ऐसे तो नगर पालिकाओं का संघ बन कर रह जाएगा भारत

Edited By ,Updated: 28 Jan, 2024 03:46 AM

in this way india will become a federation of municipalities

मैं इस कॉलम की शुरूआत इस निर्विवाद आधार पर करता हूं कि भारत राज्यों का एक संघ है। राज्य (जम्मू-कश्मीर को छोड़कर) भारत के संविधान की पहली अनुसूची में सूचीबद्ध हैं। संघवाद का सार इस तथ्य में निहित है कि ब्रिटिश शासित प्रांत और रियासतें स्वेच्छा से संघ...

मैं इस कॉलम की शुरूआत इस निर्विवाद आधार पर करता हूं कि भारत राज्यों का एक संघ है। राज्य (जम्मू-कश्मीर को छोड़कर) भारत के संविधान की पहली अनुसूची में सूचीबद्ध हैं। संघवाद का सार इस तथ्य में निहित है कि ब्रिटिश शासित प्रांत और रियासतें स्वेच्छा से संघ का हिस्सा बनने के लिए सहमत हुए। राज्यों को भाषाई आधार पर पुनर्गठित किया गया क्योंकि राज्य महज एक प्रशासनिक इकाई नहीं है; इसकी भाषाई, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और राजनीतिक पहचान है। 

बिना किसी संदेह के संघीय
‘हम कितने संघीय हैं’ के बारे में हम विवाद कर सकते हैं। भारत वास्तव में संघीय है, संविधान के कुछ प्रावधान संघीय चरित्र का विस्तार करते हैं और कुछ प्रावधान इसे प्रतिबंधित करते हैं, लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं है कि, अपनी स्थापना के समय, भारत के संविधान ने एक संघीय देश की परिकल्पना की थी। अपने तर्क को पुष्ट करने के लिए, मैं अनुच्छेद-368 (2) का हवाला देता हूं जिसके अनुसार विधेयक को कानून बनने से पहले संसद द्वारा किए गए संविधान में कुछ संशोधनों को आधे राज्य विधानमंडलों द्वारा अनुमोदित किया जाना आवश्यक है। 

संसद की संशोधन शक्ति विवाद का विषय रही है। अंतत:, सुप्रीम कोर्ट ने केशवानंद भारती (1973), और मिनर्वा मिल्स (1980) मामले में   फिर से पुष्टि की कि संविधान की मूल संरचना या विशेषताओं को नहीं बदला जा सकता है। केशवानंद भारती, एस.आर. बोम्मई और अन्य मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने घोषणा की कि ‘संघवाद’ संविधान की एक बुनियादी विशेषता है। यह संघवाद की जीत थी। न्यायालय द्वारा कानून की घोषणा के बावजूद, केंद्र सरकार ने संघवाद को खत्म करने के तरीके ढूंढ लिए हैं। एक राज्य की शक्तियां कार्यकारी, विधायी और वित्तीय हैं। आइए देखें कि भाजपा सरकार ने इन शक्तियों को कैसे खत्म कर दिया है :- 

कार्यकारी : अनुच्छेद 154 और 162 के तहत, राज्य के पास कार्यकारी शक्ति है और यह उन सभी मामलों तक फैली हुई है जिनके संबंध में राज्य विधायिका के पास कानून बनाने की शक्ति है। पुलिस राज्य का विषय है। डी.जी.पी. (कानून एवं व्यवस्था) की नियुक्ति राज्य सरकार द्वारा की जाती है। हालांकि, केंद्र सरकार ने, प्रभावी रूप से, राज्य को योग्य आई.पी.एस. अधिकारियों के नाम यू.पी.एस.सी. को प्रस्तुत करने की आवश्यकता करके और राज्य की पसंद को यू.पी.एस.सी. द्वारा शॉर्टलिस्ट किए गए 3 अधिकारियों तक सीमित करके शक्ति छीन ली है। 

एन.ई.ई.टी. की शुरूआत करके, केंद्र ने राज्यों को अखिल भारतीय परीक्षा में छात्रों द्वारा प्राप्त अंकों/रैंक के आधार पर ही मैडीकल कॉलेजों (राज्य सरकार द्वारा स्थापित और पूर्ण वित्त पोषित कॉलेजों सहित) में छात्रों को प्रवेश देने के लिए बाध्य किया है। राज्य सरकारों को केंद्र सरकार द्वारा आंशिक रूप से वित्त पोषित योजनाओं के लिए धन देने से इंकार कर दिया गया है, जैसे कि राज्य की योजना की ब्रांडिंग में एक उपसर्ग या प्रत्यय जोड़ा गया था या व्यय का ऑडिट प्रमाण पत्र समय पर जमा नहीं किया गया था। केरल को धन देने से इंकार कर दिया गया है क्योंकि राज्य ने नए स्कूल नहीं खोले हैं। राज्य के इस तर्क को खारिज कर दिया है कि कम जन्म दर, कम बच्चों के कारण वह कुछ स्कूलों को बंद करने के लिए बाध्य है। ऐसे बाहरी आधार भाजपा शासित राज्यों पर लागू नहीं होते हैं। 

