पंजाब के वीर योद्धा मदन लाल ढींगरा

Edited By Updated: 17 Aug, 2024 06:31 AM

madan lal dhingra the brave warrior of punjab

20वीं शताब्दी के पहले दशक में जब अंग्रेजी हुकूमत का दमन चक्र भारतीय जनता पर पूरी निरंकुशता से जारी था, जनता को बुरी तरह से रौंदा और कुचला जा रहा था तब 1909 में लंदन में एक अंग्रेज अधिकारी को सरेआम गोलियां मार कर पूरी दुनिया में तहलका मचाने वाले...

20वीं शताब्दी के पहले दशक में जब अंग्रेजी हुकूमत का दमन चक्र भारतीय जनता पर पूरी निरंकुशता से जारी था, जनता को बुरी तरह से रौंदा और कुचला जा रहा था तब 1909 में लंदन में एक अंग्रेज अधिकारी को सरेआम गोलियां मार कर पूरी दुनिया में तहलका मचाने वाले पंजाब के वीर योद्धा मदन लाल ढींगरा को उनके शहीदी दिवस पर देश की जनता अपने श्रद्धासुमन अर्पित कर रही है। 

स्वतंत्र भारत के निर्माण के लिए भारत माता के कितने ही शूरवीरों ने हंसते-हंसते अपने प्राणों को अर्पण किया था उन्हीं वीरों में मदन लाल ढींगरा का नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा गया है। एक संपन्न परिवार में जन्म लेकर मात्र 22 वर्ष की आयु में ही देश की आजादी के लिए फांसी का फंदा चूमने वाले इस वीर की शहादत से देश में आजादी की लड़ाई में तेजी आई और देश की युवा पीढ़ी का जमा हुआ खून पिघल कर स्वतंत्रता पाने के लिए सड़कों पर आ गया। 

मदन लाल ढींगरा का जन्म पंजाब के अमृतसर में प्रसिद्ध सिविल सर्जन डा. दित्ता मल के घर 18 सितम्बर 1883 को हुआ। संपन्न, आधुनिक और पढ़ा-लिखा परिवार होने के कारण पिता अंग्रेजों के वफादारों की सूची में थे, जबकि माता जी अत्यंत धार्मिक एवं भारतीय संस्कारों से परिपूर्ण महिला थीं। परिवार के लाड़ले 1906 में बी.ए. करने के बाद आगे पढऩे के लिए बड़े भाई के पास इंगलैंड चले गए और यूनिवर्सिटी कालेज लंदन में प्रवेश लिया। 

लंदन में पढ़ाई के दौरान मदन लाल की मुलाकात आजादी की लड़ाई लड़ रहे महान क्रांतिकारी वीर सावरकर से हुई जिन्होंने लंदन में रह कर वहीं से आजादी की लड़ाई का आंदोलन चलाया हुआ था। इस आंदोलन से युवा मदन लाल में देश प्रेम की भावना जागृत हुई और उन्होंने अपनी जन्म भूमि की आजादी के लिए कार्य करने की इच्छा व्यक्त की। सावरकर जी ने इनकी इच्छा को गंभीरता से लिया और मदन लाल ढींगरा की कठिन परीक्षा ली। सावरकर जी ने इनके नाजुक हाथ में कील ठोंका, जिससे खून बहने लगा लेकिन इस युवा और साहसी मदन लाल ने हंस कर पीड़ा सहन की। वह क्रांतिकारी परीक्षा में सफल हुए तो वीर सावरकर जी ने खुश होकर इन्हें गले लगा अपने मिशन में शामिल कर लिया। इसके बाद ढींगरा ने क्रांतिकारी गतिविधियों में हिस्सा लेना शुरू करते हुए गोली चलाना भी सीख लिया। उन दिनों इंगलैंड में कर्जन वाइली बड़ी होशियारी से लंदन में आने-जाने वाले भारतीयों की निगरानी कर रहा था। वह प्राय: सभी मनोरंजक स्थलों, सैरगाहों और सभा मंचों में भाग लेकर गुप्त सूचनाएं एकत्रित करता। उसकी नजर अचानक मदन लाल ढींगरा पर पड़ी तो उसने पीछा करना प्रारंभ कर दिया।

उसे यह भी जानकारी मिल गई कि मदन लाल ढींगरा नामक छात्र एक बलिष्ठ एवं निर्भीक भारतीय है जो प्राय: अन्य छात्रों की अपेक्षा शांत और गंभीर मुद्रा में नित्य प्रति खोया-खोया दृष्टिगोचर होता है। कर्जन वाइली ने मदन लाल को उसे मिलने के लिए पत्र भेजा। जिसे पाते ही कर्जन वाइली का संदेहास्पद चेहरा मदन लाल की आंखों में दौड़ गया। इसे इन्होंने सीधा व्यक्तिगत जीवन में दखल देने की संज्ञा दी और कर्जन वाइली को सजा देने की ठान ली। एक जुलाई 1909 की रात इंडिया हाऊस लंदन के इंस्टीच्यूट ऑफ इम्पीरियल स्टडीज के जहांगीर हाऊस में भारतीय राष्ट्रीय एसोसिएशन के वाॢषक समारोह  में भव्य कार्यक्रम किया जा रहा था जिसमें बड़ी संख्या में भारतीय, सेवानिवृत्त अंग्रेज ऑफिसर और नागरिक शामिल थे। कार्यक्रम में कर्जन वाइली भी शामिल था जिसे देखकर मदन लाल ढींगरा का खून खौल गया और ढींगरा ने कर्जन के चेहरे पर बहुत ही करीब से 5 गोलियां दाग कर उसे सदा के लिए मौत की नींद सुला दिया। 

उसके बचाव के लिए आगे आए पारसी डा. कानस खुर्शीद लाल काका को भी गोली मार वहीं ढेर करने के बाद खुद को पुलिस के हवाले कर दिया। इस प्रकार इस निडर नवयुवक ने बड़ी सतर्कता और वीरता का परिचय देते हुए अपनी मातृभूमि के अपमान का बदला उनके देश की धरती पर खून के बदले खून बहाकर ले लिया। 10 जुलाई ढींगरा ने बड़े साहस और उत्तेजना-भरे स्वरों में ओल्ड बेली की अदालत में सिंह गर्जना की- ‘अंग्रेज भारतीयों के दुश्मन हैं। मैंने सचमुच सर कर्जन वाइली पर गोली चलाकर उसकी हत्या की है, मुझे इसका दुख नहीं प्रसन्नता और गर्व अनुभव हो रहा है।’ 23 जुलाई को इन्हें 17 अगस्त को फांसी देने की सजा सुनाई गई। 17 अगस्त को लंदन की पेंटविले जेल में फांसी से पूर्व इन्होंने बहुत ही निडरता से कहा कि इससे स्वतंत्रता संग्राम में तेजी आएगी और वह आजादी आंदोलन में बनी शहीदों की माला के मनके बन गए। 13 दिसम्बर 1976 को इस शहीद के अवशेष भारत लाए गए जहां लाखों देशवासियों ने अपने श्रद्धासुमन अर्पित किए।-सुरेश कुमार गोयल 

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