पंजाबियों की राजनीतिक सोच दूसरों से अलग

Edited By ,Updated: 05 Apr, 2024 05:25 AM

political thinking of punjabis is different from others

भारत में लोकसभा चुनावों का बिगुल बज चुका है और ये चुनाव पंजाब में चुनाव प्रक्रिया के आखिरी चरण में हैं। इन चुनावों को जीतने के लिए देश की 2 बड़ी पार्टियां भाजपा और कांग्रेस देशभर में गठबंधन बना रही हैं। भाजपा ने अपने गठबंधन का पुराना नाम एन.डी.ए. ही...

भारत में लोकसभा चुनावों का बिगुल बज चुका है और ये चुनाव पंजाब में चुनाव प्रक्रिया के आखिरी चरण में हैं। इन चुनावों को जीतने के लिए देश की 2 बड़ी पार्टियां भाजपा और कांग्रेस देशभर में गठबंधन बना रही हैं। भाजपा ने अपने गठबंधन का पुराना नाम एन.डी.ए. ही रखा है। जबकि कांग्रेस का पुराना गठबंधन जिसे यू.पी.ए. कहा जाता था, अब समाप्त हो गया है। नया नाम ‘इंडिया’ ब्लॉक रखा गया है और राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल कर चुकी आम आदमी पार्टी के अलावा कांग्रेस ने देशभर में करीब 26 पाॢटयों के साथ गठबंधन किया है। भाजपा ने देशभर में 3 दर्जन से ज्यादा पार्टियों के साथ गठबंधन किया है। 

इस तरह देशभर में गठबंधन बन गए हैं। लेकिन पंजाब में अभी तक किसी भी पार्टी ने किसी अन्य पार्टी के साथ गठबंधन का ऐलान नहीं किया है। यह इस बात का संकेत है कि पंजाब की राजनीति देश के बाकी हिस्सों से कुछ अलग है। इसे समझने के लिए पंजाब के पुराने इतिहास को जानना जरूरी है। इतिहास के पन्नों के अनुसार इस क्षेत्र में मानव का अस्तित्व आज से  करीब 7 लाख 74 हजार ईसा पूर्व से 11700 ईसा पूर्व के बीच माना जाता है। लेकिन आधुनिक मानव सभ्यता की शुरूआत 3000 ईसा पूर्व यानी आज से लगभग 5024 वर्ष पहले मानी जाती है। इन 5000 से भी अधिक वर्षों में इस क्षेत्र की सत्ता अलग-अलग लोगों के हाथों में जाती रही और इस क्षेत्र की समृद्धि कभी चरम पर पहुंची तो कभी समाप्त हो गई। 

सबसे पहले हड़प्पा सभ्यता इसी क्षेत्र में फैली और यह सभ्यता हर क्षेत्र में अपने चरम पर पहुंची और लगभग 1100 वर्षों तक चली और 1900 ई.पू. के समय यह सभ्यता समाप्त हो गई और लगभग 1400 वर्षों के बाद वैदिक  अर्थात इंडो-आर्यन सभ्यता विकसित हुई और उसी समय ऋग्वेद की रचना हुई। 500 बी.सी.से 15वीं  शताब्दी तक इस पर गांधार, पोरस चंद्रगुप्त मौर्य, कुषाण, हुन्निक, टांक, ओडी शाही और लंगाह सल्तनत सहित विभिन्न राजाओं का शासन था और उसी समय इस क्षेत्र में इस्लाम का भी प्रसार शुरू हुआ। सप्त सिंधु कहे जाने वाले इस क्षेत्र का नाम 10वीं सदी की शुरूआत में 2 फारसी अक्षरों पंज और आब के नाम पर रखा गया था, जिसका अर्थ 5 और पानी (नदी) होता है। यह नाम 15वीं शताब्दी में पूरी तरह प्रचलन में आया। इस क्षेत्र का नाम पंजाब रखने का लिखित प्रमाण बतूता के लेखों में मिलता है, जिन्होंने इस क्षेत्र का दौरा किया था। 

