अमरीकी टैरिफ नीतियों का भारत और विश्व पर प्रभाव

Edited By ,Updated: 21 Apr, 2025 05:14 AM

impact of us tariff policies on india and the world

वैश्विक व्यापार में संरक्षणवाद का दौर एक बार फिर से उभर रहा है। अप्रैल 2025 में अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा घोषित ‘पारस्परिक टैरिफ’ (रेसीप्रोकल टैरिफ) नीति ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को हिला दिया है। इस नीति के तहत, भारत पर 27 प्रतिशत का...

वैश्विक व्यापार में संरक्षणवाद का दौर एक बार फिर से उभर रहा है। अप्रैल 2025 में अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा घोषित ‘पारस्परिक टैरिफ’ (रेसीप्रोकल टैरिफ) नीति ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को हिला दिया है। इस नीति के तहत, भारत पर 27 प्रतिशत का टैरिफ लगाया गया है, जबकि अन्य देशों जैसे चीन, वियतनाम और यूरोपीय संघ पर भी भारी टैरिफ थोपे गए हैं। यह नीति अमरीका के व्यापार घाटे को कम करने और घरेलू उद्योगों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से लागू की गई है, लेकिन इसके दूरगामी परिणाम भारत और विश्व की अर्थव्यवस्थाओं पर पड़ रहे हैं। प्रसिद्ध अर्थशास्त्री  प्रो. अरुण कुमार इस नीति के प्रभावों का विश्लेषण करते हुए बताते हैं कि अमरीका ने अपनी टैरिफ नीति को ‘पारस्परिक’ करार देते हुए कहा है कि यह अन्य देशों द्वारा अमरीकी वस्तुओं पर लगाए गए टैरिफ और गैर-टैरिफ बाधाओं (जैसे मुद्रा हेरफेर और नियामक अंतर) के जवाब में उठाया गया कड़ा कदम है। 

ट्रम्प प्रशासन का दावा है कि भारत अमरीकी वस्तुओं पर 52 प्रतिशत का प्रभावी टैरिफ लगाता है, जिसके जवाब में भारत से आयात पर 27 प्रतिशत का टैरिफ लगाया गया है। हालांकि, इस गणना की सटीकता पर सवाल उठाए गए हैं। मिंट की एक रिपोर्ट के अनुसार, अमरीका ने व्यापार घाटे और आयात मूल्य के आधार पर टैरिफ दरें तय कीं, जो कि विश्व व्यापार संगठन के डाटा से मेल नहीं खातीं। भारत की अमरीकी वस्तुओं पर औसत टैरिफ दर 2023 में केवल 9.6 प्रतिशत थी, जो अमरीकी दावों से काफी कम है।

इस नीति में 2 स्तर के टैरिफ शामिल हैं। 5 अप्रैल से सभी देशों पर 10 प्रतिशत का आधारभूत टैरिफ और 9 अप्रैल से देश-विशिष्ट टैरिफ। कुछ वस्तुओं जैसे फार्मास्यूटिकल्स, अर्धचालक और ऊर्जा उत्पादों को टैरिफ से छूट दी गई है, जिससे भारत के कुछ क्षेत्रों को राहत मिली है। भारत जो अमरीका का एक प्रमुख व्यापारिक सांझेदार है, 2024 में 80.7 बिलियन डॉलर का माल अमरीका को निर्यात करता था। 27 प्रतिशत टैरिफ से भारत के कई क्षेत्र प्रभावित होंगे, लेकिन कुछ क्षेत्रों को प्रतिस्पर्धात्मक लाभ भी मिल सकता है। उधर भारतीय कपड़ा उद्योग को मिश्रित प्रभाव का सामना करना पड़ेगा। हालांकि भारत पर टैरिफ वियतनाम (46 प्रतिशत) और बंगलादेश (37 प्रतिशत) की तुलना में कम है, फिर भी बाजार और मुनाफे में कमी का जोखिम बना रहेगा।

