...नहीं तो कांग्रेस ‘अतीत की स्मृति’ बनकर रह जाएगी

Edited By ,Updated: 14 Mar, 2020 04:05 AM

otherwise the congress will remain a memory of the past

कांग्रेस नेता राहुल गांधी को पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिए हुए 8 माह का समय हो चुका है। इसके बाद से कांग्रेस के कुछ भरोसेमंद नेता इस आशा में अभी तक बैठे हैं कि शायद राहुल गांधी अपना मन बदलें। ज्योतिरादित्य सिंधिया के घटनाक्रम ने भी कांग्रेस को...

कांग्रेस नेता राहुल गांधी को पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिए हुए 8 माह का समय हो चुका है। इसके बाद से कांग्रेस के कुछ भरोसेमंद नेता इस आशा में अभी तक बैठे हैं कि शायद राहुल गांधी अपना मन बदलें। ज्योतिरादित्य सिंधिया के घटनाक्रम ने भी कांग्रेस को नहीं जगाया। पार्टी ने न केवल एक मजबूत युवा नेता खो दिया, साथ ही इस पर मध्य प्रदेश को खोने का खतरा भी मंडरा रहा है। दिल्ली चुनावों में कांग्रेस ने जीरो सीटें हासिल कीं और इसके 66 में से 63 उम्मीदवारों ने अपनी जमानतें जब्त करवा लीं। पार्टी का वोट शेयर मात्र 4.26 प्रतिशत था मगर कांग्रेस हाईकमान के लिए यह सब एक व्यापार की तरह था जिसमें तेजी-मंदी लगी रहती है। 

भारत का सामाजिक ताना-बाना तोड़ा जा रहा है
उत्तर पूर्वी दिल्ली में हाल ही में हुए दंगों में 53 लोगों ने अपनी जानें गंवा दीं जिनमें से ज्यादातर मुसलमान थे जो गोली से या फिर जिंदा जलाए गए या पत्थरबाजी से उनकी मौत हुई। ङ्क्षहदुत्व ताकतों का बांटने वाला प्रचार कहीं भी फूट सकता है। आज दिल्ली में तो कल भारत के किसी भी हिस्से में हिंसा भड़क सकती है। यू.पी. सरकार में फैली अराजकता का अंदाजा अजय सिंह बिष्ट की धर्म के नाम पर नफरत की खुली अभिव्यक्ति से पता चलता है। भाजपा प्रवक्ताओं तथा इसके नेताओं द्वारा रोजाना ही जहर उगला जाता है।

साम्प्रदायिकता का घड़ा खौलता ही रहता है। ऐसे जहर उगलने वाले भाषणों द्वारा मतभेद की आवाज उठाई जाती है तब उसे राष्ट्रविरोधी कहकर पाकिस्तान जाने की सलाह दी जाती है। इसके नतीजे में भारत का सामाजिक ताना-बाना तोड़ा जा रहा है और इसकी अंतर्राष्ट्रीय छवि को चोट पहुंचाई जा रही है। हमारे महत्वपूर्ण संस्थानों ने भी समझौता किया है तथा देश की सबसे बड़ी अदालत भी बुजदिल नजर आ रही है। इसलिए कांग्रेस के लिए अति आवश्यक है कि वह अपने आप को पुनस्र्थापित करे जोकि कांग्रेस के अपने फायदे के लिए नहीं बल्कि राष्ट्र के लिए भी फायदेमंद बात होगी। कांग्रेस के आंकड़ों को देखने के बावजूद यही लगता है कि भाजपा के बाद कांग्रेस ही एकमात्र राष्ट्रीय पार्टी है। 

कांग्रेस भविष्य में क्या हासिल कर पाएगी? 
दिसम्बर 2018 के बाद यदि राज्य विधानसभा चुनावों के नतीजों पर गौर किया जाए तो हम देखते हैं कि मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र तथा झारखंड में कांग्रेस की सरकारें हैं। दिल्ली में ‘आप’ ने सबका सफाया किया जबकि हरियाणा में बड़ी मुश्किल से गठबंधन सरकार बन पाई। यदि यही हालत रही तो कांग्रेस भविष्य में क्या हासिल कर पाएगी? भाजपा का 2014 से लेकर 2019 तक का प्रशासन देखकर लगता है कि इसका कोई विकल्प नहीं। राहुल गांधी भी मोदी का तोड़ नहीं हैं। वह कभी भी मोदी के सामने एक शक्तिशाली नेता बनकर नहीं उभरे। 

