‘अटल जैसा कोई नहीं’

Edited By ,Updated: 25 Dec, 2020 03:48 AM

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पिछले सात दशक की राजनीति में भारत में एक व्यक्तित्व उभरा और देश ने उसे सहज स्वीकार किया। जिस तरह इतिहास घटता है, रचा नहीं जाता; उसी तरह नेता प्रकृति प्रदत्त प्रसाद होता है, वह बनाया नहीं जाता बल्कि पैदा होता है। प्रकृति की ऐसी

पिछले सात दशक की राजनीति में भारत में एक व्यक्तित्व उभरा और देश ने उसे सहज स्वीकार किया। जिस तरह इतिहास घटता है, रचा नहीं जाता; उसी तरह नेता प्रकृति प्रदत्त प्रसाद होता है, वह बनाया नहीं जाता बल्कि पैदा होता है। प्रकृति की ऐसी ही एक रचना का नाम है पं. अटल बिहारी वाजपेयी। 

अटलजी के जीवन पर, विचार पर, कार्यपद्धति पर, विपक्ष के नेता के रूप में, भारत के जननेता के रूप में, विदेश नीति पर, संसदीय जीवन पर, उनकी वक्तृत्व कला पर, उनके कवित्व रूपी व्यक्तित्व पर, उनके रसभरे जीवन पर, उनकी वासंती भाव-भंगिमा पर, जनमानस के मानस पर अमिट छाप, उनके कत्र्तव्य पर एक नहीं अनेक लोग शोध कर रहे हैं । आज जो राजनीतिज्ञ देश में हैं, उनमें अगर किसी भी दल के किसी भी नेता से किसी भी समय अगर सामान्य-सा सवाल किया जाए कि उन्हें अटलजी कैसे लगते थे? तो सर्वदलीय भाव से एक ही उत्तर आएगा ‘उन जैसा कोई नहीं था!’

‘भारत रत्न’ अटल बिहारी वाजपेयी  एक बार तेरह दिन, दूसरी बार तेरह महीने और तीसरी बार साढ़े चार वर्ष देश के प्रधानमंत्री रहे। अटल जी प्रधानमंत्री बनें यह सिर्फ भाजपा की नहीं बल्कि पूरे भारत की इच्छा थी। वर्षों तक विपक्ष के नेता रहते हुए भारत का अनेकों बार भ्रमण किया। भ्रमण के दौरान अपनी वाणी से प्रत्येक भारतीय को जहां जोड़ा और भारत को समझा वहीं सदन के भीतर सत्ता में बैठे लोगों पर मां भारती के प्रहरी बनकर सदैव उनकी गलतियों को देश के सामने रखते रहे। भारत की राजनीति में विपक्ष में रहते हुए जितने लोकप्रिय और सर्वप्रिय अटलजी रहे प्रधानमंत्री रहते हुए भी पण्डित जवाहरलाल नेहरू उतने लोकप्रिय नहीं हुए। अटल जी के आचरण और वचन में लयबद्धता और एकरूपता थी। जबतक सदन में विपक्ष या सत्ता में रहे तब तक सदन के ‘राजनीतिक हीरो’ अटल जी ही रहे। इस बात को हम नहीं बल्कि तत्कालीन अनेक वरिष्ठ नेतागण स्वयं कहते थे। 

‘अटलजी’ थे तो जनसंघ और आगे भाजपा के, परंतु उन्हें सभी दलों के लोग अपना मानते थे। उनकी ग्राह्यता और स्वीकार्यता तो इसी से पता लग जाती है कि उन्हें भारत के पूर्व प्रधानमंत्री कांग्रेस के नेता पी. वी. नरसिम्हाराव ने सन् 1994 में जब प्रतिपक्ष का नेता रहते हुए जिनेवा में  संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में भारत के प्रतिनिधिमंडल के नेता के रूप में भेजा था। जबकि ऐसी बैठकों में भारत का प्रधानमंत्री या अन्य ज्येष्ठ मंत्री ही नेता के रूप में जाते हैं, इस घटना से सारा विश्व चकित था। वहीं पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा जी हों या स्व.चन्द्रशेखर सभी उन्हें संसद की गरिमा और प्रेरणा मानते हुए सम्मान करते थे।

भारत के राजनीतिक विश्लेषकों का मानना था कि अटल जी अगर दस वर्ष पूर्व भारत के प्रधानमंत्री बन गए होते तो भारत का भविष्य कुछ और होता। आजादी के दूसरे दिन जो प्राथमिकताएं तय होनी थीं, वह अटल जी के प्रधानमंत्री बनने तक तय नहीं हुई थीं। बावजूद इसके कि अटलजी ने कवि हृदय और प्रखर पत्रकार रहते हुए अपने कार्यकाल में जो ऐतिहासिक और कठोर निर्णय लिए उसे भारत के राजनीतिक जीवन दर्शन में सदैव याद रखा जाएगा। 

संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी में भाषण : सन 1977 में आपातकाल हटने के बाद जब जनता पार्टी की सरकार बनी, तब तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी भाई देसाई ने उन्हें अपनी कैबिनेट में विदेश मंत्री बनाया था। उस दौरान की एक घटना आज भी भारत ही नहीं विश्व भर में लोगों के जहन में ताजा है। संयुक्त राष्ट्र संघ में जब विदेश मंत्री के नाते अटलजी पहुंचे और भारत की राष्ट्रभाषा ङ्क्षहदी में सम्बोधन किया तो पूरा भारत झूम उठा था। वे जब जहां और जैसे भी रहे सदैव भारत की मर्यादा और भारतमाता को वैभवशाली बनाने का कार्य किया। 

पोखरण विस्फोट: पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का मानना था कि हमें हमारी सुरक्षा का पूरा अधिकार है। इसी के तहत मई 1998 में भारत ने पोखरण में परमाणु परीक्षण किया था। वह 1974 के बाद भारत का पहला परमाणु परीक्षण था। 11 मई 1998 यानी आज से 22 साल पहले राजस्थान के पोखरण में एक जोरदार धमाका हुआ और धरती हिल उठी। यह कोई भूकंप नहीं था, बल्कि ङ्क्षहदुस्तान के शौर्य की धमक थी और भारत के परमाणु पराक्रम की गूंज थी। इस परीक्षण से भारत एक मजबूत और ताकतवर देश के रूप में दुनिया के सामने उभरा। दुनिया की प्रतिक्रियाएं स्वाभाविक थीं, लेकिन अब भारत के परमाणु महाशक्ति बनने का मार्ग प्रशस्त हो चुका था और वह दिन लदने जा रहे थे जब परमाणु क्लब में बैठे पांच देश अपनी आंखों के इशारे से दुनिया की तकदीर को बदलते थे। पोखरण ने हमें दुनिया के सामने सीना तानकर चलने की हिम्मत दी, हौसला दिया। 

लाहौर बस सेवा की शुरूआत : अटलजी हमेशा पाकिस्तान से बेहतर रिश्ते की बात करते थे। उन्होंने पहल करते हुए दोनों देशों के बीच रिश्ते सुधारने की दिशा में काम किया। अटल बिहारी वाजपेयी के ही कार्यकाल में फरवरी, 1999 में दिल्ली-लाहौर बस सेवा की शुरूआत हुई थी। पहली बस सेवा से वे खुद लाहौर गए और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के साथ मिलकर लाहौर दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए। प्रधानमंत्री के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी ने देश को एक सूत्र में पिरोने के लिए सड़कों का जाल बिछाने का अहम फैसला लिया था, जिसे स्वर्णिम चतुर्भुज सड़क परियोजना नाम दिया गया। उन्होंने चेन्नई, कोलकाता, दिल्ली और मुम्बई को जोडऩे के लिए स्वर्णिम चतुर्भुज सड़क परियोजना लागू किया। जिसका लाभ आज पूरे देश को मिल रहा है। 

सर्वशिक्षा अभियान : 6 से 14 साल के बच्चों को मुफ्त शिक्षा देने का अभियान ‘सर्व शिक्षा अभियान’  अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में ही शुरू किया गया था। उनके इस क्रांतिकारी अभियान से साक्षरता और शिक्षा दर में अभूतपूर्व रूप से बढ़ौतरी हुई। 

जब डा. अब्दुल कलाम को भारत का राष्ट्रपति बनाया : नेहरूजी के जमाने से जनसंघ और वर्तमान की भाजपा, कांग्रेस सहित सभी विपक्षी दलों ने साम्प्रदायिकता का आरोप लगाया। अटलजी ने मिसाइल मैन प्रख्यात वैज्ञानिक डा. अब्दुल कलाम को भारत का राष्ट्रपति बनाकर साम्प्रदायिकता का आरोप लगाने वालों को करारा जवाब दिया। 

अटलजी ने कभी भी ‘भारतमाता’ को अपनी आंखों से ओझल नहीं किया। वे जिए तो भारत मां के लिए और मरे भी तो भारत मां के लिए। भारत मां के ऐसे महान सपूत और अंतर्राष्ट्रीय व्यक्ति को भारतरत्न देकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश के सबसे बड़े सम्मान के साथ न्याय किया। इसके साथ ही जन-जन में यह विश्वास जगा कि भारत में कत्र्तव्य को प्रणाम किया जाता है। इतना ही नहीं दिल्ली में ‘सदैव अटल’  समाधि बनाकर संपूर्ण राष्ट्र की ओर से जो श्रद्धांजलि दी गई वह सदैव स्मरणीय रहेगा।-प्रभात झा भाजपा राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं पूर्व सांसद

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