वहीं भारत के 9 बिलियन डालर के फार्मास्यूटिकल निर्यात को टैरिफ से छूट दी गई है, जिससे इस क्षेत्र को राहत मिली है। भारतीय फार्मा कंपनियों के शेयरों में 5 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई। हालांकि सॉफ्टवेयर सेवाएं प्रत्यक्ष रूप से टैरिफ से प्रभावित नहीं हैं, लेकिन वीजा प्रतिबंध और व्यापार तनाव भारतीय आई.टी. कंपनियों जैसे टी.सी.एस. और इंफोसिस के लिए चुनौतियां पैदा कर सकते हैं। टैरिफ के कारण भारत के निर्यात में 30-33 बिलियन डालर की कमी आ सकती है। अर्थशास्त्रियों ने भारत की 2025-26 की विकास दर को 20-40 आधार पर कम करके 6.1 प्रतिशत कर दिया है।

हालांकि, भारत सरकार का दावा है कि यदि तेल की कीमतें 70 डालर प्रति बैरल से नीचे रहती हैं, तो 6.3-6.8 प्रतिशत की विकास दर हासिल की जा सकती है। अमरीकी टैरिफ नीति का वैश्विक अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ेगा। प्रो. कुमार के अनुसार, यह नीति वैश्विक व्यापार प्रणाली में 1930 के स्मूट-हॉले टैरिफ एक्ट के समान व्यवधान पैदा कर सकती है। टैरिफ से वैश्विक व्यापार की गति धीमी होगी, जिससे आर्थिक विकास प्रभावित होगा। जे.पी. मॉर्गन ने चेतावनी दी है कि यदि यही टैरिफ नीति लागू रहती है, तो अमरीका और वैश्विक अर्थव्यवस्था मंदी में आ सकती है। इससे आयातित वस्तुओं की कीमतें बढ़ेंगी, जिससे अमरीका में मुद्रास्फीति बढ़ सकती है। बोस्टन फैडरल रिजर्व बैंक का अनुमान है कि टैरिफ से कोर पी.सी.ई. मुद्रास्फीति में 0.5-2.2 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है। वैश्विक शेयर बाजारों में गिरावट और मुद्रा अस्थिरता पहले ही देखी जा चुकी है।

चीन, यूरोपीय संघ और अन्य देशों ने अमरीकी वस्तुओं पर जवाबी टैरिफ की घोषणा की है, जिससे वैश्विक व्यापार युद्ध की आशंका बढ़ गई है। इससे आपूर्ति शृंखलाएं बाधित होंगी और व्यवसायों को लागत बढऩे का सामना करना पड़ेगा। कम प्रति व्यक्ति आय वाले देश जैसे कंबोडिया (50 प्रतिशत टैरिफ) सबसे अधिक प्रभावित होंगे। इससे अमरीका की विकासशील देशों में साख को नुकसान हो सकता है। भारत को इस संकट को अवसर में बदलने के लिए रणनीतिक कदम उठाने चाहिएं। भारत को अमरीका के साथ व्यापार समझौते पर तेजी से काम करना चाहिए। 23 बिलियन डालर के अमरीकी आयात पर टैरिफ कम करना एक शुरूआत हो सकती है। यूरोपीय संघ, आसियान और मध्य पूर्व जैसे वैकल्पिक बाजारों पर ध्यान देना चाहिए। भारत-ई.यू. मुक्त व्यापार समझौते को तेज करना महत्वपूर्ण होगा। आत्मनिर्भर भारत और ‘मेक इन इंडिया’ जैसी पहलों को मजबूत करके घरेलू उत्पादन और खपत को बढ़ावा देना चाहिए। छोटे और मध्यम उद्यमों के लिए सबसिडी, कर राहत और निर्यात प्रोत्साहन योजनाओं को लागू करना चाहिए।

अमरीकी टैरिफ नीति ने वैश्विक व्यापार में अनिश्चितता का माहौल पैदा किया है। भारत के लिए यह एक चुनौती होने के साथ-साथ अवसर भी है। प्रो. कुमार का मानना है कि यदि भारत रणनीतिक रूप से कार्य करे, तो वह न केवल इन टैरिफों के नकारात्मक प्रभावों को कम कर सकता है, बल्कि वैश्विक आपूर्ति शृंखला में अपनी स्थिति को भी मजबूत कर सकता है। दीर्घकालिक दृष्टिकोण और सुधारों के साथ, भारत इस संकट को एक नए आर्थिक युग की शुरूआत में बदल सकता है।-विनीत नारायण
 

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