विधायी : संविधान की समवर्ती सूची में 47+4 प्रविष्टियां कानून के क्षेत्र हैं जिन पर संसद और राज्य विधानमंडल दोनों कानून बना सकते हैं। केंद्र सरकार ने, राज्य सरकारों की बात टाले बिना, नागरिक प्रक्रिया सहित कई विषयों पर कानून पारित किए हैं; वन; औषधियां; एकाधिकार; ट्रेड यूनियन; सामाजिक सुरक्षा और सामाजिक बीमा; श्रम का कल्याण; शिक्षा; कानूनी, चिकित्सा और अन्य पेशे; बंदरगाह; व्यापार एवं वाणिज्य; मूल्य नियंत्रण; कारखाना; बिजली; पुरातात्विक स्थल; संपत्ति का अधिग्रहण; मुद्रा शुल्क; आदि-आदि। 

अनुच्छेद 254(2) समवर्ती सूची के विषय पर एक राज्य कानून बनाने में सक्षम बनाता है जो उस राज्य में पहले के केंद्रीय कानून पर लागू होगा यदि राज्य कानून को राष्ट्रपति की सहमति मिल गई है, लेकिन मुझे संदेह है कि क्या वह एकता लागू करने के उत्साह में है। सभी मामलों में भाजपा सरकार राज्य सरकार को हर हाल में बाध्य करेगी। समवर्ती सूची वस्तुत: संघ सूची बन गई है। समवर्ती सूची के कई विषयों पर राज्यों की सहमति के बिना ही संसद द्वारा कानून पारित करने की प्रथा की निंदा की जानी चाहिए। 

सबसे खराब उदाहरण हाल ही में पारित 3 आपराधिक कानून विधेयक हैं। जबकि ‘आपराधिक कानून’ और ‘आपराधिक प्रक्रिया’ समवर्ती सूची में हैं। केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों पर सख्ती की है। नामांकित व्यक्तियों के एक तदर्थ समूह द्वारा 3 विधेयकों का मसौदा तैयार करने के बाद परामर्श का दिखावा भी नहीं किया गया। इसके अलावा, विधेयक के कई प्रावधान ‘सार्वजनिक व्यवस्था’ और पुलिस के विषयों का अतिक्रमण करते हैं जो राज्य सूची के विषय हैं। 

वित्तीय : संघवाद का क्षरण भाजपा सरकार द्वारा वित्तीय शक्तियों के निर्मम प्रयोग से अधिक स्पष्ट कहीं नहीं है। यह पता चला है कि प्रधानमंत्री ने 14वें वित्त आयोग को प्रस्तावित राज्यों के कर राजस्व में कटौती करने का ‘निर्देश’ देने का प्रयास किया। इसके बाद, शुद्ध कर राजस्व में राज्यों की हिस्सेदारी 41 प्रतिशत को घटाकर लगभग 31 प्रतिशत कर दी गई है। गैर-सांझा करने योग्य उपकर और अधिभार अंधाधुंध लगाए गए हैं। राज्यों की उधारी संदिग्ध तरीकों से गंभीर रूप से सीमित कर दी गई है। बेहद खराब तरीके से डिजाइन किए गए और खराब तरीके से लागू किए गए जी.एस.टी. कानूनों ने राज्यों की वित्त व्यवस्था को पंगु बना दिया है। 

सहायता अनुदान और आपदा राहत वितरण में राज्य और राज्य के बीच भेदभाव किया जाता है। किसी भी गैर-भाजपा राज्य वित्त मंत्री से पूछें तो वह धन के लिए केंद्र सरकार से भीख मांगने के लिए मजबूर होने की कहानी बताएगा (भाजपा राज्य के वित्त मंत्री दबी जुबान में बुदबुदाएंगे)।सत्ता के गलियारों में जो फुसफुसाहट थी वह एक परियोजना बन गई है। यदि परियोजना सफल हो जाती है, तो राज्य मात्र प्रशासनिक इकाइयां बनकर रह जाएंगे और भारत नगर पालिकाओं का संघ या इससे भी बदतर स्थिति बन जाएगा।-पी. चिदम्बरम

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