कुछ भूली-बिसरी यादें... (2) ‘लोक सभा’ या तो ‘शोर सभा’ बन गई है या ‘शोक सभा’

Edited By Updated: 08 Apr, 2021 04:02 AM

lok sabha  has become either  shor sabha  or  shok sabha

मुझे संसद के दोनों सदनों ‘राज्यसभा’ और ‘लोकसभा’ में काम करने का अवसर मिला। इस बात से मुझे बहुत दुख होता था कि विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के जनप्रतिनिधियों की सभा में चिंतन-मनन व संवाद बहुत ही कम होता था। संसद का अधिकांश

मुझे संसद के दोनों सदनों ‘राज्यसभा’ और ‘लोकसभा’ में काम करने का अवसर मिला। इस बात से मुझे बहुत दुख होता था कि विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के जनप्रतिनिधियों की सभा में चिंतन-मनन व संवाद बहुत ही कम होता था। संसद का अधिकांश समय शोर-शराबे, बॉयकाट और टोका-टोकी में बीत जाता था। कई बार ऐसा भी हुआ कि कई दिनों की लम्बी अवधि के दौरान कोई काम ही नहीं हुआ। सदन की कार्रवाई शुरू होने के साथ ही शोर मचना शुरू हो जाता। विरोधी दल के सदस्य घंटों खड़े रह कर नारेबाजी किया करते थे। 

लोकसभा में सबसे आगे वाली पंक्ति में श्री लाल कृष्ण अडवानी जी बैठते थे और उनके बिल्कुल पीछे दूसरी पंक्ति में मैं बैठा करता था। एक दिन सदन की कार्रवाई शुरू होते ही लम्बे समय तक नारेबाजी होती रही। अचानक मेरी नजर दर्शक दीर्घा पर पड़ी। कुछ युवा छात्र एक-दूसरे की ओर इशारा करते हुए हमारी ओर देख कर मुस्कुरा रहे थे। मैं समझ गया कि सदन की कार्रवाई देख कर वे सब हमारा उपहास कर रहे हैं। 

मैंने अडवानी जी को उस ओर देखने को कहा तो कुछ देर उधर देख कर वह भी बहुत उदास हुए और मेरा हाथ पकड़ कर उठ कर बाहर जाने लगे। मैं भी उठा और हम दोनों सदन से बाहर चले गए। श्री लाल कृष्ण अडवानी जी ने कहा कि यह बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण है। इस पर मैंने उन्हें याद दिलाया कि जब हम विपक्ष में थे तो हमारी ओर से भी कभी-कभी ऐसा ही किया जाता था। मुझे याद है तब भी अडवानी जी उसका बहुत विरोध किया करते थे। 

जब कभी किसी बड़े नेता का स्वर्गवास हो जाता तो अध्यक्ष की ओर से शोक प्रस्ताव पेश किया जाता और उसके बाद सदन में दो मिनट का मौन रखा जाता था। ऐसे समय में सदन में पूरी तरह से शांति रहती। उन दिनों मैं अक्सर कहा करता था कि लोक सभा या तो ‘शोर सभा’ बन गई है या ‘शोक सभा’। उन्हीं दिनों मैंने अध्यक्ष महोदय जी को पत्र लिख कर यह मांग की थी कि संसद में ‘नो वर्क नो पे’ का सिद्धांत लागू किया जाना चाहिए। मैंने अपने पत्र में यह भी लिखा था कि सभापति द्वारा दो बार रोकने के बाद भी जो सदस्य लगातार सदन की कार्रवाई में बाधा पैदा करें उन्हें उस अवधि का वेतन और भत्ते न दिए जाएं। इस पर बहुत से सदस्यों ने सहमति भी प्रकट की थी। एक बार अडवानी जी बहुत दुखी हुए। मुझे साथ लिया और अध्यक्ष महोदया श्रीमती सुमित्रा महाजन जी के कमरे में गए। 

हमारी बात सुनने के बाद उन्होंने बड़े क्रोध से कहा था कि सदन चलाने की जिम्मेदारी अध्यक्ष पर है। इस पर हम दोनों ने उनसे आग्रह किया था कि इस तरह के व्यवहार द्वारा सदन की कार्रवाई में लगातार बाधा पहुंचाने वाले सदस्यों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। किन्हीं कारणों से अध्यक्ष कठोर कार्रवाई नहीं करते थे और सदन का बहुत सा समय बिना काम के ही बीत जाता था। इसी कारण सदन का सैंट्रल हाल चाय पान पर लम्बी गपशप करने वाले सांसदों से लगभग हर समय भरा रहता था। यह सब देख कर मेरे मन में बहुत पीड़ा होती थी।

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