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साम्प्रदायिक और जातिवाद के नारों से विभाजनकारी एजैंडा खड़ा कर रहे नेता

Edited By ,Updated: 17 Apr, 2025 05:38 AM

leaders are creating a divisive agenda with communal and casteist slogans

भारत की वर्तमान सत्ताधारी पार्टी, संघ परिवार जैसे संगठनों के नेता-कार्यकत्र्ता और उनका चापलूस मीडिया देश में हर क्षेत्र में प्रगति के बड़े-बड़े दावे कर रहे हैं। लेकिन भारत की बहुसंख्यक आबादी की बढ़ती आर्थिक और सामाजिक स्थिति और इसके परिणामस्वरूप...

भारत की वर्तमान सत्ताधारी पार्टी, संघ परिवार जैसे संगठनों के नेता-कार्यकत्र्ता और उनका चापलूस मीडिया देश में हर क्षेत्र में प्रगति के बड़े-बड़े दावे कर रहे हैं। लेकिन भारत की बहुसंख्यक आबादी की बढ़ती आर्थिक और सामाजिक स्थिति और इसके परिणामस्वरूप उत्पन्न होने वाली गंभीर समस्याएं इन सरकारी दावों को परेशान करती हैं। कुल मिलाकर,भारतीय आम लोगों की स्थितियां पौष्टिक भोजन, रहने योग्य आश्रय,दैनिक जीवन की अन्य घरेलू जरूरतों, सामाजिक सुरक्षा और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं जैसी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए बहुत उपयुक्त नहीं हैं, जिन्हें जीवित रहने और स्वस्थ जीवन जीने के लिए बुनियादी शर्त माना जाता है।

उन्होंने कफन बांधकर स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया। उनके जीवन भर के संघर्ष, अतुलनीय बलिदानों और लोगों के भारी समर्थन के कारण, 1947 में, उपरोक्त कथन के उद्देश्यों में से एक, देशवासी औपनिवेशिक ब्रिटिश शासकों की गुलामी से आजादी पाने में सफल रहे। लेकिन अफसोस की बात है कि दूसरे लक्ष्य की प्राप्ति आज भी भारतीयों के लिए एक बुरा सपना है। इसका मतलब यह है कि भारत की जनता आज तक उस आर्थिक असमानता और गुरबत के मकडज़ाल से मुक्त नहीं हो सकी है, जिसके उन्मूलन की कल्पना क्रांतिकारी देशभक्तों ने अपने मन में की थी।

हालांकि सतही तौर पर देखने पर देश में विभिन्न क्षेत्रों में हुई प्रगति का अनुभव किया जा सकता है। बुनियादी उद्योगों, कृषि, शैक्षणिक एवं स्वास्थ्य संस्थानों, वैज्ञानिक अनुसंधानों, अंतरिक्ष, सड़क, रेलवे और हवाई परिवहन तथा निर्माण जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में हासिल किए गए विकास की चमक के भ्रम में आकर बहुत से लोग यह सोचकर धोखा खा जाते हैं कि भारत दुनिया की आर्थिक महाशक्ति है। लेकिन किसी भी देश के आर्थिक विकास का प्राथमिक और वास्तविक पैमाना यह है कि इस तीव्र विकास से आम लोगों के जीवन स्तर में क्या सुधार हुआ है यानी जो विकास हो चुका है या हो रहा है उसकी असली परीक्षा आम लोगों को उपलब्ध भोजन, उनके आवास की स्थिति, लोगों को उपलब्ध रोजगार की मात्रा और गुणवत्ता, बिना किसी भेदभाव के सभी के लिए समान शैक्षिक और स्वास्थ्य सुविधाएं और सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा छतरी के बारे में है। इसे मापदंडों के आधार पर ही तय किया जा सकता है।

इस संबंध में देश की लगभग आधी आबादी की सामाजिक-आर्थिक स्थिति और चरित्र से संबंधित तथ्यों की जांच करने के बाद यह कहना गलत नहीं होगा कि आजादी के बाद देश के लोगों की स्थिति में सुधार हुआ है, इसके विपरीत, यह कई मायनों में बदतर हो गई है। हालांकि, जब केंद्र सरकार देश की 140 करोड़ आबादी में से 80 करोड़ लोगों को 5 किलो दाल और 20 किलो आटा-चावल देने के लिए पूरे देश में अपनी पीठ थपथपाती फिरती है तो किसी भी बुद्धिमान व्यक्ति के लिए देश की वास्तविक स्थिति को समझना कोई मुश्किल काम नहीं है। 2024 में हुए एक सर्वे के मुताबिक भूख के मामले में हम 127 देशों में 105वें नंबर पर हैं।

देश में गर्भवती महिलाओं की शारीरिक कमजोरी के कारण जन्म से पहले मरने वाले बच्चों की संख्या प्रति 1000 पर 28 है। देश की 13.7 प्रतिशत आबादी पौष्टिक आहार नहीं ले रही है, जिसके कारण बड़ी संख्या में 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चे अपनी उम्र के अनुसार कम वजन के हैं। वैसे तो देश में महिलाओं को ‘देवी’ के रूप में सम्मान दिया जाता है लेकिन महिलाओं और पुरुषों के बीच समानता के मानकों के अनुसार हमने दुनिया के 191 देशों में 122वें नंबर पर आने का ‘सम्मान’ हासिल किया है। 2021 में देश के 15 सबसे अमीर लोगों के पास भारत की कुल संपत्ति का 40.5 फीसदी हिस्सा था। क्या यह तस्वीर डरावनी और शर्मनाक नहीं है? गौरतलब है कि इन हालात से घिरे देश के मौजूदा शासक विश्व गुरु बनने का ढिंढोरा पीट रहे हैं।

दशकों से भयानक रेल दुर्घटनाएं होती आ रही हैं, जिनमें कई लोग अकारण ही मारे जाते हैं। लेकिन किसी भी रेल मंत्री ने इन दुर्घटनाओं की जिम्मेदारी लेते हुए कभी इस्तीफा नहीं दिया। वैसे  किसी समय स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री, जिनके उदाहरण दे देकर आर.एस.एस. और भाजपाइयों की जुबान थक जाती है,  ने अपने रेल मंत्री के कार्यकाल के दौरान हुई दुर्घटना की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए अपने पद से इस्तीफा देने का साहस दिखाया था। अंतर्राष्ट्रीय मानक संस्थाओं द्वारा भारत की आर्थिक स्थिति के बारे में अक्सर चौंकाने वाले आंकड़े पेश किए जाते हैं। लेकिन हमारे शासक इन रिपोर्टों के तथ्यों को भारत विरोधी ताकतों की देश को बदनाम करने की साजिश या देश विरोधियों का झूठा प्रचार बताकर खारिज कर देते हैं। अगर कोई विदेशी अखबार या नेता हमारे प्रधानमंत्री का एक छोटा-सा बयान भी छाप देता तो गोदी मीडिया और संघ-भाजपा का आई.टी. सैल  उनकी तारीफ  में मसाले लगाकर  इसे  प्रमोट करते हैं। राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक दृष्टि से हम तेजी से अराजकता का शिकार ‘बीमार देश’ बनते जा रहे हैं। सांप्रदायिक और जातिवादी नारों के शोर में विभाजनकारी एजैंडा खड़ा कर लोगों की असल जिंदगी नहीं बदली जा सकती। इसलिए  सभी मेहनतकश लोगों को एक मजबूत एकता बनाने और एक संयुक्त संघर्ष शुरू करने की जरूरत है।-मंगत राम पासला

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