कोयला संकट में परमाणु ऊर्जा हो सकती है बेहतर विकल्प

Edited By ,Updated: 19 May, 2022 05:38 AM

nuclear power may be a better option in coal crisis

भारत के कोयला आधारित बिजली संयंत्र अपनी आधी से अधिक बिजली का उत्पादन करते हैं, लेकिन यह ईंधन प्रदूषण फैलाता है और इसकी अत्यधिक मांग के चलते इसके परिवहन में कठिनाई

भारत के कोयला आधारित बिजली संयंत्र अपनी आधी से अधिक बिजली का उत्पादन करते हैं, लेकिन यह ईंधन प्रदूषण फैलाता है और इसकी अत्यधिक मांग के चलते इसके परिवहन में कठिनाई आ रही है। जैसे कि देश अन्य ईंधनों पर विचार कर रहा है, क्या परमाणु ऊर्जा दीर्घकालिक समाधान हो सकती है? सरकार ने मार्च में कहा था कि वह अगले साल कर्नाटक में एक नए परमाणु ऊर्जा रिएक्टर पर काम शुरू करेगी, पहले घोषित ऐसे 10 संयंत्रों की योजना पर आगे बढ़ेगी। 

ब्रिटेन और बैल्जियम भी ऊर्जा सुरक्षा के लिए परमाणु ऊर्जा पर विचार कर रहे हैं। 2011 में जापान के फुकुशिमा परमाणु संयंत्र दुर्घटना के बाद एक दशक से चली आ रही वैश्विक मंदी पर पुनर्विचार हो रहा है। 2011 और 2020 के बीच वैश्विक परमाणु ऊर्जा उत्पादन में 1.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई, एक ऐसी अवधि, जब भारत ने अपने परमाणु ऊर्जा उत्पादन को 38.4 प्रतिशत बढ़ा कर 44.6 टेरावाट-घंटे कर दिया। वैश्विक परमाणु ऊर्जा उत्पादन में भारत का हिस्सा 2020 में 50 वर्षों में अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गया। 

फिर भी, परमाणु ऊर्जा भारत के कुल बिजली उत्पादन का 1.7 प्रतिशत है। डेलॉयट इंडिया के पार्टनर देबाशीष मिश्रा के अनुसार, अगर यह 2030 तक 3 गुणा हो जाता है, तब भी कुल बिजली उत्पादन में परमाणु ऊर्जा की हिस्सेदारी 5 प्रतिशत से भी कम होगी। परमाणु ऊर्जा की पूंजीगत लागत अधिक है, इसलिए टैरिफ  भी उसी अनुपात में बढ़ेंगे। 

उन्होंने कहा कि वैश्विक परमाणु प्रौद्योगिकी प्रदाता अनसुलझे दायित्व मुद्दों के कारण आगे आने के अनिच्छुक हैं। दुर्घटनाओं के मामले में भारतीय कानून अंतर्राष्ट्रीय प्रदाताओं का संभावित असीमित दायित्वों के लिए उजागर करता दिखाई देता है। मिश्रा के अनुसार, भारत अक्षय ऊर्जा पर दांव लगा रहा है। परमाणु ऊर्जा आयोग के पूर्व अध्यक्ष अनिल काकोडकर ने कहा कि स्वदेशी तकनीक का उपयोग करके बनाए गए परमाणु ऊर्जा संयंत्रों को 15 करोड़ रुपए से 20 करोड़ रुपए प्रति मैगावाट या वैश्विक लागत के आधे पर स्थापित किया जा सकता है। भारत के यूरेनियम भंडार (कुछ हाल ही में खोजे गए) पहले के अनुमानों से 5 गुणा अधिक हैं। काकोडकर के अनुसार, देश को अब विश्व स्तर पर परमाणु ईंधन का स्रोत बनाना भी आसान हो गया है। 1974 में अपना पहला परमाणु परीक्षण करने के बाद से भारत को आपूर्ति की कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था। 

काकोडकर ने कहा कि ग्रिड स्थिरता एक मुद्दा बन सकती है, क्योंकि नवीकरणीय ऊर्जा आम हो गई है। ऐसा इसलिए है क्योंकि अक्षय बिजली उत्पादन हवा की गति या मौसम के साथ भिन्न हो सकता है। बिजली उत्पादन का एक स्थिर स्रोत, जैसे कोयला आधारित बिजली, स्थिरता प्रदान करता है, भले ही अक्षय उत्पादन भिन्न हो। काकोडकर ने कहा कि कार्बन उत्सर्जन को कम करने के प्रयासों के परिणामस्वरूप परमाणु ऊर्जा कोयले की जगह ले सकती है। सौर ऊर्जा जैसी नवीकरणीय ऊर्जा की तुलना में परमाणु ऊर्जा का उत्सर्जन कम होता है। 

मिश्रा ने कहा, ‘‘बैटरी की कम लागत से अक्षय संसाधनों की रुकावट को हल करने में मदद मिल सकती है।’’ हाल के वर्षों में बैटरी की लागत में तेजी से कमी आई है। काकोडकर के अनुसार, परमाणु ऊर्जा उत्पादन क्षमताओं को बढ़ाने के लिए समय सीमा होती है, जिसे दशकों में मापा जाता है, भारत को एक विकसित देश के स्तर तक बढ़ाने के लिए सभी उपलब्ध स्रोतों से ऊर्जा निकालने की आवश्यकता होगी।उन्होंने कहा, ‘‘मेरा मानना है कि परमाणु ऊर्जा अपरिहार्य है।’’ 

औसत भारतीय के लिए अन्य जगहों के लोगों की तुलना में कम ऊर्जा उपलब्ध है। ब्राजील में एक व्यक्ति के लिए औसत ऊर्जा खपत भारत की तुलना में 2.4 गुणा अधिक, चीन में 4.4 गुणा अधिक, जापान में 5.8 गुणा अधिक और अमरीका में 11.4 गुणा अधिक है। भारत की ‘ऊर्जा गरीबी’ का समाधान करने में मदद के लिए परमाणु ऊर्जा की क्षमता को करीब से देखा जाएगा।-सचिन पी. मम्पट्टा

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