अधीनस्थ न्यायपालिका को मजबूत करना जरूरी

Edited By Updated: 14 Oct, 2021 03:45 AM

it is necessary to strengthen the subordinate judiciary

कोविड महामारी के लम्बे समय तक बने रहने ने देशभर में अदालतों में लम्बित मामलों को बहुत प्रभावित किया है। एक अनुमान के अनुसार विभिन्न अदालतों में लगभग 4 करोड़ मामले लम्बित हैं। इसने न्याय प्रदान करने में देरी की स्थिति को और भी खराब

कोविड महामारी के लम्बे समय तक बने रहने ने देशभर में अदालतों में लम्बित मामलों को बहुत प्रभावित किया है। एक अनुमान के अनुसार विभिन्न अदालतों में लगभग 4 करोड़ मामले लम्बित हैं। इसने न्याय प्रदान करने में देरी की स्थिति को और भी खराब कर दिया है। यह सच है कि उच्च न्यायपालिका ने देश में महामारी से पहले लम्बित मामलों को समाप्त करने का लक्ष्य निर्धारित किया था। 

उच्च अदालतें तथा अधीनस्थ न्यायपालिका पुराने मामलों को क्लीयर करने के दबाव में थीं तथा निश्चित तौर पर कुछ प्रगति भी की गई थी। महामारी ने घड़ी की सुइयों को पीछे घुमा दिया जिसके साथ अदालतों के एक वर्ष से अधिक समय तक बंद रहने से लम्बित मामलों के और ढेर लग गए। जहां उसी समय के दौरान न्यायिक अधिकारियों की सेवानिवृत्ति के साथ खाली पदों की संख्या बढ़ती गई, वहीं उन पदों को भरने के लिए बहुत कम प्रयास किए गए। नवीनतम आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार देश में हाईकोर्ट के जजों के 1080 पदों में से 419 रिक्त हैं। इस तरह से कानून व न्याय मंत्रालय के लिए स्थायी समिति द्वारा संसद में रखी गई रिपोर्ट के अनुसार लगभग 39 प्रतिशत पद रिक्त हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि हाईकोर्ट्स में 419 पदों के लिए हाईकोर्ट कालेजियम्स की ओर से 211 प्रस्ताव अभी प्राप्त होने हैं। इनमें पंजाब तथा हरियाणा, इलाहाबाद, दिल्ली तथा गुजरात की हाईकोर्ट्स शामिल हैं। 

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि न्याय विभाग द्वारा प्राप्त कुल 208 प्रस्तावों में से 92 प्रस्ताव (44.23 प्रतिशत) सुप्रीमकोर्ट कालेजियम के पास क्लीयरैंस के लिए लम्बित हैं तथा 116 प्रस्ताव (55.76 प्रतिशत) समीक्षा के लिए न्याय विभाग के पास। दिलचस्प बात यह है कि विभाग के पास लम्बित कुल 116 प्रस्तावों में से 48 प्रस्ताव (41.37 प्रतिशत) इंटैलीजैंस ब्यूरो की ओर से क्लीयरैंस की प्रतीक्षा में हैं। हाईकोटर््स में जजों की नियुक्तियां संविधान की धारा 2017 के अंतर्गत की जाती हैं। यह एक लम्बी प्रक्रिया है जो किसी रिक्ति के पैदा होने के संभावित समय से 6 महीने पूर्व अवश्य शुरू हो जानी चाहिए। यद्यपि ऐसा शायद ही कभी किया जाता हो तथा आंकड़े दर्शाते हैं कि कुछ रिक्तियां वर्ष 2005 से लम्बित हैं। 

भारत के वर्तमान मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमन्ना की अवश्य प्रशंसा की जानी चाहिए कि इस मामले में उनके पूर्ववर्तियों द्वारा कुछ भी कर पाने में असफल होने के बाद उच्च न्याय पालिका ने रिक्त पदों को भरने का मामला उन्होंने  गंभीरतपूर्वक हाथ में लिया। 

पहली बार, इस अगस्त में एक साथ 9 नए जजों ने सुप्रीमकोर्ट के जजों के तौर पर शपथ ली। इसके साथ ही यह भी पहली बार हुआ कि एक साथ सुप्रीमकोर्ट के लिए तीन महिला जजों की नियुक्ति की गई है। कुछ दिन बाद सुप्रीमकोर्ट कालेजियम, जो हाईकोर्ट के जजों के नाम का प्रस्ताव देता है, ने भी एक ही बार में हाईकोर्ट के जजों के तौर पर पदोन्नति के लिए 68 नामों का प्रस्ताव देकर इतिहास रच दिया। समारोह में बोलते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश  रमन्ना ने कहा कि कालेजियम का इरादा ‘सभी हाईकोर्टों में 41 प्रतिशत रिक्तियों को भरने का बड़ा कार्य पूरा करने का है।’ 

जहां उन्होंने सुप्रीमकोर्ट (जहां अभी भी 4 पद लम्बित हैं) तथा हाईकोर्टों में रिक्तियां भरने का निश्चय जताया है,  उन्हें आवश्यक तौर पर अधीनस्थ न्यायपालिका पर अधिक ध्यान देना होगा जहां करोड़ों की संख्या में मामले लम्बित हैं। उपलब्ध नवीनतम आंकड़ों के अनुसार कुल स्वीकृत 23566 पदों में से कम से कम 6224 या 26 प्रतिशत  भारत की अधीनस्थ न्याय पालिका में रिक्त हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि इस सूची में बिहार 361 जजों के साथ शीर्ष पर है जिसकी निचली अदालतों में स्वीकृत पदों की संख्या 1847 है। इसका अर्थ यह हुआ कि राज्य में 80 प्रतिशत पद रिक्त हैं। फास्ट ट्रैक अदालतों को मजबूत करने तथा मध्यस्थता के माध्यम से मामलों को निपटाने तथा छोटे-मोटे मामले दायर करने के लिए हतोत्साहित करने के प्रयास होने चाहिएं, विशेषकर  सबसे बड़े वादी द्वारा-खुद सरकार।-विपिन पब्बी

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