‘मां हुंदी ए मां-ओ दुनिया वालेओ’

Edited By Updated: 25 Aug, 2020 05:48 AM

maa hundi e maa o duniya waleo

‘मां हुंदी ए मां ओ दुनिया वालेओ’ यह गीत प्रसिद्ध लोक गायक कुलदीप माणक द्वारा गाया हुआ है जिसे मैं बचपन से सुनता आ रहा हूं। आज जबकि मुक्तसर साहिब की घिनौनी घटना ने विश्व में बैठे

‘मां हुंदी ए मां ओ दुनिया वालेओ’ यह गीत प्रसिद्ध लोक गायक कुलदीप माणक द्वारा गाया हुआ है जिसे मैं बचपन से सुनता आ रहा हूं। आज जबकि मुक्तसर साहिब की घिनौनी घटना ने विश्व में बैठे लोगों का ध्यान आकर्षित किया है, तो माणक का गाया गीत फीका पड़ गया लगता है। कौन-सी मां? कौन से रब्ब का नाम? तथा कौन-सी ठंडी छांव? ये बातें परेशान कर रही हैं। 

दुनिया भर के पंजाबियों ने अभागी मां के परिवार को खूब कोसा है और कोस भी रहे हैं। इस मौके पर यह मौकापरस्त परिवार इसी विशेष मान-सम्मान का हकदार भी था। जिस ढंग से मां की मौत हुई है वह भी नग्र शरीर में, सिर में कीड़े पड़ कर, ईंटों के ढेर में। कहर की गर्मी में पानी से प्यासी और भूखी भी। वह दुनिया से निराश गई। बेसहारों वाली जिंदगी उसने जी। ऐसे परिवारों को समाज के सरपरस्त कहलाने का कोई हक नहीं। 

मां का बेटा नेता बनने के सपने लेता है। बिजली बोर्ड से सेवानिवृत्त हुआ है। जिस मां ने उसे संसार दिखाया उसकी तो वह सेवा भी नहीं कर सका और कहता है कि मैं नेता बन कर लोगों की सेवा करूंगा। साथ ही यह भी कहता है कि 30 वर्षों से मेरा मां के साथ कोई सम्पर्क नहीं हुआ। 

पारिवारिक क्लेश था। मां का यह बेटा अब ढींडसा की पार्टी में शामिल था। यह सब कुछ देखते हुए उन्होंने उसे मक्खन के बाल की तरह बाहर निकाल फैंका है। अब कहता है कि मेरी एस.डी.एम. बेटी यह भी नहीं जानती थी कि उसकी कोई दादी भी है। यह पूछा जाए कि किसने बताना था तेरी अफसर बेटी को कि तेरी दादी भी है जो इस दुनिया में है। बताया गया है कि बदकिस्मत मां का पति आरे पर खेत मजदूर था। बेहद गरीब माहौल में दोनों बेटों को पढ़ाया तथा ऊंचे ओहदों पर पहुंचाया। लोग कहते हैं कि मां लोगों के घरों से आटा मांग-मांग कर बेटा-बेटी पालती रही। मां का एक बेटा एक्साइज में अधिकारी है तथा इसी के पास मां थी तथा इसी ने ही उसे घर से बाहर निकाला। कोठियों, कारों के मालिक इन बेटों का खून सफेद हो गया। 

आज दुनिया भर में लोग इन पर थूक रहे हैं। मां की चार बेटियां भी हैं। उनमें से कोई भी मां को संभालने के लिए आगे नहीं आई। आज हम कहते हैं कि बेटियों का जमाना है तथा बेटी-बेटा बराबर होते हैं। फिर कहां गई यह बराबरी? मां का नेता बेटा किसी वक्त सिमरनजीत सिंह मान की पार्टी में भी शामिल था। जगमीत बराड़ के साथ भी रहा है। बसपा में भी गया था मगर अब ढींडसा उसे मिल गया। 

मैं हैरान-परेशान हूं कि ऐसे लोगों को पाॢटयों के नेता कैसे गले लगा लेते हैं? नेता बेटे ने टी.वी. चैनलों के ऊपर आकर बहुत स्पष्टीकरण देने की कोशिश की मगर लोगों की नजरों से बच नहीं सका। कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार ङ्क्षहदू उत्तराधिकार एक्ट के अनुसार अपने पति की सम्पत्ति में पत्नी का हिस्सा होता है। इस मामले में उसके वारिसों ने आपराधिक गलती की है। उससे ज्यादा उन्होंने अपने सरकारी ओहदों तथा संवैधानिक परम्पराओं का कत्ल किया है। शहर के पत्रकारों ने जिला प्रशासन से यह मांग की है कि इस परिवार को ‘लाहनती पुरस्कार’ दिया जाए (इन सब बातों का कुछ मीडिया में सबूत है)-मेरा डायरीनामा निंदर घुगियाणवी 
 

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