मुफ्त पानी नहीं ‘शुद्ध जल’ चाहिए

Edited By Updated: 17 Sep, 2019 02:59 AM

free water is not pure water

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल द्वारा प्रारम्भ किया गया मुफ्त अभियान बिजली, पानी, मैट्रो और बस के सफर से प्रारम्भ तो हो गया, परन्तु यह कितना लम्बा चलेगा? इन सभी मुफ्त अभियानों में दो-तीन हजार करोड़ से लेकर 10 हजार करोड़ तक का वार्षिक बोझ...

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल द्वारा प्रारम्भ किया गया मुफ्त अभियान बिजली, पानी, मैट्रो और बस के सफर से प्रारम्भ तो हो गया, परन्तु यह कितना लम्बा चलेगा? इन सभी मुफ्त अभियानों में दो-तीन हजार करोड़ से लेकर 10 हजार करोड़ तक का वार्षिक बोझ सरकारी कोष पर डाला जाएगा। 

जनता को यह स्वीकार करना होगा कि विकास के लिए धन की आवश्यकता उन्हीं की कमाई से पूरी होती है। एक-एक व्यक्ति की कमाई मिलकर ही तो सारे देश की कमाई कहलाती है। अर्थशास्त्री इसे जी.डी.पी. कहते हैं। यह बात अलग है कि हमारा यह हिस्सा समुद्र में शामिल पानी की केवल एक बूंद के समान है। भारत की संसद में इसी जी.डी.पी. के बल पर तरह-तरह के विकास कार्यों के बजट बनाए जाते हैं। केन्द्र सरकार से लेकर पंचायत स्तर तक होने वाले खर्च  का प्रत्येक रुपया उसी जी.डी.पी. में से निकलकर आता है। 

देखने में लगता है कि सरकार ने हमें मुफ्त सड़कें बनाकर दी हैं, सरकारी अस्पतालों में मुफ्त इलाज मिलता है, सरकारी शिक्षण संस्थाओं में मुफ्त या न्यूनतम फीस से शिक्षा मिलती है, सारे देश को मुफ्त पुलिस की सेवा मिलती है, देश की सीमाओं पर रक्षा करने वाले सैनिक भी हमारे हिसाब से तो मुफ्त ही हमारी रक्षा में जुटे महसूस होते हैं। अदालतों और न्यायाधीशों का प्रबन्ध करने के लिए सरकारें बहुत ही कम राशि कोर्ट फीस के रूप में वसूल करके उससे कई गुना ज्यादा राशि खर्च करके नागरिकों के लिए इस न्याय व्यवस्था का संचालन करती है। परन्तु वास्तव में ये सारे खर्चे उसी जी.डी.पी. में से होते हैं जिसमें एक बूंद हमारी कमाई की भी होती है। भिन्न-भिन्न प्रकार के करों, बिलों और फीसों आदि के रूप में हमारी कमाई का कुछ हिस्सा सरकार के कोष में जाता है। 

नागरिक खुद व्यवस्था नहीं कर सकते
देश के नागरिक अपने अलग-अलग परिवारों के स्तर पर सड़कों, विद्यालयों, पुलिस, सेना, बिजली, पानी की आपूर्ति, चिकित्सा आदि जैसे अनेकों कार्यों की व्यवस्था नहीं कर सकते। इन सामूहिक कार्यों की जिम्मेदारी सरकार की होती है, जिन्हें विकास कार्य कहा जाता है। केवल दूरदर्शी नेता ही देश के नागरिकों को अर्थव्यवस्था की इस साधारण सोच को स्वीकार करने का आह्वान कर सकते हैं। जबकि आज के इस स्वार्थी कलियुग में नेताओं की दृष्टि केवल जनता को छोटे-मोटे लोभ लालच दिखाकर उनके वोट लूटने पर ही केन्द्रित रहती है। 

लोकसभा सचिवालय द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में पीने वाले जल के प्रदूषण का स्तर अत्यन्त चिन्ताजनक है। इसमें आर्सैनिक नामक रसायन बहुत बड़ी मात्रा में पाया गया है जो संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी शोध रिपोर्टों के अनुसार कैंसर पैदा करने लायक तत्व है। आज मध्यम तथा उच्च वर्ग के परिवारों ने बेशक अपनी रसोई में जल शुद्धि के लिए आर.ओ. जैसे प्रबन्ध कर रखे हैं, परन्तु फिर भी सरकारी आपूर्ति वाले जल को पूरी तरह शुद्ध नहीं किया जा सकता, बल्कि आर.ओ. जैसी तकनीकों में तो कई कमियां भी सिद्ध हो चुकी हैं। 

