क्या मोदी ट्रम्प के रास्ते पर चल रहे हैं

Edited By ,Updated: 11 Aug, 2019 01:40 AM

is modi following the path of trump

यह उतना गूढ़ प्रश्र नहीं है जितना लगता है लेकिन क्या नरेन्द्र मोदी डोनाल्ड ट्रम्प के रास्ते पर जा सकते हैं? यह विचार प्रवासियों तथा विशेषकर दूसरे रंग के लोगों के प्रति ट्रम्प व मोदी अथवा अधिक सटीकतापूर्वक कहें तो उनकी पार्टी के अल्पसंख्यकों, विशेषकर...

यह उतना गूढ़ प्रश्र नहीं है जितना लगता है लेकिन क्या नरेन्द्र मोदी डोनाल्ड ट्रम्प के रास्ते पर जा सकते हैं? यह विचार प्रवासियों तथा विशेषकर दूसरे रंग के लोगों के प्रति ट्रम्प व मोदी अथवा अधिक सटीकतापूर्वक कहें तो उनकी पार्टी के अल्पसंख्यकों, विशेषकर मुसलमानों के प्रति व्यवहार के साथ बढ़ती समानता से उत्पन्न हुआ है। नि:संदेह ब्यौरे में जाएं तो उनमें अंतर है लेकिन रणनीतिक सोच में जबरदस्त समानता है जो उनको निर्णय लेने में मदद करती है। 

ट्रम्प से शुरूआत करते हैं। द टाइम्स (लंदन) में छपे एक हालिया लेख में दूसरे रंग की चार कांग्रेसी महिलाओं पर जातिवादी शाब्दिक हमलों को ‘एक सोचा-समझा राजनीतिक हमला’ बताया गया है। अखबार में कहा गया है कि ट्रम्प एक तरह के गुस्से का लाभ उठा रहे हैं जिसे कई अश्वेत अमरीकी महसूस करते हैं, जिन्हें वे अपनी कीमत पर अल्पसंख्यकों के हितों को प्रोत्साहित करने के लिए वर्षों के संगठनात्मक प्रयासों के रूप में देखते हैं। और अमरीका के लिए इसके परिणाम अत्यंत भयावह होंगे। 

गुजरात में मुख्यमंत्री के तौर पर 13 वर्ष 
जब मैं पढ़ रहा था तो ऐसा दिखाई दिया कि वे वक्तव्य सतर्क करने के लिए ऊंची आवाज में घंटी बजा रहे हैं। क्या वे, कुछ बदलावों के साथ, नरेन्द्र मोदी पर भी लागू होते हैं? यदि आप गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर उनके 13 वर्षों के कार्यकाल पर ध्यान केन्द्रित करें तो उत्तर स्पष्ट हां है। उनकी रणनीति की ट्रम्पियन प्रकृति को पहचानने के लिए आपको केवल उनके बच्चे बनाने वाले कारखाने, मियां मुशर्रफ, जेम्स माइकल ङ्क्षलगदोह, ‘हम पांच हमारे पच्चीस’ जैसे हवालों को याद करना होगा। 

यद्यपि प्रधानमंत्री के तौर पर उनके पहले पांच वर्षों के दौरान क्या यह प्रश्न उतना मुखर नहीं था? नि:संदेह प्रधानमंत्री के तौर पर उन्होंने हिंदू-मुस्लिम तनाव बढ़ाने वाला कुछ नहीं कहा और बहुत से लोग मानते हैं कि उन्होंने अपने दूसरे कार्यकाल की शुरूआत भारत के अल्पसंख्यकों की ओर विश्वास का हाथ बढ़ाने से की लेकिन इसके साथ ही उन्होंने अपनी पार्टी के लोगों को साम्प्रदायिक आग भड़काने से रोकने के लिए बहुत कम किया और 2014 से लेकर अब तक मॉब लिंचिंग के खिलाफ शायद ही कभी बोले हों, जो वास्तव में उनके पुन: चुने जाने के बाद से अधिक बढ़ती दिखाई दे रही है। 