इसके बाद पंजाब पर मुगलों का शासन हुआ और 17वीं शताब्दी में सिख राज्य की स्थापना हुई। सिख शासन के दौरान पंजाब ने अत्यधिक प्रगति की और बार-बार युद्ध लड़े और जीते। इस प्रकार पंजाब के निवासियों ने एक बहादुर और निडर राष्ट्र होने का सम्मान अर्जित किया। इसी कारण से ब्रिटिश सरकार ने 1615 ई. में मुंबई पर कब्जा कर लिया था और पूरे भारत पर अपना शासन स्थापित कर लिया था, लेकिन पंजाब पर कब्जा करने में उसे 200 साल से भी अधिक समय लग गया और अंतत: राजनीतिक रणनीति अपनाते हुए ब्रिटिश सरकार ने 29 मार्च 1849 को पंजाब को अपने कब्जे में कर लिया। 

इस तरह पंजाब से अलग देश होने का गौरव छिन गया। 1947 में भारत की आजादी के साथ पंजाब को एक बड़ी क्षति हुई। चूंकि पंजाब के लोग शुरू से ही सत्ता विरोधी थे, इसलिए आजादी के बाद भी पंजाब और केंद्र सरकार के बीच लंबे समय तक संघर्ष चलता रहा, जो आज भी किसी न किसी रूप में जारी है। इस प्रकार 5 हजार वर्षों के इतिहास में हुए परिवर्तनों, कठिनाइयों और युद्धों के कारण इस क्षेत्र के निवासी देश के बाकी हिस्सों से भिन्न सोच के स्वामी बन गए। पंजाबी प्रांत के अस्तित्व में आने के बाद विभिन्न पाॢटयां गठबंधन बनाकर सरकारें बनाती रहीं क्योंकि पंजाब के चुनावों में आमतौर पर किसी एक पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलता था और त्रिशंकु विधानसभाएं चुनी जाती रहीं। पंजाब की सरकार आमतौर पर 5 साल तक नहीं चलती थी। अन्यथा आपसी विवादों के कारण सरकार बदल जाती या केन्द्र द्वारा राज्यपाल शासन लगा दिया जाता। 

इस दौरान अकाली दल सी.पी.आई. (माक्र्सवादी), भाजपा और बसपा पाॢटयों ने मिलकर  चुनाव लड़ा। कांग्रेस ने भी सी.पी.आई. और  पीपुल्स पार्टी ऑफ पंजाब के साथ मिलकर चुनाव लड़ा। 1992 के बाद सभी सरकारें अपना कार्यकाल पूरा करने में सफल रहीं। लेकिन इन 3 दशकों तक पंजाब की राजनीतिक पार्टियां जनता से बड़े-बड़े वायदे करके और विपक्षी पार्टियों को भ्रष्ट बताकर सत्ता में आईं और खुद भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरती रहीं। यहां तक कि जो पार्टियां एक-दूसरे पर तरह-तरह के दोष लगा रही थीं, उनका गठजोड़ करने का फैसला जनता को रास नहीं आ रहा था। 

आगामी लोकसभा चुनाव से पहले ही पूरे देश की तरह पंजाब में भी गठबंधन की संभावनाएं काफी प्रबल थीं। देश के बाकी हिस्सों की तरह, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने सैद्धांतिक रूप से पंजाब में ‘इंडिया’ गठबंधन के तहत लोकसभा चुनाव लडऩे का फैसला किया। पिछले विधानसभा चुनाव से ही अकाली दल का बसपा के साथ गठबंधन चल रहा था और भाजपा के साथ भी गठबंधन की संभावना काफी बढ़ गई थी। लेकिन जैसे ही पार्टियों के नेतृत्व को पंजाबियों की सोच का एहसास हुआ तो ये सभी पार्टियां अपना-अपना स्थाई वोट बैंक खोने के डर से गठबंधन से हटने को मजबूर हो गईं। शायद यह पहली बार होगा जब पंजाब की सभी प्रमुख पार्टियां अकेले लोकसभा चुनाव लड़ेंगी। यह सब साबित करता है कि पंजाब के लोग और राजनेता देश के बाकी हिस्सों से अलग सोचने लगे हैं। इस का सबसे ताजा और ज्वलंत उदाहरण आम आदमी पार्टी के 2014 और 2019 के लोकसभा और 2022 के विधानसभा चुनाव परिणाम हैं।-इकबाल सिंह चन्नी (भाजपा प्रवक्ता पंजाब)

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