पहले चरण के चरण क्या दूसरे चरण में पड़ेंगे

Edited By ,Updated: 25 Apr, 2024 05:30 AM

will the steps of the first phase be included in the second phase

लोकसभा चुनाव का दूसरा चरण सामने है। पहले चरण में मतदाताओं में उत्साह बहुत नहीं दिखा। राष्ट्रीय मुद्दों का असर कम दिखा। जाति, स्थानीय समीकरण, स्थानीय मतभेद मनभेद हावी रहे।  अब यह तो बिल्कुल नहीं कहा जा सकता कि कम मतदान की सूरत में किस पक्ष का वोटर...

लोकसभा चुनाव का दूसरा चरण सामने है। पहले चरण में मतदाताओं में उत्साह बहुत नहीं दिखा। राष्ट्रीय मुद्दों का असर कम दिखा। जाति, स्थानीय समीकरण, स्थानीय मतभेद मनभेद हावी रहे।  अब यह तो बिल्कुल नहीं कहा जा सकता कि कम मतदान की सूरत में किस पक्ष का वोटर निकला और किस पक्ष का घर बैठ गया लेकिन इतना जरूर तय है कि मतदाता में वो तेजी नहीं दिखी, जिसकी अपेक्षा थी। अब बड़ा सवाल उठता है कि क्या दूसरे चरण में इसका प्रभाव दिखाई देगा। क्या दूसरे चरण में वोटर ज्यादा बड़ी तादाद में निकलेगा। 

क्या पहले चरण के बाद एन.डी.ए. या आई.एन.डी.आई.ए. का वोटर यह सोच कर निकलेगा कि उनका दल  मुसीबत में है। क्या पहले चरण के बाद  वोटर यह सोच कर निकलेगा कि लड़ाई कांटे की है और संभावना बन रही है। आशंका और संभावना के बीच झूल रहा है चुनाव। विपक्ष मानता है कि पहले चरण के तुरंत बाद जिस तरह से प्रधानमंत्री के हमले हुए हैं, कांग्रेस को कोसा गया है, ङ्क्षहदू, मुस्लिम की कोशिश की गई है उससे लगता तो यही है कि भाजपा का पक्ष मुश्किल में है। 

अपने संकल्प पत्र की जगह कांग्रेस के घोषणा पत्र का जिक्र चुनावी भाषणों में ज्यादा नजर आ रहा है। यह सब क्या सोची समझी रणनीति के तहत हो रहा है या तालाब में पत्थर फैंक कर तमाशा देखने की सोच है। इसमें कोई शक नहीं कि कांग्रेस का घोषणा पत्र कुछ अलग-सा है। लेकिन कांग्रेस जितना प्रचार प्रसार नहीं कर पा रही थी उससे ज्यादा मोदी ने इसका जिक्र कर क्या गलती कर दी है या जानबूझकर कांग्रेस के प्रचार को पटरी से उतारने की कोशिश की है। अभी तक तो कांग्रेस इस सियासी दांव पेंच में फंसी नहीं है और अभी तक मोदी ने भी हार नहीं मानी है। मामला चुनाव आयोग के पास है लेकिन वहां से कुछ होने की उम्मीद तो शायद कांग्रेस को भी नहीं है। 

ऐसे में सवाल उठता है कि अगर दूसरे चरण में मतदान प्रतिशत बढ़ गया, भाजपा की जीत वाली सीटों पर ज्यादा बढ़ गया तो क्या बाकी के 5 चरणों में चुनाव पूरी तरह से हिंदू मुस्लिम में बदल जाएगा। क्या महंगाई, बेरोजगारी, आर्थिक विषमता जैसे मसले मसले ही बन कर रह जाएंगे। यहां इंडिया ने गलती कर दी है। होना तो यह चाहिए था कि अलग-अलग घोषणा पत्र निकालने के बाद सभी घोषणा पत्र के कुछ-कुछ बिंदू निकाल कर न्यूनतम सांझा कार्यक्रम बनाना चाहिए था जिसका जिक्र इंडिया गठबंधन के सभी नेता करते। ऐसा होता तो मोदी का कांग्रेस घोषणा पत्र का विरोध या उसमें कमियां निकालने का पूरा इंडिया गठबंधन विरोध करता क्योंकि जिन बातों का जिक्र मोदी कर रहे हैं वह सांझा घोषणा पत्र का बिंदू जरूर रहा होता। लेकिन ऐसा हो न सका। अलबत्ता पहली बार शायद किसी दल का घोषणा पत्र इस तरह चर्चा में आया है। 

