आतंकवाद से लड़ने में पाकिस्तान के दोहरे मापदंड

Edited By ,Updated: 08 Apr, 2024 05:39 AM

pakistan s double standards in fighting terrorism

आतंकवाद का साया भारत जैसे लोकतांत्रिक देशों पर मंडराता रहता है। समस्या आतंकवाद की प्रकृति और आयाम की समझ की कमी नहीं है, बल्कि आतंकवाद से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए उचित उत्तर खोजने में विफलता है क्योंकि यह घरेलू धरती पर चीन और पाकिस्तान की सीमाओं...

आतंकवाद का साया भारत जैसे लोकतांत्रिक देशों पर मंडराता रहता है। समस्या आतंकवाद की प्रकृति और आयाम की समझ की कमी नहीं है, बल्कि आतंकवाद से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए उचित उत्तर खोजने में विफलता है क्योंकि यह घरेलू धरती पर चीन और पाकिस्तान की सीमाओं के पार से संचालित होता है। बेशक, आतंकवाद से लडऩे में संयुक्त राज्य अमरीका का अपना एजैंडा है। आतंकवाद से लडऩे पर भारतीय वैश्विक दृष्टिकोण अमरीकी गणनाओं और रणनीतियों से काफी भिन्न है। 

इस्लामाबाद और बीजिंग प्रायोजित आतंकवाद के हाथों वर्षों तक पीड़ित रहने के बाद, नई दिल्ली के दृष्टिकोण ने अब तक समस्या की अधिक व्यापक वैश्विक समझ हासिल कर ली है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एन.एस.ए.) अजीत डोभाल ने कजाकिस्तान के अस्ताना में शंघाई सहयोग संगठन (एस.सी.ओ.) की बैठक के दौरान भारत-केंद्रित आतंकवादी समूहों से खतरे से प्रभावी ढंग से लडऩे की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने आतंकवाद से निपटने के लिए एकीकृत दृष्टिकोण पर जोर दिया और मॉस्को में हाल ही में हुए आतंकवादी हमले की निंदा की और दोहरे मानकों के बिना आतंकवाद से निपटने में निरंतरता का आग्रह किया। 

डोभाल ने आतंकवाद के खिलाफ भारत के कड़े रुख के बारे में बात की और मौजूदा खतरों के रूप में लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद, अल कायदा और आई.एस.आई.एस. का उल्लेख किया। उन्होंने आग्रह किया कि जो लोग सीमा पार आतंकवाद में सहायता करते हैं, उन्हें जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए। उन्होंने उन व्यक्तियों या संस्थाओं को जवाबदेह ठहराने की आवश्यकता पर जोर दिया, जो आतंकवादी कृत्यों का समर्थन, वित्तपोषण या उन्हें इसके लिए सक्षम करते हैं विशेष रूप से पाकिस्तान द्वारा कई आतंकवादी संगठनों को लगातार समर्थन दिए जाने को देखते हुए। 

ऐसा प्रतीत होता है कि पाकिस्तान के राजनीतिक नेतृत्व का मानना है कि वह कश्मीर मुद्दे पर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को धोखा दे सकता है। 24वें प्रधानमंत्री के रूप में चुने जाने और 2022 के बाद से अपना दूसरा कार्यकाल चिह्नित करने के तुरंत बाद नैशनल असैंबली में अपने विजयी भाषण में, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने कश्मीर मुद्दे की तुलना फिलिस्तीन के साथ की और उनकी स्वतंत्रता का समर्थन करने वाले प्रस्तावों की वकालत की। कश्मीर और फिलिस्तीन के बीच समानताएं खींचकर और दोनों क्षेत्रों की स्वतंत्रता का समर्थन करने वाले प्रस्तावों की वकालत करके, शरीफ की बयानबाजी भारत के प्रति शत्रुता बनाए रखने और सीमा पार आतंकवाद का समर्थन करने के पाकिस्तान के इरादे को इंगित करती है, जिसने जम्मू-कश्मीर के लोगों को पीड़ा पहुंचाई है। यह टकराव वाला रुख पाकिस्तान की भारत के प्रति चल रही दुश्मनी और जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद को समर्थन बंद करने में उसकी अनिच्छा को दर्शाता है। 

पाकिस्तान की आतंकवाद को राज्य की नीति के रूप में उपयोग करना, संलिप्तता से इन्कार करते हुए, एक सतत रणनीति रही है। इसके आलोक में, भारत को सतर्क रहना चाहिए, खासकर जब वह चुनाव मोड में प्रवेश कर रहा हो। पाकिस्तान को कई आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इसलिए, आर्थिक स्थिरता पर आतंकवाद को प्राथमिकता देना एक गंभीर विरोधाभास है। चुनाव नजदीक होने के कारण, पाकिस्तान को हिंसा जारी रखने की बजाय अपनी आर्थिक चुनौतियों और अपने लोगों के कल्याण पर ध्यान देना चाहिए। इसके अलावा, शरणार्थियों के प्रति पाकिस्तान का दृष्टिकोण एक स्पष्ट असंगतता को दर्शाता है जबकि यह फिलिस्तीनियों के साथ एकजुटता में खड़ा है। इसने दशकों से देश में रहने वाले अफगान शरणाॢथयों को निष्कासित कर दिया है। 

प्रारंभ में, पाकिस्तान ने संघर्ष से बचकर निकले अफगानों को शरण दी, लेकिन हाल के घटनाक्रम एक बदलाव का संकेत देते हैं, जो संभवत: अमरीकी सहायता में कमी के कारण वित्तीय कारणों से प्रभावित है। पाकिस्तानी समाज में उनके योगदान के बावजूद, अफगान शरणाॢथयों को अब अन्यायपूर्ण तरीके से सुरक्षा खतरा करार दिया जाता है। इस नीति से दोहरे मानकों की बू आती है। पाकिस्तान को क्षेत्र को अस्थिर करने से रोकना आवश्यक है, और भारत की नई सरकार का ध्यान पाकिस्तान को जम्मू-कश्मीर में शांति भंग करने से रोकना और ङ्क्षहसा भड़काने के किसी भी प्रयास को अस्वीकार करना होना चाहिए। 

पाकिस्तान को एक ‘दुष्ट राष्ट्र’ के रूप में मान्यता हमारे नीति निर्माताओं द्वारा लंबे समय से दी गई है। बेशक, इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान के साथ 1971 के युद्ध के दौरान दुर्लभ नेतृत्व गुण दिखाए। उन्होंने निर्णायक और कठोरता से कार्य करने के लिए जबरदस्त साहस, दृढ़ विश्वास और दृढ़ इच्छाशक्ति का प्रदर्शन किया। आज, हमें अपने राष्ट्रीय उद्देश्यों के बारे में पूरी तरह स्पष्ट होना चाहिए और पाकिस्तान और चीन द्वारा प्रायोजित आतंकवाद के छदम युद्ध के खिलाफ निर्णायक रूप से अपनी लड़ाई लडऩी चाहिए।-हरि जयसिंह
 

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