Edited By ,Updated: 30 Jul, 2023 07:02 AM
अफ्रीका में हिंदू धर्म फैल रहा है। अमरीका में योग का कारोबार 13 अरब डॉलर का हो गया है। यूरोप में हिंदुओं की आबादी बढ़ रही है। भारत की साफ्ट पॉवर साफ्टवेयर की तरह पूरी दुनिया के हार्डवेयर में फिट हो रही है। लेकिन इस प्रसार के पीछे मूल वजहें क्या हैं?
अफ्रीका में हिंदू धर्म फैल रहा है। अमरीका में योग का कारोबार 13 अरब डॉलर का हो गया है। यूरोप में हिंदुओं की आबादी बढ़ रही है। भारत की साफ्ट पॉवर साफ्टवेयर की तरह पूरी दुनिया के हार्डवेयर में फिट हो रही है। लेकिन इस प्रसार के पीछे मूल वजहें क्या हैं? क्या यह प्रसार हमें विश्वगुरु बनाने में कारगर होगा? क्या यह हमें एक आॢथक महाशक्ति के तौर पर स्थापित करेगा? भारत की सांस्कृतिक विरासत बहुत विराट है। ये हड़प्पा-मोहनजोदड़ो से चलकर नालंदा-तक्षशिला से होते हुए आज एक जीवनशैली में परिवर्तित हो चुकी है। यहां सभी धर्मों के मेले सभी के लिए लगते हैं। व्रत, पूजा, परंपरा और ज्ञान की ऐसी खिचड़ी यहीं परोसी जाती है, जो सभी मजहबों की एकरूपता की कहानी लगते हैं।
हम चांद और सूरज को सभी के लिए जरूरी मानकर करवाचौथ और ईद मनाने वाले मुल्क की तरह देखे जाते रहे हैं। पर पश्चिमी देशों में आज एक विमर्श तेजी से जगह बना चुका है। भारत में अल्पसंख्यक खतरे में है, और एक दक्षिणपंथी विचार के साए में लोग डर कर जी रहे हैं। यह तब है जब पूरी दुनिया में अपने स्थानीय अधिकारों की बात करके राजनीति एक तरफ झुक चुकी है। पर भारत के लोग जो सालों से विदेशों में व्यापार और नौकरियों के लिए जाते रहे हैं, उनकी निष्ठा को लेकर कभी भी सवाल नहीं उठे हैं। आज गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, एडोबी जैसी वैश्विक कंपनियों को चलाने वाले सीईओ से लेकर होटल, फिलिंग स्टेशन, ग्रॉसरी स्टोर्स के मालिक और कामगार भारतीयों ने अपनी संस्कृति के मूल तत्वों से हर समाज में बेहद आसानी से मेलजोल किया है।
वे नौकरियां खाने वाले, आप्रवासी खतरा पैदा करने वाले बाहरी आबादी की तरह नहीं देखे जाते हैं। यही वह सबसे बड़ी वजह है जिससे भारतीय समाज के लोग जहां भी गए, वहां धीरे-धीरे एक संरचना बनाने में सफल रहे। स्थानीय नियमों का शब्दश:पालन करके, अति महत्वाकांक्षी न दिखकर, भारतीय मूल्यों को पहनावे और खान पान में जिंदा रखकर वे घुलते-मिलते रहे। अमरीका और यूरोप जाने वाले पहले भारतीय परिवारों की 2 से 3 पीढिय़ां आज वहां की नागरिक बनकर आगे बढ़ रही हैं। विदेश मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार करीब 3 करोड़ 20 लाख भारतीय आज एन.आर.आई., पी.आई.ओ. और ओ.सी.आई. विदेशों में हैं। सालाना 25 लाख लोग भारत से विदेशों में रहने को जाते हैं। देशों की बात करें तो 45 लाख भारतीय अमरीका में, 41 लाख सऊदी अरब में, 34 लाख यू.ए.ई. में, 29 लाख मलेशिया में, 20 लाख म्यांमार में, 18 लाख यूके और कनाडा में रहते हैं।
19वीं सदी में गिरमिटिया मजदूर बनकर मॉरीशस, गुयाना, त्रिनिदाद, टोबैगो जाने वाले लाखों लोग आज इन देशों की प्रगति में बड़े चेहरे हैं। आजादी के बाद व्यापारी वर्ग और युवा बेरोजगार पश्चिमी देशों की ओर गए। उन्होंने वहां जाकर जमकर मेहनत की और आधार बनाया। 1906 में अमरीका में स्वामी विवेकानंद की प्रेरणा से स्वामी त्रिगुणातीतानंद ने पहले हिंदू मंदिर का निर्माण करवाया। इसी के बाद 1920 के करीब लंदन में भी पहला हिंदूू मंदिर बना। आज ब्रिटेन में 187 हिंदू मंदिर हैं। वहीं यू.के. और अमरीका में 1911 और 1912 में पहले सिख गुरुद्वारे बने। मंदिरों या पूजा स्थानों के बनने के साथ ही विदेशों में सामुदायिक भावना का विकास शुरू हुआ।
अपनी व्यस्त जिंदगी से समय निकाल कर छुट्टी के दिनों में मंदिर आना और अपने देश के लोगों से मिलना शुरू हुआ। रीति-रिवाज के लिए एक जगह बनी और त्यौहारों के लिए माहौल बना। धीरे-धीरे भारतीय समाज में राजनीतिक चेतना और सामाजिक गतिविधियों में हिस्सेदारी का आत्मविश्वास आता गया। पैसे कमाने, बचाने और उससे समाजसेवा जैसे कार्यों में जुड़कर भारतीयों ने विदेशों में जगह बनाई। आज हम कनाडा, अमरीका और यूरोप में भारतीय लोगों को उच्च पदों पर देखते हैं और महसूस करते हैं कि यह यात्रा लंबी रही होगी। भारतीय परिवार अभी भी विदेशों में सादगी पसंद जीवन बिताने वाली कौम है। आज जब उनकी आबादी प्रभाव डालने वाली हो चुकी है फिर भी वे शांति पसंद, निजता और सबको साथ लेकर चलने वाले लोग हैं। भारत से उनका जुड़ाव मां और बच्चे जैसा है, वह भावनात्मक तौर पर इससे जुड़े रहते हैं। अपनी कमाई का एक अंश भारत भेजना जैसे उनका कत्र्तव्य है। गुजरात,पंजाब, दक्षिण भारत से गए लाखों लोग आज भी अपने शहरों-गांवों के लिए हर दिन कुछ न कुछ करते रहते हैं।
पढ़े-लिखे नौकरीपेशा अब भारत लौटकर अपनी जिंदगी बिताने को तैयार रहते हैं। हिंदू-सिख-मुस्लिम-जैन-बौद्ध भारतीय आज विदेशों में भारत को रचते और पेश करते हैं। हालिया सरकार ने उनको तवज्जो देकर और भारत को महान बनाने की सोच को पुख्ता करके विदेशों में बसे भारतीयों का उत्साह कई गुणा बढ़ाया है। संयुक्त राष्ट्र जैसे संस्थान अब अपनी सूचनाएं हिंदी में देने लगे हैं और इसके लिए सोशल मीडिया पर भारत को रिझा रहे हैं। यकीनन अगर भारत विश्व गुरु बनेगा तो इन कर्मठ और लगनशील विदेशी प्रवासियों का योगदान उसमें सबसे बड़ा होगा।-भव्य श्रीवास्तव