‘गांधियों को अब रास्ता बदलने की जरूरत’

Edited By ,Updated: 26 Jan, 2021 05:13 AM

gandhis need to change the way now

क्या गांधी 135 साल पुरानी कांग्रेस पार्टी को नियंत्रित करते रहेंगे या फिर यह आगे और सिकुड़ जाएगी? यह सवाल केवल कांग्रेसी नेताओं को ही नहीं बल्कि पार्टी के लाखों कार्यकत्र्ताओं को भी डरा रहा है। पार्टी अब सबसे गम्भीर नेतृत्व संकट की चपेट...

क्या गांधी 135 साल पुरानी कांग्रेस पार्टी को नियंत्रित करते रहेंगे या फिर यह आगे और सिकुड़ जाएगी? यह सवाल केवल कांग्रेसी नेताओं को ही नहीं बल्कि पार्टी के लाखों कार्यकत्र्ताओं को भी डरा रहा है। पार्टी अब सबसे गम्भीर नेतृत्व संकट की चपेट में है। यह लम्बे समय तक पार्टी के भीतर उपजे एक बड़े संकट का लक्षण है। अब यह इस स्तर पर पहुंच चुका है कि कुछ कांग्रेसी नेता गांधी परिवार पर खुलकर सवाल उठाने लग गए हैं। 

मिसाल के तौर पर अगस्त में राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद और उनके डिप्टी आनंद शर्मा तथा कांग्रेस के कुछ पूर्व मुख्यमंत्रियों सहित कुल 23 नेताओं ने सोनिया गांधी को एक पत्र लिखा था। वे पूर्णकालिक नेतृत्व की मांग करते हैं। इसके साथ-साथ राज्य इकाइयों की शक्तियों का विघटन और पार्टी संविधान के अनुरूप सी.डब्ल्यू.सी. को फिर से पुनर्जीवित करना चाहते हैं। 

हालांकि सोनिया गांधी ने मतभेद की आग को बुझाने की कोशिश की लेकिन यह असंतोष जारी है। जैसा कि पिछले सप्ताह सी.डब्ल्यू.सी. की बैठक में पुष्टि की गई थी। इस बैठक में पुराने दिग्गजों तथा गांधियों के बीच जघनता थी। नेताओं को परेशान करने वाली बात यह है कि मोदी अतीत को कोसने से क्या पार्टी को सत्ता वापस मिल जाएगी। कुछ असंतुष्ट नेता पार्टी को अपने अच्छे के लिए छोड़ रहे हैं। यहां तक कि ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे कुछ युवा नेता, जिन्हें राहुल गांधी के करीबी के रूप में देखा जाता था, ने पार्टी को अलविदा कह दिया तथा भाजपा में शामिल हो गए। 

जैसा कि इतिहास से पता चलता है कि पार्टी में संकट कोई नई बात नहीं है क्योंकि इससे पहले कई मौकों पर कांग्रेस को संकट का सामना करना पड़ा था। उदाहरण के तौर पर 1939 में सुभाष चंद्र बोस और पट्टाभी सीतारमैया के बीच राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के चुनाव में मतभेद थे। सीतारमैया ने महात्मा गांधी के आशीर्वाद से जीत हासिल की। तब से पार्टी में विभिन्न अवसरों पर मतभेद देखे गए लेकिन अधिकांश अवसरों पर नेहरू-गांधी परिवार विजयी हुए। हाल के दिनों में 1998 के बाद से पार्टी एक भी चुनावी प्रस्ताव से नहीं गुजरी। सम्पूर्ण संगठनात्मक संरचना नामांकन से भरी हुई है। 

कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी हालांकि पार्टी की सबसे लम्बे समय तक प्रमुख रहीं, ने अपने बेटे राहुल गांधी को बढ़ावा दिया है जिनकी पार्टी में कोई दिलचस्पी नहीं है। उन्हें डॉक्टर मनमोहन सिंह मंत्रिमंडल में शामिल होने सहित इतने अवसर क्यों गंवाने पड़े, जो उनके रास्ते में आए? उनके पास वंशावली, राजनीतिक पृष्ठभूमि, राजवंशीय सम्मान तथा एक नाम है। हालांकि राहुल गांधी के पास निरंतरता का अभाव है। उन्होंने 2019 की हार की जिम्मेदारी लेते हुए अगस्त 2019 में इस्तीफा दे दिया। उसके बाद नेतृत्व संकट और बिगड़ गया। पार्टी एक गैर-गांधी को नहीं चुन सकती थी जिसके बाद सोनिया गांधी अंतरिम अध्यक्ष बन गईं। 

यदि कांग्रेस पुनरुद्धार के लिए गम्भीर है तो उसे भीतर देखना होगा। दो बार पार्टी को सत्ता में वापस लाने के लिए गांधी परिवार असफल रहा। प्रियंका वाड्रा ने उत्तर प्रदेश में काम नहीं किया। इन सबसे ऊपर गांधीवादी सत्ता में बने रहना चाहते हैं। बीमारी को ठीक करने के लिए किसी एक को यह जानना होगा कि इसका मूल कारण क्या है? उसके लिए पहली बात यह जानना जरूरी है कि क्या गलत हुआ? जबकि 2014 में इस उद्देश्य के लिए एंटनी कमेटी का गठन हुआ था मगर रिपोर्ट पर चर्चा भी नहीं की गई। 2019 में अपने नुक्सान के बाद कांग्रेस पार्टी ने एक समिति गठन करने की मंशा से गुजरने की जहमत नहीं उठाई। 

दूसरी बात यह है कि संगठन में एक सुचारू पीढ़ीगत परिवर्तन है। जबकि सोनिया अपने बेटे को पार्टी प्रमुख बनाने तथा अपनी बेटी प्रियंका वाड्रा को महासचिव के रूप में शामिल करने में सक्षम थीं। लेकिन वह पार्टी के कटाव की जांच नहीं कर सकीं या फिर यह कहें कि आशांकित पुराने रक्षकों पर भरोसा नहीं बना सकीं। जब से राहुल ने 2013 और 2019 के बीच में पूर्ण प्रभार सम्भाला तब से पुराने दिग्गजों तथा राहुल टीम के बीच स्पष्ट असहजता व दुश्मनी दिखाई दी। 

तीसरी बात यह है कि पार्टी को जमीनी स्तर पर फिर से लौटना होगा और कैडर तैयार करना होगा जो चुनावों के दौरान काम कर सके। वर्तमान में पार्टी का लोगों से सम्पर्क टूट गया है। चौथी बात यह है कि राज्य और जिला स्तर के नेताओं के अधिकार का विकेन्द्रीकरण किया जाए ताकि दिल्ली में सत्ता केन्द्रित न हो। दिल्ली केन्द्रित कामकाज को छोडऩा जरूरी है। पांचवीं, दूसरे नम्बर के नेताओं का विकास करना जरूरी है। 

छठी बात यह है कि अब गठबंधन का युग है। कांग्रेस पार्टी को खुद को फिर से पारिभाषित करने तथा क्षेत्रीय दलों से दोस्ती करने की जरूरत है। गांधियों को उस रास्ते को बदलने की जरूरत है जिस पर कांग्रेस पिछले दशक से चल रही है। पहले से ही बहुत देर हो चुकी है और अगर गांधी अब नहीं जागे तो पार्टी की स्थिति और बिगड़ जाएगी। जैसा कि गुलाम नबी आजाद ने कहा, ‘‘पार्टी ऐतिहासिक निम्न पर है।’’ सी.डब्ल्यू.सी. तथा महत्वपूर्ण संगठनात्मक पदों के चुनाव आयोजित न हुए तो पार्टी अगले 50 वर्षों तक विपक्ष में निरंतर बैठी रहेगी।-कल्याणी शंकर    

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