भारतीय राजनीति में अपराधियों का बोलबाला कैसे बढ़ा?

Edited By ,Updated: 07 Mar, 2024 05:28 AM

how did the dominance of criminals increase in indian politics

पश्चिम बंगाल में संदेशखाली का भयावह वृत्तांत रौंगटे खड़े कर देने वाला है। प्रवर्तन निदेशालय (ई.डी.) जांचदल पर हमला, यौन शोषण, जमीन हड़पने और भ्रष्टाचार मामले में आरोपी और तृणमूल कांग्रेस नेता (निलंबित) शेख शाहजहां कानून की पकड़ में है। इससे पहले शेख...

पश्चिम बंगाल में संदेशखाली का भयावह वृत्तांत रौंगटे खड़े कर देने वाला है। प्रवर्तन निदेशालय (ई.डी.) जांचदल पर हमला, यौन शोषण, जमीन हड़पने और भ्रष्टाचार मामले में आरोपी और तृणमूल कांग्रेस नेता (निलंबित) शेख शाहजहां कानून की पकड़ में है। इससे पहले शेख के करीबी सहयोगी शिबू हाजरा और उत्तम सरदार गिरफ्तार कर लिए गए थे। वास्तव में, संदेशखाली मामले में जिस प्रकार का घटनाक्रम रहा है, वह भारतीय राजनीति में दशकों से व्याप्त एक सड़ांध को उजागर करता है। 

स्वतंत्रता मिलने तक भारत में जो लोग राजनीति से जुड़े, उनमें से अधिकांश अपना घर, परिवार और यहां तक कि नौकरी छोड़कर देश के लिए कुछ कर गुजरने के जुनून के साथ शामिल हुए थे। आजादी के बाद इस स्थिति में बदलाव आया और राजनीति सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक बन गई। धीरे-धीरे इसने धंधे का रूप ले लिया। राजनीति में नैतिक पतन के अगले चरण में अपने हितों को साधने के लिए गुंडों का उपयोग किया जाने लगा और उन्हें संरक्षण दिया जाने लगा। 

कालांतर में स्थिति तब और बिगड़ गई, जब आपराधिक मानसिकता के लोगों ने राजनीतिज्ञों का दुमछल्ला बनने के स्थान पर स्वयं राजनीति में ही प्रवेश करना प्रारंभ कर दिया और सफेद कुर्ता-पायजामा को अपनी काली करतूतों को ढंकने का माध्यम बना दिया। प.बंगाल में तृणमूल कांग्रेस का निलंबित नेता शेख शाहजहां, भारतीय राजनीति में आई उसी विकृति का एक जीता-जगता उदाहरण है। इस घालमेल का शेख कोई पहला उदाहरण नहीं है। उत्तर प्रदेश और बिहार दशकों से अपराधियों को राजनीतिक संरक्षण मिलने, उनके द्वारा चुनाव लडऩे और जनता द्वारा उन्हें चुने जाने के मामले में कुख्यात रहा है। संगठित अपराध और उसके सरगनाओं की एक लंबी सूची है, जिसमें अतीक अहमद, अशरफ, अफजल अंसारी, मोहम्मद शहाबुद्दीन, रईस खान, हरिशंकर तिवारी, पप्पू यादव, आनंद मोहन, सूरजभान सिंह और विकास दुबे आदि के नाम शामिल हैं। ऐसा भी नहीं है कि यह विकृति केवल भारत तक सीमित है। 

अमरीका भी इस मामले में बदनाम है। सुधि पाठक शिकागो-न्यूयॉर्क  के संगठित माफिया से परिचित होंगे। इसमें सैम जियानकाना (1908-75) भी एक नाम था, जिसने अमरीकी राजनीति को प्रभावित किया। कहा जाता है कि 1960 के अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव में जॉन एफ. कैनेडी की जीत में जियानकाना की बड़ी भूमिका थी। इसी तरह कोलंबिया में ड्रग्स सरगना और कई निरपराधों की हत्या करने वाला पाबलो एस्कोबार 1982 का कोलंबियाई संसदीय चुनाव जीत चुका है। शेष विश्व में इस प्रकार के असंख्य उदाहरण हैं। वापस संदेशखाली की ओर लौटते हैं। यहां शेख शाहजहां ने कैसे अपना साम्राज्य खड़ा किया? शाहजहां बंगलादेश से प.बंगाल आया था और यहां आकर उसने अपनी आपराधिक गतिविधियों को बढ़ाना प्रारंभ किया। उत्तर 24 परगना स्थित संदेशखाली, बंगलादेश सीमा के पास है, इसी कारण वह यहां बस गया। 

