भाजपा के लौह पुरुष अडवानी को भारत रत्न के मायने

Edited By ,Updated: 04 Feb, 2024 02:44 AM

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार सुबह 11:33 बजे भाजपा के वयोवृद्ध मार्गदर्शक लालकृष्ण अडवानी को देश का सर्वोच्च पुरस्कार भारत रत्न देने की जानकारी सार्वजनिक की। प्रधानमंत्री मोदी ने एक्स पर लिखा कि हमारे समय के सबसे सम्मानित राजनेताओं में शामिल...

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार सुबह 11:33 बजे भाजपा के वयोवृद्ध मार्गदर्शक लालकृष्ण अडवानी को देश का सर्वोच्च पुरस्कार भारत रत्न देने की जानकारी सार्वजनिक की। प्रधानमंत्री मोदी ने एक्स पर लिखा कि हमारे समय के सबसे सम्मानित राजनेताओं में शामिल (लालकृष्ण) अडवानी जी  का भारत के विकास में महान योगदान है। उन्होंने अपने जीवन में जमीनी स्तर पर काम करने से शुरूआत कर हमारे उपप्रधानमंत्री के रूप में देश की सेवा की। 

अडवानी जी को भारत रत्न से सम्मानित किया जाना मेरे लिए एक बहुत ही भावुक क्षण है। अडवानी जी ने अपने सार्वजनिक जीवन में दशकों तक सेवा करते हुए पारदर्शिता और अखंडता के प्रति अटूट प्रतिबद्धता जताई और राजनीतिक नैतिकता में एक अनुकरणीय मानक स्थापित किया। उन्होंने राष्ट्र की एकता और सांस्कृतिक पुनरुत्थान को आगे बढ़ाने की दिशा में अद्वितीय प्रयास किए हैं। मैं इसे हमेशा अपना सौभाग्य मानूंगा कि मुझे उनके साथ बातचीत करने और उनसे सीखने के अनगिनत अवसर मिले। 

इस तरह अटल बिहारी वाजपेयी के बाद लालकृष्ण अडवानी भाजपा का दूसरा चेहरा हैं, जो भारत रत्न से सम्मानित होने जा रहे हैं। अडवानी सिद्धांतों की राजनीति करने वाले नेता के रूप में जाने जाते हैं। हालांकि चुनावी वर्ष में अडवानी को भारत रत्न देने की अचानक यह घोषणा चौंकाने वाली रही है। न इसकी कोई मांग थी और न ही इसके लिए कोई सुगबुगाहट। यह हमेशा की तरह मोदी सरकार का ऐसा फैसला है जिसकी कल्पना करना मुश्किल है। नरेंद्र मोदी ऐसे चौंकाने वाले फैसले राष्ट्रपति के चयन से लेकर राज्यपालों, मुख्यमंत्रियों के नामों तक में करते रहे हैं। यह फैसला इसलिए भी चौंकाने वाला रहा है खासकर तब जब 10 दिन पहले ही एक भारत रत्न बिहार के मुख्यमंत्री रहे दिग्गज समाजवादी कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत देने की घोषणा की गई थी। 

10 दिन के भीतर दूसरे सर्वोच्च सम्मान की घोषणा अपने आप में काफी कुछ कहती है। 90 के दशक में भाजपा का लौह पुरुष का तमगा पाने वाले लालकृष्ण अडवानी अपने गुरु या साथी अटलबिहारी वाजपेयी के साथ पार्टी को सत्ता के दरवाजे तक लाने के लिए जाने जाते हैं। भारतीय जनता पार्टी ने 1984 के लोकसभा चुनाव में 2 सीटों से राजनीतिक सफर की नई शुरूआत की थी। भले शुरूआत नई थी मगर इसकी विरासत में जनसंघ की हिंदूवादी धरोहर मौजूद थी। इस धरोहर से देश की 80 फीसदी आबादी को जोडऩा एक बड़ी चुनौती थी। अडवानी को 90 के दशक में भाजपा के उदय का श्रेय दिया जाता है। अडवानी को यह पुरस्कार दिया जाना पार्टी की मूल विचारधारा को आकार देने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका के प्रति सम्मान के तौर पर देखा जा रहा है। यह भी उल्लेखनीय है कि अडवानी को उसी वर्ष भारत रत्न दिया जा रहा है, जब राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा की गई है। 

