बालिकाओं को मिले भयमुक्त वातावरण की गारंटी

Edited By ,Updated: 24 Jan, 2024 05:59 AM

guarantee of fear free environment for girls

परिवारों में बेटा-बेटी के बीच भेदभाव और बेटियों के साथ परिवार में प्राय: होने वाले अत्याचारों के खिलाफ समाज को जागरूक करने के लिए देश की आजादी के बाद से ही प्रयास होते रहे हैं। हालांकि एक समय ऐसा था, जब अधिसंख्य परिवारों में बेटी को परिवार पर बोझ...

परिवारों में बेटा-बेटी के बीच भेदभाव और बेटियों के साथ परिवार में प्राय: होने वाले अत्याचारों के खिलाफ समाज को जागरूक करने के लिए देश की आजादी के बाद से ही प्रयास होते रहे हैं। हालांकि एक समय ऐसा था, जब अधिसंख्य परिवारों में बेटी को परिवार पर बोझ समझा जाता था और इसीलिए बहुत सी जगहों पर तो बेटियों को जन्म लेने से पहले कोख में ही मार दिया जाता था। यही कारण था कि बहुत लंबे अर्से तक लिंगानुपात बुरी तरह गड़बड़ाया रहा। यदि बेटी का जन्म हो भी जाता था तो उसका बाल विवाह कराकर उसकी जिम्मेदारी से मुक्ति पाने की सोच समाज में समाई थी। 

आजादी के बाद से बेटियों के प्रति समाज की इस सोच को बदलने और बेटियों को आत्मनिर्भर बनाकर देश के प्रथम पायदान पर लाने के लिए अनेक योजनाएं बनाई गईं और कानून लागू किए गए। उसी का नतीजा है कि अब बालिकाएं भी हर क्षेत्र में बेटों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर राष्ट्र के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं। आज लगभग हर क्षेत्र में बालिकाओं की भी हिस्सेदारी है और अब तो वे सेना में भी बढ़चढ़कर अपना पराक्रम दिखा रही हैं। 

बालिका शिक्षा के महत्व, उनके स्वास्थ्य तथा पोषण के बारे में जागरूकता फैलाने और बालिका अधिकारों के बारे में समाज को जागरूक बनाने के लिए वर्ष 2008 में बाल विकास मंत्रालय द्वारा हर साल 24 जनवरी को राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाए जाने का निर्णय लिया गया था और पहली बार 24 जनवरी, 2009 को देश में राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया गया। 24 जनवरी को ही यह दिवस मनाए जाने की शुरूआत के पीछे प्रमुख कारण यही था कि वर्ष 1966 में इसी दिन ‘आयरन लेडी’ के रूप में विश्वविख्यात हुईं इंदिरा गांधी भारत की पहली प्रधानमंत्री बनी थीं। 

इस दिवस को मनाने का उद्देश्य भारत की बालिकाओं को सहायता और अवसर प्रदान करते हुए उनके सशक्तिकरण के लिए उचित प्रयास करना है। यूनिसेफ के मुताबिक प्रत्येक लड़की को सुरक्षित, स्वस्थ और शिक्षित बचपन का अधिकार है। एक कहावत है कि जब एक लड़की का जन्म होता है तो हजारों सपने जन्म लेते हैं। संयुक्त राष्ट्र के पूर्व महासचिव कोफी अन्नान का कहना था कि जब आप एक लड़की को शिक्षित करते हैं तो आप एक राष्ट्र को शिक्षित करते हैं। इसी प्रकार अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति की पत्नी मिशेल ओबामा ने भी कहा था कि जब लड़कियां शिक्षित होती हैं तो उनका देश अधिक मजबूत और समृद्ध होता है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी कहते थे कि किसी समाज की सभ्यता का असली माप उसकी महिलाओं और बच्चों के प्रति उसका व्यवहार है। 