शुरू में शाहजहां ने ईंट-भट्ठों के मजदूरों के साथ काम करते  हुए एक समूह बना लिया और फिर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माक्र्सवादी) से जुड़ गया। फिर राजनीतिक संरक्षण का लाभ उठाकर संदेशखाली में स्थानीय किसानों-आदिवासियों की जमीनों पर कब्जा करना शुरू कर दिया। अत्याचार आदि की असंख्य शिकायतों के बाद भी शेख पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। 2010-11 में जब प्रदेश की राजनीति में सत्ता परिवर्तन की लहर चली, तब 2 वर्ष पश्चात शाहजहां शेख अवसर को भांपकर तृणमूल कांग्रेस से जुड़ गया। शेख पर प.बंगाल राशन वितरण घोटाले में 10 हजार करोड़ का गबन करने का आरोप है। ई.डी. ने इसी मामले में सबसे पहले बंगाल के पूर्व मंत्री ज्योतिप्रिय मलिक को गिरफ्तार किया था। इसके बाद जब ई.डी. इसी वर्ष 5 जनवरी को शाहजहां शेख के ठिकानों पर छापेमारी करने पहुंची, तब उसके समर्थकों ने जांच दल पर जानलेवा हमला कर दिया। इसके लगभग एक माह बाद 8 फरवरी को स्थानीय महिलाओं ने शेख और उसके गुर्गों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। 

संदेशखाली में पीड़ित महिलाओं ने जो आप बीती मीडिया के कैमरों के सामने सांझा की, उससे हर कोई स्तब्ध है। शेख के आतंक का खुलासा पटना उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश एल. नरसिम्हा रैड्डी की अगुवाई में एक छह सदस्यीय तथ्यान्वेषी दल (फैक्ट फाइङ्क्षडग टीम) ने भी किया है। इसी दल की सदस्य भावना बजाज का आरोप है कि प्रदेश सरकार और पुलिस पूरी घटना को दबाने में जुटे हैं। उन्होंने कहा, ‘‘मैं 28 से 70 साल की उम्र की 20 महिलाओं से मिली। उसमें 70 साल की महिला अपनी बेटी और बहू की सुरक्षा को लेकर परेशान थी...। अधिकतर महिलाओं ने शिबू हाजरा का नाम लिया। वह हर रात एक महिला को अपने पास पार्टी ऑफिस में रोक लेता था। उनके शरीर पर पड़े निशान उनकी हालत को बयां कर रहे थे।’’ 

शाहजहां शेख पर लैफ्ट-फासिस्ट का मौन या फिर उसे क्लीन-चिट देने का प्रयास समझ में आता है। वास्तव में, अमरीका के ‘गुड तालिबान, बैड तालिबान’ की भांति लैफ्ट-फासिस्ट भी ‘सैकुलर क्राइम, कम्युनल क्राइम’ की मानसिकता से ग्रस्त है। यदि कोई गौरक्षक किसी गौहत्या करने वाले की पिटाई कर दें, जिसमें उसकी मौत हो जाए, जैसे 2015 में दिल्ली के निकट दादरी में अखलाक के साथ हुआ था तब लैफ्ट फासिस्ट उसे स्थानीय कानून-व्यवस्था के बजाय अंतर्राष्ट्रीय स्तर का सांप्रदायिक मुद्दा बना देते है। परंतु संदेशखाली में वर्षों से यौन-यातनाओं की शिकार महिलाओं की चीख-पुकार को छद्म-सैकुलरवाद के नाम पर अनसुना कर रहे हैं। ऐसा पहली बार नहीं है। यह समूह घोषित आतंकवादी याकूब मेमन और अफजल गुरु के प्रति भी अपनी सहानुभूति जताते रहे हैं। 

प.बंगाल के हालिया प्रकरण में शाहजहां गिरफ्तार तब हुआ, जब कलकत्ता उच्च न्यायालय ने मामले का स्वत: संज्ञान लेकर प्रदेश की ममता सरकार की निष्क्रियता पर भड़ककर गिरफ्तारी के आदेश दिए। जमीन कब्जाने, महिलाओं के यौन-उत्पीडऩ सहित कई मामलों में नाम होने और ई.डी. जांचदल पर हमले का आरोपी होने के बाद भी शेख इतने दिनों तक इसलिए गिरफ्तार नहीं हुआ, क्योंकि उसे सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस का संरक्षण प्राप्त था। क्या सभ्य समाज संदेशखाली घटनाक्रम को स्वीकार करेगा? क्या एक अपराधी को केवल अपराधी के रूप में नहीं देखना चाहिए, चाहे उसकी राजनीतिक-वैचारिक पहचान कुछ भी हो?-बलबीर पुंज 
 

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