अडवानी ने राम मंदिर के मुद्दे को उठाने के लिए 1990 में ‘राम रथ यात्रा’ की थी। तब लखनऊ में  बतौर पत्रकार मैंने पूछा था कि राममंदिर के लिए पार्टी या देश कब तक और किस हद कहां तक जा सकता है। उनका बड़ा संयत-सा जवाब था- सदियों तक और लाखों जान के कुर्बान होने तक। दृढ़ता उनके विचारों में इस बात के 30 साल पहले तक थी और आज भी वही दृढ़ता उनमें नजर आती है। 1927 में कराची (तब भारत का हिस्सा ) में पैदा हुए अडवानी को  डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी का साथ मिला। काफी उम्र में ही वो  जनसंघ के सचिव बने और इसी पार्टी के अध्यक्ष भी 1973 से 1977 रहे, (जनता पार्टी में विलय के पहले तक।) जनता पार्टी की बर्बादी का इतिहास हम सबको पता है। 1980 में भाजपा की स्थापना हुई। अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेयी बने और अडवानी इसके महासचिव।

अडवानी की लोकप्रियता 1990 में चरम पर पहुंची, जब उन्होंने गुजरात के सोमनाथ से अयोध्या तक राम रथ यात्रा निकालकर मंदिर आंदोलन को एक नई धार दी। इस रामरथ यात्रा से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी जुड़े थे। अडवानी ने रथ यात्रा शुरू की तो मोदी को सोमनाथ से मुम्बई तक यात्रा के समन्वय का काम सौंपा था। तब मोदी भाजपा की राष्ट्रीय चुनाव समिति के सदस्य थे। 1991 का चुनाव भाजपा ने लालकृष्ण अडवानी के नेतृत्व में ही लड़ा जिसमें पार्टी ने अभूतपूर्व प्रदर्शन करते हुए 120 सीटों पर जीत हासिल की। वर्ष 2014 से पहले तक अडवानी इस सदी में भाजपा के सबसे कद्दावर नेता थे। 2004 के बाद जब भाजपा विपक्ष में बैठी, अडवानी को तब भी मीडिया में पी.एम. इन वेटिंग कहा जाता था। हालांकि 2009 के चुनाव में किस्मत ने उनका साथ नहीं दिया और वह देश के प्रधानमंत्री नहीं बन सके।

लालकृष्ण अडवानी को भारत रत्न एक नेता के रूप में उनके राजनीतिक संघर्ष का सम्मान है। उनकी राजनीतिक सौम्यता, दृढ़ता और विचारशीलता का सम्मान है। पूरे उत्तर भारत में भाजपा को जन-जन से जोडऩे में उन्होंने अहम भूमिका निभाई। हालांकि राजनेताओं को जब भी पुरस्कार के लिए चुना जाता है तो विवाद होते हैं, सवाल उठते हैं। विपक्षी मीनमेख निकालते हैं। ऐसा इस सर्वोच्च पुरस्कार के साथ भी होता रहा है। 1954 में जब पहली बार 3 लोगों को यह पुरस्कार दिया गया तो इसे पाने वालों में महान वैज्ञानिक सीवी रमन, शिक्षाविद सर्वपल्ली राधाकृष्णन जो तब तक राष्ट्रपति नहीं बने थे और विपक्ष में स्वतंत्र पार्टी की स्थापना कर प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को चुनौती देने वाले सी. राजगोपालाचारी थे। हालांकि 1955 में जिन तीन लोगों को भारत रत्न दिया गया उनमें तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का अपना भी नाम था। 

इसी तरह 1971 में इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री रहते हुए देश का यह सर्वोच्च पुरस्कार ग्रहण कर नेहरू की तरह विवाद को न्यौता दिया। शहादत के बाद 1991 में राजीव गांधी को भी नरसिम्हा राव सरकार ने भारत रत्न से नवाजा था। सवाल तब भी उठे थे। वल्लभभाई पटेल और  बी.आर. अंबेडकर को काफी देर से  भारत रत्न देने पर भी खूब सवाल उठे थे। कुछ ‘समाजसेवियों’ को दिए गए इस सम्मान पर भी यह सवाल उठे। 

मगर लालकृष्ण अडवानी आज की राजनीति में ऐसा चेहरा हैं, जिन्हें भारत रत्न देने पर पक्ष और विपक्ष के सभी नेता बधाई दे रहे हैं। कुछ बयान ऐसे आ भी सकते हैं कि अडवानी को चुनाव की वजह से यह सम्मान दिया जा रहा है ताकि उनको 2014 के बाद राष्ट्रपति आदि के पद से जो नहीं नवाजा गया, उसकी खानापूॢत की जा सके, लेकिन इस तरह की बातों का अब कोई अर्थ नहीं होगा। असल में अडवानी राजनीति में सुचिता, समर्पण और दृढ़ संकल्प का प्रतीक हैं। उन्होंने देश में एक अलग तरह की राजनीति को जन्म दिया। विपक्ष से कभी कटुता नहीं रखी।-अकु श्रीवास्तव 


 

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