बालिकाओं की स्थिति में सुधार लाने के लिए भारत में आजादी के बाद से ही सरकारों ने निरन्तर कदम उठाए हैं। समाज में लड़का-लड़की के भेदभाव को खत्म करने के उद्देश्य से ही ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’, लड़कियों के लिए मुफ्त अथवा रियायती शिक्षा, कॉलेजों तथा विश्वविद्यालयों में महिलाओं के लिए आरक्षण जैसे अनेक अभियान और कार्यक्रम शुरू किए गए। ऐसे ही प्रयासों का नतीजा है कि आज लगभग हर क्षेत्र में बालिकाओं को बराबर का हक दिया जाता है लेकिन फिर भी समाज में उनकी सुरक्षा के लिए अभी बहुत कुछ किया जाना शेष है। भले ही बालिकाओं के साथ होने वाले अपराधों के खिलाफ कई कानून बनाए जा चुके हैं और ‘सेव द गर्ल चाइल्ड’ जैसे अभियान चलाए जा रहे हैं, फिर भी समाज में बालिकाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों का सिलसिला कम होने की बजाय लगातार बढ़ रहा है। 

बालिका दिवस मनाने का मूल उद्देश्य यही है कि बालिकाओं के लिए एक ऐसा समाज बनाया जाए, जहां उनके कल्याण की ही बात हो लेकिन जिस प्रकार देशभर में बच्चियों और किशोरियों के साथ छेडख़ानी, दुव्र्यवहार तथा बलात्कार के मामलों में निरन्तर बढ़ौतरी हो रही है, ऐसे में काफी चिंताजनक तस्वीर उभरती है। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2013 से 2017 के बीच दुनियाभर में लिंग चयन के जरिए 14.2 करोड़ बच्चियों को जन्म लेने से पहले कोख में ही मार दिया गया, जिनमें 4.6 करोड़ ऐसी भ्रूण हत्याएं कड़े कानूनों के बावजूद भारत में हुई थीं। हालांकि लिंगानुपात के मामले में स्थिति में कुछ सुधार अवश्य हुआ है लेकिन स्थिति अभी भी संतोषजनक नहीं है। 

आजादी के बाद से बालिकाओं की स्थिति में सुधार के बावजूद उन्हें स्वयं को साबित करने के लिए बालकों के मुकाबले ज्यादा संघर्ष का सामना करना पड़ता है। एन.सी.आर.बी. के मुताबिक, बालिका दिवस शुरू करने के बाद वर्ष 2009 में महिलाओं के प्रति अत्याचारों में 4.05 फीसदी, 2010 में 4.79, 2011 में 7.05, 2012 में 6.83 फीसदी की वृद्धि हुई और उसके बाद भी अत्याचारों का यह सिलसिला कम होने की बजाय लगातार बढ़ता गया है। विभिन्न रिपोर्टों से यह तथ्य भी सामने आते रहे हैं कि देश में हर 16 मिनट में एक बलात्कार होता है, प्रतिदिन औसतन 77 मामले शारीरिक शोषण के दर्ज होते हैं और करीब 70 फीसदी महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार हैं। 2021 में तो महिलाओं के प्रति अपराधों में 63 फीसदी तक की वृद्धि दर्ज हुई। बालिकाओं की तस्करी के मामलों में भी तेजी से बढ़ौतरी हो रही है। कुछ मामलों में तो दरिंदों द्वारा बलात्कार के बाद मासूम बच्चियों को जान से मार दिया जाता है। 

आज भी कन्या भ्रूण हत्या से लेकर लैंगिक असमानता और यौन शोषण तक बालिकाओं से जुड़ी समस्याओं की कोई कमी नहीं है। लैंगिक भेदभाव समाज में आज भी एक बड़ी समस्या है, जिसका सामना बालिकाओं या महिलाओं को जीवनभर करना पड़ता है। बालिका दिवस जैसे आयोजनों की सार्थकता तभी होगी, जब न केवल बालिकाओं को उनके अधिकार प्राप्त हों, बल्कि समाज में प्रत्येक बालिका को उचित मान-सम्मान भी मिले। समाज में यह सोच विकसित करनी दरकार है कि यही बालिकाएं न केवल हमारा बेहतरीन आज हैं, बल्कि देश का सुनहरा भविष्य भी हैं।-योगेश कुमार गोयल
 

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