार हैं जिसमें किसी के धर्म का पालन करने का अधिकार शामिल है, और बहुसंख्यकवाद या अधिनायकवाद के लिए कोई जगह नहीं है। बहुलवाद और विविधता भारत के लोकाचार का गठन करते हैं। भाजपा ने कांग्रेस पर ‘तुष्टीकरण’ का आरोप लगाया है, जो उसके प्रसिद्ध अल्पसंख्यक विरोधी रुख का एक कोड वर्ड है। क्या भाजपा नागरिकता (संशोधन) अधिनियम को लागू करने और समान नागरिक संहिता पारित करने के अपने दृढ़ संकल्प को फिर से दोहराएगी? चूंकि धार्मिक अल्पसंख्यक इन दोनों कानूनों को भेदभावपूर्ण मानते हैं, इसलिए वे उत्सुकता से भाजपा के घोषणापत्र का इंतजार करते हैं। 

युवा और नौकरियां : संतोषजनक औसत से कम विकास दर (5.9 प्रतिशत), स्थिर विनिर्माण क्षेत्र (जी.डी.पी. का 14 प्रतिशत), कम श्रम बल भागीदारी दर (50 प्रतिशत) और बड़े पैमाने पर बेरोजगारी (स्नातकों में 42 प्रतिशत) के कारण भारत का जनसांख्यिकीय लाभांश खत्म हो रहा है। कांग्रेस ने केंद्र्र सरकार की नौकरियों में 30 लाख रिक्तियों को भरने, प्रशिक्षुता का अधिकार अधिनियम पारित करने, कॉरपोरेट्स के लिए रोजगार से जुड़ी प्रोत्साहन योजना (ई.एल.आई.) लागू करने का वायदा किया है जो नई नौकरियां पैदा करेगी, और शुरूआत को बढ़ावा देने के लिए फंड ऑफ फंड्स योजना स्थापित करेगी। इनसे जाहिर तौर पर युवा उत्साहित हैं। भाजपा-एन.डी.ए. सरकार के पास युवाओं के लिए नौकरियों की कोई विश्वसनीय योजना नहीं थी। सवाल यह है कि क्या राजनीतिक दल, भाजपा, अधिक आकर्षक योजना पेश कर पाएगी। 

महिलाएं : चुनाव प्रक्रिया में महिलाएं सबसे उत्साही भागीदार रही हैं। वे प्रचार भाषण सुनती हैं और आपस में बहस करती हैं। वास्तविक साक्ष्यों से पता चलता है कि कांग्रेस की महालक्ष्मी योजना (प्रत्येक गरीब परिवार को प्रति वर्ष 1 लाख रुपए), मनरेगा के तहत 400 रुपए की दैनिक मजदूरी, महिला बैंक का पुनरुद्धार और केंद्र सरकार की नौकरियों में महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण के वायदे सही साबित हुए हैं। महिलाओं और लड़कियों में आकर्षण क्या भाजपा धर्म (ङ्क्षहदुत्व) की अपील से आगे बढ़कर ठोस योजनाओं और कार्यक्रमों के साथ आगे आएगी, यह देखना बाकी है। 

संघवाद : सबसे चर्चित मुद्दा है भाजपा का अधिनायकवाद। भाजपा ने संघवाद और संवैधानिक घोषणा को कमजोर कर दिया है कि भारत राज्यों का संघ है। एक राष्ट्र-एक चुनाव का सिद्धांत बेहद संदेहास्पद है। यह एक राष्ट्र-एक चुनाव, एक सरकार, एक पार्टी और एक नेता  का मार्ग प्रशस्त करेगा। कांग्रेस के घोषणापत्र में संघवाद पर एक अध्याय में 12 बिंदू हैं। क्या भाजपा किसी पर सहमत है? सबसे दूरगामी वायदा कानून के कुछ क्षेत्रों को समवर्ती सूची से राज्य सूची में स्थानांतरित करने पर आम सहमति बनाना है। भाजपा की साख की परख इन 12 बिंदुओं पर होगी । जहां तक मेरा सवाल है, सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा चुनाव लडऩे वाले दलों की संविधान, संसदीय लोकतंत्र, मानवाधिकार, स्वतंत्रता और गोपनीयता और संवैधानिक नैतिकता के प्रति प्रतिबद्धता है। मेरा वोट उस उम्मीदवार को होगा जो उन सिद्धांतों की शपथ लेगा और उन्हें कायम रखेगा।-पी. चिदम्बरम

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