बढ़ती गर्मी में पशु-पक्षियों की प्यास बुझाएं

Edited By ,Updated: 22 Apr, 2025 05:43 AM

quenched the thirst of animals and birds in the increasing heat

गर्मी बढ़ रही है। लू के तेज थपेड़ों के अलर्ट जारी किए जा रहे हैं। लोग गर्मी से बचने के लिए तरह-तरह के उपाय कर रहे हैं। पशु-पक्षियों के बारे में खबरें आ रही हैं। पिछले दिनों ऐसी ही 2 दिलचस्प खबरों पर नजर पड़ी। एक में बताया गया कि दक्षिण लखीमपुरखीरी...

गर्मी बढ़ रही है। लू के तेज थपेड़ों के अलर्ट जारी किए जा रहे हैं। लोग गर्मी से बचने के लिए तरह-तरह के उपाय कर रहे हैं। पशु-पक्षियों के बारे में खबरें आ रही हैं। पिछले दिनों ऐसी ही 2 दिलचस्प खबरों पर नजर पड़ी। एक में बताया गया कि दक्षिण लखीमपुरखीरी और दुधवा नैशनल पार्क में बढ़ती गर्मी को देखते हुए वन विभाग ने जंगल में पानी के स्रोत बनाए। इन्हें ‘वाटर होल’ नाम दिया गया। दक्षिण खीरी में 12 और दुधवा में 37 वाटर होल बनाए गए जिससे कि यहां रहने वाले जानवर अपनी प्यास बुझा सकें। मगर अधिकारी यह देखकर चकित रह गए कि इन सब पर बाघों ने कब्जा कर लिया है। वे यहीं रहते हैं और खेलते-कूदते भी हैं। इनके डर के कारण दूसरे जानवर यहां पानी पीने नहीं आ पाते। वे पानी के लिए बस्तियों का रुख करते हैं। चीतल और जंगली सूअर भी आते देखे गए हैं। 

बताया जा रहा है कि जंगली सूअर कइयों को घायल कर रहे हैं। अधिकारियों की समझ में नहीं आ रहा कि वे क्या करें। वे कह रहे हैं कि जंगल के बाहर भी ऐसे पानी के स्रोत बनाए जा रहे हैं जिससे छोटे जानवर वहां आकर अपनी प्यास बुझा सकें। मान लीजिए जंगल के बाहर बनाए गए स्रोतों पर भी बाघों ने कब्जा कर लिया, तो क्या होगा। आखिर उन्हें कौन रोक सकता है। वैसे भी कहा गया है कि ‘समरथ को नहिं दोष गुसाईं’। दूसरी खबर कूनो नैशनल पार्क से जुड़ी हुई थी। यहां सत्य नारायण गुर्जर पर्यटकों को घुमाने का काम करता है। एक दिन वह जा रहा था, तो उसने कई चीतों को देखा। उसे लगा कि इन्हें प्यास लगी होगी। वह गाड़ी से नीचे उतरा। अपने साथ लाए पानी को एक तसले में उंडेला। यह देखते ही चीते दौड़े आए और पानी पीने लगे। वे सचमुच प्यासे थे। इसका वीडियो वायरल हो गया। 

बड़ी संख्या में लोगों ने इसे देखा और सत्य नारायण की तारीफ भी की। लेकिन वहां के अधिकारियों ने कहा कि सत्य नारायण ने यह ठीक नहीं किया है। उसे चीतों को पानी नहीं पिलाना चाहिए था। जंगल में भगा देना चाहिए था। शायद अधिकारियों ने महसूस किया हो कि अगर चीते उस पर हमला कर देते या कोई और ऐसा करने लगे और चीतों के हमले का शिकार बने, तो भारी मुसीबत हो जाएगी। इसलिए उसे काम से हटा दिया गया।  लेकिन मीडिया में उसके नौकरी से हटाए जाने की बहुत आलोचना हुई। गुर्जर समाज ने धमकी दी कि अगर उसे काम पर वापस नहीं लिया गया, तो आंदोलन करेंगे। सत्य नारायण ने भी एक बातचीत में कहा कि उसने चीतों को पानी पिलाकर कोई अपराध नहीं किया है। उसके बाबा तो शेरों को पानी पिलाते थे। उसे लगा कि चीते प्यासे हैं, तो उन्हें पानी पिला दिया। क्या गलत किया। जब सत्य नारायण को हटाए जाने की आलोचना होने लगी तो अधिकारियों ने फिर से उसे काम पर रख लिया। सोचें कि अगर मीडिया इस घटना का संज्ञान न लेता, तो यह युवा तो एक अच्छे काम के लिए अपनी नौकरी से ही हाथ धो बैठता।

वैसे भी अपने देश में पानी पिलाने की परम्परा रही है। प्यासे को पानी न पिलाना, सबसे बड़ा अपराध भी माना जाता है। प्याऊ लगाना, पानी के लिए बड़े-बड़े  घड़े रखना, जिससे कि आते-जाते लोग पानी पी सकें। जनवरों के लिए हौदों का निर्माण भी होता रहा है, जिससे कि वे अपनी प्यास बुझा सकें। मगर बदले वक्त ने बहुत-सी अच्छी चीजों को भुला दिया या नष्ट कर दिया है। पहले तो लोग रेल यात्राओं या बस यात्राओं में छोटी सुराही या पानी की वह बोतल लेकर चलते थे, जिसमें कपड़ा लगा रहता था, इससे पानी ठंडा रहता था। आज भी बहुत से लोग चिडिय़ों के लिए मिट्टी के बड़े कटोरों में पानी रखते हैं। इन्हें छायादार स्थानों में रखा जाता है, जिससे कि पानी गर्म न हो और चिडिय़ां पानी पी सकें लेकिन यह बात भी सच है कि गर्मी के दिनों में शहरों में पानी के लिए जानवर परेशान होते हैं। उनके पानी पीने के लिए कोई जल स्रोत नहीं बचे हैं। 

डेंगू के डर से जानवरों के लिए अब हौद का निर्माण भी बंद-सा हो चुका है। आदमी तो प्यास लगने पर पानी की बोतल खरीद सकता है, लेकिन जानवर और पक्षी क्या करें। कैसे उनकी प्यास बुझे।  एक तरफ पक्षियों के आवास शहरों में अंधाधुंध पेड़ों की कटाई से नष्ट हुए हैं। गौरैया के नष्ट होने का कारण भी यह है कि इसे घरेलू चिडिय़ा कहा जाता है। पुराने घरों में जहां छत के पास जालीदार निर्माण हुआ करता था, वहां ये ऊपर ही ऊपर आकर तिखालों या पत्थरों के ऊपर अपने घोंसले बनाती थीं। अंडे देती थीं। घरों में गेहूं, चावल आदि की सफाई की जाती थी, तो इन्हें दाना भी उपलब्ध होता था। मगर अब थैली के आटे ने यह सुविधा खत्म कर दी है। फ्लैट सिस्टम में वैसे ही गौरैया आ-जा नहीं सकतीं। पानी वैसे ही उपलब्ध नहीं है। गर्मी के दिनों में न जाने कितनी चिडिय़ां और पशु प्यास के कारण बेहोश हो जाते हैं। दम तोड़ देते हैं। सड़कों पर घूमती गायों तथा अन्य जानवरों को प्यास भी लगती होगी, इसकी ङ्क्षचता भी हमें नहीं है। मनुष्य के साथ इनकी प्यास मिटाना भी जरूरी है।-क्षमा शर्मा   
 

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