जीवन ‘जरूरतों’ के अनुसार जिएं-‘ख्वाहिशों’ के हिसाब से नहीं

Edited By ,Updated: 18 Jul, 2020 04:36 AM

live according to  needs   not according to desires

मैंने सरकार द्वारा दी गई एस्कॉर्ट की सुविधा को वापस  करने  का निर्णय किया। मेरे लिए यह बहुत साधारण निर्णय था। परन्तु उसके कारण इतनी अधिक चर्चा हुई कि प्रशंसा में बहुत से फोन आए। मुझे इस बात की हैरानी हुई। प्रदेश से ही नहीं अन्य प्रदेशों  से यहां तक

मैंने सरकार द्वारा दी गई एस्कॉर्ट की सुविधा को वापस  करने  का निर्णय किया। मेरे लिए यह बहुत साधारण निर्णय था। परन्तु उसके कारण इतनी अधिक चर्चा हुई कि प्रशंसा में बहुत से फोन आए। मुझे इस बात की हैरानी हुई। प्रदेश से ही नहीं अन्य प्रदेशों  से यहां तक कि दिल्ली और उत्तर प्रदेश से भी कुछ लोगों ने फोन द्वारा मेरी सराहना की। मुझे ऐसा लगा कि सरकारी खर्चों में बचत का विषय सबके मन में इतना ज्वलंत है कि मेरे इस साधारण निर्णय पर इतनी अधिक प्रतिक्रिया हुई।

कोरोना संकट  के प्रारंभ के दिनों में ही भारत के राष्ट्रपति महोदय ने एक बहुत सराहनीय निर्णय किया था। उन्होंने कहा कि वे 30 प्रतिशत वेतन कम लेंगे और राष्ट्रपति भवन के खर्चों में 20 प्रतिशत की कटौती करेंगे। खर्च में कटौती का निर्णय इसलिए और भी महत्वपूर्ण है कि राष्ट्रपति भवन के रख-रखाव पर बहुत अधिक खर्च होता है। 20 प्रतिशत कमी ही 54 करोड़ रुपए बनेगी। बिजली का साल का खर्च ही 12 करोड़ रुपए है। उनके निर्णय के बाद मैंने सार्वजनिक रूप से उसकी सराहना की थी और सरकार से अपील की थी कि सभी सरकारें अपने खर्चों में कमी करें। मुझे इस बात की हैरानी व दुख है कि राष्ट्रपति महोदय के निर्णय के बाद मेरे एस्कॉर्ट छोड़ने के अतिरिक्त इस प्रकार की बचत का कोई समाचार कहीं से नहीं आया।  यह आज की सरकारों की नवाबी मानसिकता को बताता है। इस दिशा में सोचने को ही कोई तैयार नहीं। दिल्ली में राष्ट्रपति और पालमपुर में मैं... 

अब सभी के लिए यह अत्यंत आवश्यक हो गया है कि सब प्रकार के खर्चों में अधिक से अधिक बचत की जाए। एक विद्वान ने कहा है, ‘‘जीवन जरूरतों के अनुसार जिएं-ख्वाहिशों के अनुसार नहीं। जरूरत तो थोड़े में भी पूरी हो जाती है परन्तु ख्वाहिश तो शहंशाहों की भी अधूरी रहती है।’’ इस देश में यह बहुत चिंता का विषय है कि एक तरफ विश्व में सबसे अधिक भूखे भारत में रहते हैं। ग्लोबल हंगर इंडैक्स के अनुसार 19 करोड़ लोग रात को भूखे  पेट सोते हैं। देश की जवानी बेरोजगारी के कारण हताश और निराश हो रही है। 

सभी सरकारों के गैर योजना व्यय में कम से कम 20 प्रतिशत की कमी तुरन्त की जा सकती है। यह बचत कई लाख करोड़ रुपए बनती है। सरकारी खर्चों में भयंकर फिजूलखर्ची और भ्रष्टाचार भी होता है। छोटे से हिमाचल के छोटे से पालमपुर में रहने वाले- मैंने छोटा-सा निर्णय एस्कॉर्ट सुविधा वापस करने का किया। इसी से सरकार को कम से कम चार लाख रुपए मासिक बचत होगी और एक साल का 48 लाख रुपए, जरा सोचिए, पूरे भारत की प्रदेश और केंद्र की सभी सरकारें, सरकारों की सैंकड़ों कम्पनियां यदि सभी बचत के सिद्धांत का पालन करें तो कितनी बचत होगी। 

मेरा सौभाग्य है कि मैं जो कहता हूं वह करके भी दिखाता हूं। 1977 में बहुत कुछ करने की तमन्ना थी। साधन कम थे। साधन भी जुटाए और बचत की बात भी सोची। बचत सबसे पहले अपने आप से शुरू की। अपने कार्यालय में चार फोन में से एक फोन कटवा दिया। इसी प्रकार सभी कार्यालयों में कुछ फोन कटे। मुख्यमंत्री के साथ प्रवास में चलने वाली कारों के काफिले को कम किया और सबसे बड़ा निर्णय शनिवार और रविवार को सरकारी गाडिय़ों का चलना बिल्कुल बंद करवा दिया। अपवाद में कुछ आवश्यक सेवाओं को छूट दी। यहां तक कि मुख्यमंत्री कार्यालय से लिखे जाने वाले सभी पत्र लिफाफे की बजाय कुछ पोस्टकार्ड पर भी भेजे जाने लगे। इस छोटे से निर्णय से लगभग 50 करोड़ रुपए की बचत हुई थी। बड़े अधिकारी, विधायक और सांसद जब किसी सरकारी मकान में जाते हैं तो उसकी हर प्रकार सेनवाबी तरीके से नई सजावट की जाती है। मैं दिल्ली में जब भी सरकारी आवास में जाता था तो मकान में केवल बहुतजरूरी मुरम्मत ही करवाता था। विभाग के कर्मचारी हैरान होते थे। केंद्रीय लोक निर्माण विभाग में उस क्षेत्र में एक हिमाचल के अधिकारी थे। उनसे इस संबंध में खूब बातें हुईं। उन्होंने बताया कि जब भी कोई नेता नए मकान में आते हैं तो सब कुछ बदला जाता है। 