पुष्टि करने के लिए यह एक कठिन ङ्क्षबदू नहीं है और ऐसा करने के लिए मैं एक उदाहरण दूंगा। गत सरकार के दौरान लगभग प्रति माह कोई भाजपा मंत्री, सांसद तथा विधायक मुसलमानों के बारे में नफरतपूर्ण बातें कहते थे और आमतौर पर, यदि हमेशा नहीं, उन्हें नजरअंदाज कर दिया जाता था। क्या नई सरकार में उनका भाग्य बदल गया है? क्या उन्हें यातना पहुंची है? क्या उन्हें प्रताडि़त किया गया है? संजीव बाल्यान, जिन्हें शुरू में जगह नहीं मिली थी, को वापस सरकार में ले लिया गया, निरंजन ज्योति को सरकार में बनाए रखा गया तथा गिरिराज सिंह को पदोन्नत करके कैबिनेट रैंक दिया गया। इसके अतिरिक्त प्रज्ञा ठाकुर, जो 2008 के मालेगांव मामले में आतंकवाद के आरोपों का सामना कर रही हैं, को भोपाल से भाजपा उम्मीदवार के तौर पर उतारा गया। 

ट्रम्प का व्यवहार
क्या यह रिपब्लिकन राइट विंग के सदस्यों के प्रति ट्रम्प के व्यवहार की याद नहीं दिलाता जो प्रवासियों, विशेषकर दूसरे रंग के लोगों के साथ उनके व्यवहार को सांझा करते हैं? ट्रम्प उनकी आलोचना नहीं करते। इसकी बजाय वह उनके व्यवहार को स्वीकार करने जैसे संकेत देते हैं। केलाने कोनवे जैसे कुछ लोग उनके बहुत करीब हैं। स्टीव बैनन जैसे अन्यों को केवल तब ही जाने दिया गया जब उन्हें साथ रखना असम्भव हो गया। ट्रम्प उनके साथ वफादार हैं जो उनके विचारों को प्रतिङ्क्षबबित करते हैं जो उनके समर्थन को मजबूत बनाता है। 

यही बात मोदी के मामले में सच है। वह आमतौर पर यह आभास देते हैं कि जिस तरह से सामान्यत: मुसलमानों को खलनायक के तौर पर पेश किया जाता है और उनसे जिस तरह का व्यवहार किया जाता है और यहां तक कि उन्हें उनके विधायकों द्वारा ही शारीरिक रूप से निशाना बनाया जाता है, वे उसको अस्वीकार नहीं करते और आमतौर पर खुलकर आलोचना नहीं करते। निश्चित तौर पर मोदी तथा उनकी भाजपा बहुलतावादी मूड और मुसलमानों के खिलाफ निहित घृणा के राजनीतिक लाभार्थी हैं, जो देश भर में फैल गया है। उन्होंने इस पर नियंत्रण पाने के लिए बहुत कम किया है। 

मुसलमानों पर नजर
दरअसल, यहां तक कि आप तार्किक रूप से कह सकते हैं कि मोदी के पास इस भावना का दोहन करने और इसे आगे बढ़ाने की योजनाएं हैं। बहुत से लोगों का मानना है कि देश के सभी हिस्सों में नैशनल रजिस्टर आफ सिटीजन्स को बढ़ाने तथा नागरिकता संशोधन विधेयक पारित करने के लिए उनके दृढ़ निश्चय के पीछे उनका कोई छुपा हुआ गणित है। स्पष्ट तौर पर दोनों प्रयासों में उनकी नजर में मुसलमान हैं। 

अब बात करते हैं ट्रम्प के प्रवासियों के प्रति व्यवहार की अमरीका में उनके विरोधियों पर असर की। डैमोक्रेट्स चिंतित हैं कि उनकी पार्टी को दूसरे रंग की चार कांग्रेसी नेताओं से पहचाना तथा आंका जाएगा। क्या यह आपको ङ्क्षहदू-मुस्लिम मुद्दों पर कांग्रेस पार्टी के व्यवहार की याद नहीं दिलाता? ऐसा दिखाई देता है कि इसने नेहरूवियन धर्मनिरपेक्षता की ओर पीठ कर ली है तथा अपने तौर पर नरम ङ्क्षहदुत्व को अपना लिया है। उदाहरण के लिए राहुल गांधी गर्वपूर्वक दावा नहीं करते कि वह आधे इतालवी तथा एक चौथाई पारसी हैं मगर इसकी बजाय उन्होंने खुद को एक जनेऊधारी ब्राह्मण के तौर पर पेश करना चुना। 

मैंने शुरूआत इस प्रश्र से की थी कि क्या मोदी ट्रम्प के रास्ते पर चल रहे हैं? क्या हम धीरे-धीरे बहुसंख्यकवादी बनते जा रहे हैं और इस तरह से एक ऐसा देश जो अल्पसंख्यकों के प्रति असहिष्णु है, जहां उदारवाद की बजाय राष्ट्रवाद तथा धर्मनिरपेक्षता की बजाय ङ्क्षहदुत्व की डींगें मारी जाती हैं। जो इसके नागरिकों के व्यवहार को परिभाषित करता है।-करण थापर    
               

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