एन.डी.ए. और आई.एन.डी.आई.ए. का वोटर तो लामबंद हो चुका है लेकिन फ्लोटिंग वोटर को अभी तय करना है किस तरफ जाना है। ऐसा वोटर किसी दल की विचारधारा से प्रभावित नहीं होता है। वह माहौल देख कर वोट करता है तो कभी स्थानीय उम्मीदवार को देख कर। ऐसे वोटर अगर घोषणा पत्र पढ़ते हैं तो क्या उन्हें मोदी की बात दिखेगी। क्या कांग्रेस को मोदी के बहाने ही जनता के बीच अपना घोषणा पत्र पहुंचाने का मौका मिल गया है। भाजपा की कोशिश तो यही है कि कांग्रेस के घोषणा पत्र को पूरी तरह से संदिग्ध घोषित कर दिया जाए। इतना जरूर तय है कि चुनाव आयोग की किसी भी कार्रवाई से पहले तक मोदी इस पर खेलते रहेंगे। 

हकीकत तो यह है कि आज की तारीख में बीजेपी की वापसी की संभावना सबसे ज्यादा है। सच तो यह है कि आज की तारीख में मोदी की तीसरी बार प्रधानमंत्री की शपथ लेने की संभावना सबसे ज्यादा है। तो फिर 10 साल की उपलब्धियां गिनाने पर जोर नहीं है। लेकिन यह भी सच है कि अमृत काल की चर्चा बंद हो गई है। भाजपा अभी भी यह ढूंढने की कोशिश कर रही है कि वोटर को नया क्या दिया जाए। ऐसे में वोटर को हिंदू खतरे में है, के नारे से ही जोश में लाने की कोशिश की जा रही है। लेकिन इतने भी खराब नहीं कि वोटर मुंह मोड़ ले या फिर कांग्रेस के आर्थिक विकल्प इतने भी लुभावने नहीं है कि वोटर उस तरफ खिंचा चला जाए। बेरोजगारी है, महंगाई है जनता नाराज भी है लेकिन नाराजगी खिलाफ वोट में बहुत बड़ी संख्या में तबदील हो जाएगी ऐसा भी दिखाई नहीं देता। इंडिया गठबंधन भी भाजपा को 250 से नीचे सिमटाने का लक्ष्य लेकर चल रहा है। 

भाजपा पिछले प्रदर्शन को दोहराने के लिए जूझ रही है। बात सौ-पचास साठ सीटें इधर या उधर भाजपा के चुनाव प्रचार में अचानक कांग्रेस के खिलाफ आई तल्खी कई सवाल खड़े करती है। पहले चरण की 101 सीटों में पिछली बार दोनों के बीच मुकाबला बराबर का था। लिहाजा कम वोटिंग और उदासीन मतदाता के रुख का अलग अलग तरीके से विश्लेषण किया जा रहा है। दूसरे चरण की 89 सीटों में केरल की बीस सीटों पर भाजपा कहीं नहीं थी। बाकी की 69 सीटों में वह 57 सीटों पर थी। इस हिसाब से देखा जाए तो यह चरण भाजपा की असली अग्नि परीक्षा का है। 

भाजपा को लगता है कि माहौल पहले 3 चरणों में जो बनता है उसे पलटना फिर मुश्किल हो जाता है। लिहाजा हिंदू मुस्लिम का अस्त्र जो शायद पांचवें चरण के लिए रखा गया था उसे दूसरे चरण से ठीक पहले चला दिया गया है। वह भी बहुत सोच समझ कर। कांग्रेस को उकसाने और गलती करने के लिए जाल डाल दिया गया है। सवाल उठता है कि कांग्रेस क्या अपने मुद्दों तक ही सीमित रहती है और क्या भाजपा दूसरे चरण के बाद फिर से 10 सालों का हिसाब नए सिरे से देना शुरू करती है। कांग्रेस या उसके साथियों ने गलती भी शुरू कर दी है। राजीव गांधी के परम मित्र रहे सैम पित्रोदा ने गलती कर दी है। आगे उससे निपटा कैसे जा सकता है यह देखना होगा।-विजय विद्रोही     

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