आर.ओ. तकनीक से पानी व्यर्थ भी बहुत जाता है क्योंकि 40 लीटर जल में से केवल 10 लीटर जल पीने लायक मिलता है, शेष 30 लीटर जल व्यर्थ नाली में बहता है। इसलिए बड़े भारी पैमाने पर सामूहिक जल शुद्धि के प्रयासों की आवश्यकता है जो पूरी तरह से शुद्ध पानी को ही घर-घर तक पहुंचाए। दिल्ली सरकार ने विगत 5 वर्षों में इस दिशा में लेशमात्र भी प्रयास नहीं किया और अब निर्वाचन से पूर्व मुफ्त अभियानों के माध्यम से जनता के वोटों को अपनी तरफ  आकर्षित करने का प्रयास किया जा रहा है। यदि कोई सरकार मुफ्त अभियानों में हजारों करोड़ रुपया खर्च कर सकती है तो उसके स्थान पर उन बड़ी राशियों से जल की पूर्ण शुद्धि जैसे संयंत्रों को स्थापित करना अधिक लाभकारी होगा। जनता को यह निर्णय करना चाहिए कि उन्हें मुफ्त पानी चाहिए या शुद्ध जल। 

पंजाब में 80 प्रतिशत जल स्रोत अत्यंत प्रदूषित
पंजाब में 80 प्रतिशत जल स्रोत आर्सैनिक के साथ-साथ यूरेनियम से प्रदूषित पाए गए हैं। यही दशा लगभग देश के सभी प्रान्तों में देखने को मिल रही है। इसका मुख्य कारण उद्योगों से पैदा होने वाले हानिकारक रासायनिक प्रदूषण हैं। खेती में यूरिया जैसी रासायनिक खाद के कारण भी भूमि के नीचे तथा नदियों में बहता जल प्रदूषित होता जा रहा है। हाल ही में राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने एक मुकद्दमे की सुनवाई के दौरान यह नोट किया कि देश में लगभग एक करोड़ लोग प्रदूषित जल की बीमारियों से ग्रस्त हैं। हरित प्राधिकरण ने केन्द्र सरकार को एक सामान्य स्तर का अलर्ट जारी किया है-कुछ करो, कुछ करो। 

करने के नाम पर केन्द्र सरकार ने जल शक्ति मंत्रालय बना रखा है, जो यदि वास्तव में कुछ करने पर आ जाए तो हर गन्दे नाले में पूरी तरह से पारदर्शी जल बहता हुआ दिखाई दे सकता है। यह जल मंत्रालय गंगा सफाई के नाम पर हजारों बातें तो कर सकता है क्योंकि गंगा के नाम पर बहुत सारे वोट प्रभावित होते हैं, परन्तु वास्तव में एक पवित्र और पूजनीय नदी गंगा को ही पूरी तरह से साफ करना कठिन हो रहा है। इसके लिए सरकार को एक सूत्रीय कार्यक्रम चलाना चाहिए जिसमें किसी भी नदी या नाले में उद्योगों, खेती या घरों से निकलने वाले व्यर्थ पानी के प्रवेश से पूर्व उसकी पूर्ण शुद्धि की व्यवस्थाएं सरकारें करें, इसके अतिरिक्त प्रत्येक घर और उद्योग से निकलने वाले व्यर्थ पानी को शुद्ध करने के छोटे संयंत्र लगाना सबकी व्यक्तिगत जिम्मेदारी निर्धारित हो। 

इस प्रकार व्यर्थ पानी के निकलने से पहले प्रथम शुद्धि और नदियों, नालों में जाकर मिलने से पहले दूसरी शुद्धि की व्यवस्था यदि देश के प्रत्येक हिस्से में स्थापित कर दी जाए तो पीने के जल के सभी स्रोत शुद्ध हो सकते हैं। सरकारों को ऐसे जल शुद्धि अभियान पर स्वयं भी हर बड़ी से बड़ी राशि खर्च करने के लिए तैयार रहना चाहिए और नागरिकों को व्यक्तिगत स्तर पर भी इसके लिए कानून के द्वारा बाध्य किया जाना चाहिए।-विमल वधावन(एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट) 
 

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