Edited By ,Updated: 05 Jan, 2024 06:47 AM
सिख पंथ सत्गुरु नानक देव जी से आरंभ होता है। गुरु जी की रसना द्वारा उचारी हुई वाणी को ‘गुरबाणी’ कहा गया है। गुरबाणी सिख पंथ का संविधान है। गुरबाणी में जिन कुकर्मों की मनाही है, वह कुकर्म ‘पाप’ हैं। सत्गुरु नानक देव जी ने अपनी रसना से उचारी वाणी...
‘परहरि पापु पछाणै आपु ॥’ (सतगुरु नानक देव जी)।
गुरु नानक वाणी में लिखे पाप कर्मों की सूची :
सिख पंथ सत्गुरु नानक देव जी से आरंभ होता है। गुरु जी की रसना द्वारा उचारी हुई वाणी को ‘गुरबाणी’ कहा गया है। गुरबाणी सिख पंथ का संविधान है। गुरबाणी में जिन कुकर्मों की मनाही है, वह कुकर्म ‘पाप’ हैं। सत्गुरु नानक देव जी ने अपनी रसना से उचारी वाणी में, जिन पाप कर्मों की मनाही की है, वह गुरु ग्रंथ साहिब जी में अंकित हैं। प्रत्येक ‘गुरु नानक नाम लेवा सिख’ को उन पाप कर्मों से बचने की आवश्यकता है।
बड़े आश्चर्य और खेद की बात है सिख प्रचारक, आम तौर पर हमें जो पाप कर्म बताते हैं; वह ‘पाप’ तो आदि या दसम वाणी में कहीं भी नहीं लिखे हुए। और, जो ‘पाप’ वाणी में लिखे हुए हैं, उन पापों के संबंध में हमारे प्रचारक हमें बताते ही नहीं। गुरबाणी के अनुसार पापों की सूची तो बहुत लंबी है। उनमें से कुछ पाप यहां लिख रहा हूं)
1.अधिक बोलना : बहुता बोलणु झखणु होइ॥ (धनासरी म. 1)
2. कड़वा बोलना : नानक फिकै बोलिऐ तनु मनु फिका होइ ॥ (आसा म. 1)
3. किसी की बुराई करना : मंदा किसै न आखीऐ (आसा म. 1)
4. किसी के अवगुण देखना : हम नहीं चंगे बुरा नही कोई ॥ (सूही म. 1)
5. अहंकार करना : मन रे हउमै छोडि गुमानु॥ (सिरीरागु म. 1)
6. विरोध करना : गुरमुखि वैर विरोध गवावै ॥ (रामकली म. 1)
7. आलस्य करना : मनमुख कउ आलसु घणो फाथे ओजाड़ी ॥ (मारू म. 1)
8. हिंसा करना : हिंसा ममता मोहु चुकावै। (म. 1)
9. झूठ बोलना :कूडू बोलि मुरदारु खाइ॥ (म. 1)
10. जुआ खेलना : जूऐ जनमु न हारहु अपणा (म.?)
11. चोरी करना : चोर जार जूआर पीड़े घाणीऐ॥ (म.?)
12. पर-स्त्री या पर-पुरुष संग करना : परु घरु जोही नीच सनाति॥ (म.?)
13. महिलाओं की बुराई करना और उन्हें पीटना : सो किउ मंदा आखीऐ जितु जंमहि राजान॥ (म. 1)
14. क्षमा न करना : खिमा विहूणे खपि गए खूहणि लख असंख ॥ (रामकली दखणी म. 1)
15. सुच पवित्रता न रखना : सुचि होवै ता सचु पाईऐ ॥ (म. 1)
16. संतोष न रखना : सत संतोखि रहहु जन भाई। (म. 1)
17. संयम न रखना : गिआनु धिआनु गुण संजमु नाही जनमि मरहुगे झूठे॥ (म. 1)
18. दया न करना : निरदइआ नही जोति उजाला॥ (म. 1)
19. दान न करना : दुआदसी दइआ दानु करि जाणै ॥ (म. 1)
20. स्नान न करना : दानहु तै इसनानहु वंजे भसु पई सिरि खुथै॥ (म. 1)
गुरबाणी में वर्णित ऊपर लिखे सभी बुरे कर्म वह हैं; जिन से आस्तिक-नास्तिक, धर्मी-अधर्मी, कम्युनिस्ट-कैपिटलिस्ट, कोई भी इन्कार नहीं कर सकता। इन पाप कर्मों से बच कर ही; मनुष्य का निजी एवं सामाजिक जीवन सुखी हो सकता है तथा पूरा समाज भी सुखी हो सकता है। इसलिए, मनुष्य को इन पाप कर्मों से सदैव ही बचना चाहिए। क्योंकि, धर्म के नियम : मानव जीवन को सुखी बनाने के लिए होते हैं। सिख पंथ के नियम, गुरु जी ने हमारा जीवन सुखी बनाने के लिए बनाए हैं; जो प्रत्येक सिख को धारण करने चाहिएं।
सभी सिख प्रचारकों से विनती है: इन नियमों का प्रचार करके, सभी को दृढ़ करवाएं; ताकि गुरु जी के आदेश का पालन करते हुए, लोग सुखी जीवन व्यतीत कर सकें। उपरोक्त पाप कर्मों का त्याग करके ही, हम सच्चे ‘सिख’ बन सकते हैं, ‘गुरमुख’ बन सकते हैं और गुरु चरणों में प्रवान हो कर अपना लोक-परलोक सुखी कर सकते हैं।