अधर में फंसा राहुल का सियासी भविष्य

Edited By ,Updated: 06 Jan, 2024 05:53 AM

rahul s political future stuck in limbo

राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा का मार्ग तय हो गया है, 15 राज्य। 100 जिले यानी 100 लोकसभा सीटें। वैसे इन 15 राज्यों में लोकसभा की 357 सीटें आती हैं।  इसमें से पिछले चुनावों में कांग्रेस को सिर्फ 14 सीटें ही मिली थीं जबकि इंडिया के अन्य धड़ों...

राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा का मार्ग तय हो गया है, 15 राज्य। 100 जिले यानी 100 लोकसभा सीटें। वैसे इन 15 राज्यों में लोकसभा की 357 सीटें आती हैं।  इसमें से पिछले चुनावों में कांग्रेस को सिर्फ 14 सीटें ही मिली थीं जबकि इंडिया के अन्य धड़ों के हिस्से 66 सीटें आई थीं। बाकी की 238 सीटों पर भाजपा ने शानदार जीत हासिल की थी। 

इन 357 सीटों में छत्तीसगढ़, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और ओडिशा की 112 सीटें शामिल हैं जहां कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधा मुकाबला हुआ था। (नवीन पटनायक की पार्टी भी थी लेकिन वह इंडिया गठबंधन का हिस्सा नहीं है)। यहां की 112 सीटों में से कांग्रेस को सिर्फ 4 सीटें मिली थीं जबकि भाजपा ने 95 सीटें जीती थीं। जाहिर है कि राहुल गांधी को कम से कम इन 4 राज्यों में तो जीत का स्ट्राइक रेट सुधारना ही होगा। सुधार भी 25 फीसदी का तो होना ही चाहिए। क्या ऐसा हो सकेगा। अगर हो गया तो यकीन मानिए भाजपा बहुमत के आंकड़े 272 से नीचे आ जाएगी। अगर राहुल गांधी ऐसा कुछ नहीं कर पाए तो उनके सियासी भविष्य पर गंभीर सवाल खड़े हो जाएंगे। 

उधर अगर बंगाल, बिहार, यू.पी., महाराष्ट्र, झारखंड में गठबंधन काम कर गया तो भाजपा एक झटके में 240 के नीचे जा सकती है। ऐसा हुआ तो प्रधानमंत्री मोदी के सियासी सीने की नए सिरे से नपाई शुरू होगी। यानी भारत जोड़ो न्याय यात्रा मोदी और राहुल दोनों के लिए करो या मरो जैसे हालात पैदा करने की क्षमता रखती है। 

आगे बात करने से पहले यह जानना जरूरी है कि इस यात्रा की थीम क्या होगी। यह तय है कि लोकसभा चुनावों की छाया में निकाली जा रही यह यात्रा शुद्ध रूप से राजनीतिक यात्रा है। नाम न्याय यात्रा दिया गया है तो स्वाभाविक है कि आम जनता (वोटर) को सत्ता में आने पर न्याय दिलाने की बात की जाएगी। लेकिन यह बात किस तरीके से की जाएगी, किस राज्य में कौन सा मुद्दा उठाया जाएगा और विकल्प के रूप में कौन-सा गेम चेंजिंग आइडिया सामने रखा जाएगा। 

गौरतलब है कि राहुल की यात्रा के कुछ दिन बाद नीतीश कुमार ( हो सकता है कि तब तक वह इंडिया के संयोजक बना दिए जाएं) भी जातीय जनगणना को लेकर यात्रा पर निकल जाएंगे। तो क्या दोनों इस मुद्दे पर एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा करते नजर आएंगे या फिर दोनों एक दूसरे को इस मसले पर सहारा देते नजर आएंगे जिससे ताकत दुगुनी हो सके। लेकिन चुनाव में सिर्फ एक मुद्दा लेकर उतरा नहीं जा सकता। भाजपा भी हिंदुत्व, राष्ट्रवाद, लाभार्थी, परिवारवाद मुक्त राजनीति, भ्रष्टाचार मुक्त भारत और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद जैसे आधा दर्जन मुद्दों को लेकर चलती है। 

कुछ जानकारों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले के बाद अब अडानी का मुद्दा हाशिए पर चला गया है। क्या राहुल गांधी भी ऐसी ही सोच रखते हैं। राहुल गांधी विचारधारा बनाम विचारधारा पर जोर देते हैं लेकिन महंगाई, बेरोजगारी से जूझ रहे सौ करोड़ वोटर राहत की उम्मीद कर रहे हैं। बात हो रही है किसी आऊट आफ बाक्स आइडिया की। क्या देश भर की 142 करोड़ की आबादी को राइट टू हैल्थ देना ऐसा कोई आइडिया हो सकता है। या फिर वोटर की जेब में सीधे पैसा ट्रांसफर करना वोट मिलने की बेहतर गारंटी है। पिछले विधानसभा चुनावों के नतीजे बताते हैं कि सीधे पैसा देना सीधे जुडऩा है। तो क्या यहां राहुल गांधी 2019 की न्याय योजना को नए सिरे से सामने रख सकते हैं। 