कांग्रेसियों ने वफादारी की संस्कृति को छोड़कर नए नेतृत्व की बात की
यह खुशी की बात है कि कई कांग्रेसियों ने वफादारी की संस्कृति को छोड़कर नए नेतृत्व के बारे में बात करनी शुरू कर दी है। कांग्रेस में कुछ लोग ऐसे हैं जो सोनिया गांधी को बतौर अध्यक्ष देखना पसंद करते हैं। हालांकि यह स्पष्ट है कि पार्टी को जरूरत एक नए प्रभावशाली नेतृत्व की है। जब पार्टी संकट में थी तब सोनिया गांधी ने इसकी नैया पार लगाई थी और दो चुनावों में कांग्रेस को जीत दिलवाई थी मगर अच्छे नेता सदा नहीं रहते। सोनिया के अलावा पार्टी को एक नए टाइटल की जरूरत है। सोनिया को सम्मानपूर्वक सेवामुक्त होना चाहिए। प्रियंका गांधी वाड्रा के बारे में भी चर्चा होती है। ये सब मूर्खतापूर्ण बातें हैं। इससे भाजपा को वंशवाद पर हमला बोलने का मौका मिलेगा। यह बात प्रतिभा की भावनाओं को भी नकारती है जोकि आजकल युवाओं में देखी जा रही है। यहां पर प्रियंका बुरी तरह से असफल होती है। 

उत्तर प्रदेश जहां पर प्रियंका के पास चार्ज था वहां पर कांग्रेस का वोट शेयर 6.3 प्रतिशत रहा जोकि बसपा तथा सपा से भी निचले दर्जे का था। यहां पर कांग्रेस के पास केवल एक सांसद है। राहुल गांधी के पास एक युवा कांग्रेसी होने के नाते सिंधिया से मिलने का समय नहीं था। 2014 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की हार के बाद पार्टी ने 3 पूर्व मुख्यमंत्रियों, 6 राज्य पार्टी अध्यक्षों, 7 पूर्व केंद्रीय मंत्रियों तथा कई अन्य विश्वसनीय नेताओं को खोया है। इनमें से ज्यादातर मौकापरस्त थे मगर फिर भी हाईकमान की जिम्मेदारी तो बनती है। अब समय है कि कांग्रेस गांधी परिवार से बाहर किसी नए नेता की तलाश करे जो कांग्रेस अध्यक्ष की भूमिका सही तरीके से निभा सके। यहां पर हम शशि थरूर की बात करते हैं जोकि तिरुवनंतपुरम से 2009 से एक प्रभावशाली सांसद हैं। पिछली लोकसभा में मल्लिकार्जुन खडग़े कांग्रेस के नेता थे। 

पंजाब के मुख्यमंत्री कै. अमरेंद्र सिंह तथा राजस्थान से सचिन पायलट भी योग्य नेता हैं। किसी को क्या पता कि इनमें से किसी को मौका मिलेगा जो एक नया नेता बनकर उभरेगा। कांग्रेस अध्यक्ष तथा कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सदस्यों के चयन के लिए सीक्रेट बैलेट का प्रयोग किया जाएगा। यह विसंगति है कि एक ऐसी राजनीतिक पार्टी जोकि लोकतंत्र की सबसे बड़ी हिमायती रही है मगर अंदरूनी तौर पर वह आत्ममंथन नहीं करती। इन चुनावों से जो कोई भी कांग्रेसी अध्यक्ष बनकर उभरता है उसे एक राष्ट्रीय एजैंडे के लिए कार्य करना होता है जो विपक्षी पार्टियों को एक धागे में पिरो सकेगी। नए नेता पर सहमति बननी चाहिए। यदि ऐसी बातों पर ध्यान न दिया गया तो कांग्रेस के लिए दुखद होगा तथा यह पार्टी मात्र अतीत की स्मृति बनकर रह जाएगी।-अनिल धारकर

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