केंद्रीय सरकार में वित्त मंत्री श्री यशवंत सिन्हा पूरी सरकार में आॢथक अनुशासन लाने का प्रयत्न करने लगे। मंत्रिमंडल में गंभीर चर्चा हुई। श्री अटल जी ने विशेष रूप से वित्तीय अनुशासन पर जोर दिया। बड़ी-बड़ी बातों पर विचार हो रहा था। मैंने कहा था कि मैं जब मंत्री बना, कृषि भवन में आता था तो कार्यालय प्रारंभ होते ही कैंटीन से चाय कमरों में जाते हुए देखता था। कई बार थोड़ा विलम्ब से आया था बीच में उठ कर बाहर गया तो ऐसा लगता था-कार्यालय न होकर कोई रैस्टोरैंट हो। मैंने अपने कार्यालय की जांच की। मैं हैरान हो गया। चाय पर ही महीने में कई हजार रुपए का व्यय-मैं तो बहुत कम चाय पीता था, पिलाता भी बहुत कम था। परन्तु मेरे पूरे कार्यालय में कई बार चाय और चाय के अलावा और भी बहुत कुछ-मैंने उस पर अंकुश लगाया। चाय दिन में केवल एक बार  मंगवाई जाएगी। मैंने मंत्रिमंडल में कहा था कई हजार रुपए की बचत मेरे कार्यालय में ही हुई-छोटी बातों से वित्तीय अनुशासन शुरू करना चाहिए। श्री अटल जी ने मेरी बात को बहुत सराहा था।

श्री मोरारजी देसाई प्रशासन में पूरी सादगी का व्यवहार करते थे। मिलने वालों को चाय नहीं पिलाते थे। काम की बात संक्षेप में करते थे। उनकी मेज पर बादाम व किशमिश रखी जरूर थी पर कभी खिलाई नहीं जाती थी। एक बार मैं व हरियाणा के डा.मंगल सैन उन्हें मिलने गए। श्री मंगल सैन बड़े विनोद प्रिय स्वभाव के थे। गंभीर चर्चा के बीच मुस्कुरा कर कहने लगे,‘‘प्रधानमंत्री जी ये बादाम दिखाने के लिए ही हैं या खाने के लिएभी।’’ देसाई जी मुस्कुरा कर हमें खाने के लिए कहने लगे। शायद मैंने पहली बार उनके चेहरे पर मुस्कुराहट देखी थी। 

हिमाचल प्रदेश में एक सरल सहज सादा स्वभाव के राज्यपाल श्री वीरेन्द्र वर्मा जी थे। एक दिन कहने लगे कि वे प्रवास पर एक जगह तीन दिन ठहरे। उनके लिए बाथरूम में प्रतिदिन साबुन की नई टिकिया रखी जाती थी। एक दिन के प्रयोग के बाद ही पुरानी उठा दी जाती थी। उन्होंने वहां अधिकारियों को डांटा और समझाया कि एक साबुन की टिक्की एक दिन में तो खर्च नहीं होती। मैंने तब उन्हें कहा था कि मैं उनसे भी कुछ आगे हूं। मैंने कहा बाथरूम में साबुन की टिक्की समाप्त हो जाती है तो उसके छोटे से बचे हिस्से को वॉशबेसिन में हाथ धोने के लिए प्रयोग किया जाता है। हाथ धोने के लिए अलग साबुन की आवश्यकता नहीं पड़ती। वे बड़े प्रसन्न हुए थे। 

मैंने अपना जीवन कठिन आर्थिक तंगी के संघर्षों में गुजारा है। इसलिए जीवन भर घर में परिवार में व सरकार में बचत तथा कठोर आॢथक अनुशासन  का पालन किया और अन्त्योदय के लिए समर्पित रहा। कोरोना संकट के कारण आॢथक दृष्टि से बहुत बड़़ा संकट आने वाला है। यदि समझदारी व कठोर वित्तीय अनुशासन का पालन करेंगे तभी ठीक प्रकार से जी सकेंगे। एक-एक बूंद लुटाई जाए तो समुद्र खाली हो जाता है और एक -एक बूंद बचाई जाए तो समुद्र भर जाता है। किसी भी स्थान पर फिजूल खर्ची व भ्रष्टाचार देख कर मेरी आंखों के सामने वे करोड़ों गरीब आ जाते हैं जो रात को भूखे पेट सोने पर विवश होते हैं और फिर मैं अपनी आंखों को पोंछता रहता हूं।-शांता कुमार(पूर्व मुख्यमंत्री हि.प्र. व पूर्व केन्द्रीय मंत्री)

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