उस समय राहुल गांधी ने देश की सबसे गरीब 20 फीसदी आबादी को छह हजार रुपए महीना (72 हजार रुपए साल) देने का वादा किया था। क्या इस बार इसका विस्तार कर यूनिवर्सल बेसिक इंकम जैसी योजना सामने रखी जा सकती है। कांग्रेस को यह नहीं भूलना चाहिए कि भाजपा का दावा है कि वह देश के 70 करोड़ लोगों के बीच अढ़ाई लाख करोड़ रुपए हर साल बांट रही है। इन 70 करोड़ लाभाॢथयों में कुछ को गैस सिलैंडर लेकर नकद पैसा देना शामिल है। साफ है कि वोटर डिमांडिग होता जा रहा है। हाथ में कैलकुलेटर लेकर फ्लोटिंग वोटर वोट देने जाने लगा है। इस सच्चाई को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। कांग्रेस ने हिमाचल और कर्नाटक का चुनाव इस तरह जीता है। राजस्थान में अशोक गहलोत भले ही चुनाव हार गए हों लेकिन सामाजिक सुरक्षा की उनकी योजनाओं को देश भर में उत्सुकता के साथ देखा जाने लगा है। 

राहुल गांधी कहते हैं कि युवा बेरोजगार हैं दिन में 7 घंटे मोबाइल पर लगे रहते हैं क्योंकि काम नहीं है। क्या गिग वर्करों को लेकर देश भर में कोई कानून बनाने का वादा किया जा सकता है। गहलोत ने देश में पहली बार गिग वर्कर के लिए कानून बनाया है जिसे भाजपा ने विस्तार दिया है। गिग वर्कर को मोदी की तमाम सामाजिक सुरक्षा योजनाओं से जोड़ दिया है। देश में इस समय 35 करोड़ गिग वर्कर हैं जिनकी तादाद बढऩे की ही संभावना है क्योंकि स्थाई रोजगार मिलना कठिन होता जा रहा है। 

चूंकि यह चुनाव यात्रा है लिहाजा जरूरी है कि यात्रा के दौरान इंडिया एकजुट नजर आए। जहां जहां से यात्रा गुजरे वहां वहां इंडिया के धड़ों के नेता रैली में एक साथ नजर आए, राहुल के साथ पैदल चलते नजर आए। क्या कांग्रेस ने न्याय यात्रा का मार्ग तय करने से पहले साथी दलों से भी बात की है। अगर नहीं तो या गंभीर चूक है। 6200 किलोमीटर की यात्रा बस से भी होगी लिहाजा तय है कि जनता से संपर्क का पहली यात्रा के मुकाबले कम ही मौका मिल सकेगा। 

इसकी भरपाई भी बड़ी सभाएं करके की जा सकती है। सबसे ज्यादा समय यूपी में बिताया जाएगा। जाहिर है कि कांग्रेस अपनी प्राथमिकताओं को तय कर रही है। 27 दिन यू.पी. में रहने के दौरान देश को अखिलेश, मायावती, जयंत चौधरी एक साथ खड़े दिखाई दे सकते हैं। 27 दिन यू.पी. में बिताने के बाद अगर गठबंधन यू.पी. में 27 लोकसभा सीटें जीतने में भी कामयाब होता है तो यह भाजपा पर भारी पड़ सकता है। 

राहुल गांधी की यात्रा शुरू होने से पहले ही मल्लिकार्जुन खडग़े ने उनका काम कुछ आसान कर दिया है। बताया जा रहा है कि कांग्रेस करीब 250 सीटों पर ही पूरा जोर देगी। पिछली बार 421 सीटों पर कांग्रेस ने चुनाव लड़ा था और 52 सीटें जीती थी। साफ है कि कांग्रेस सहयोगी दलों के साथ सीट शेयरिंग के मामले में पूरी उदारता दिखाना चाहती है। राहुल गांधी भी ऐसे कुछ संकेत पिछले दिनों दे चुके थे। लेकिन राजनीति में गठबंधन का गणित ही मायने नहीं रखता है। 

कैमिस्ट्री भी जरूरी होती है। जानकारों का कहना है कि राहुल गांधी को अपनी यात्रा के दौरान इंडिया गठबंधन की कैमिस्ट्री पर ज्यादा काम करना चाहिए। सिर्फ कागजों पर गुणाभाग करने के बजाय वोट ट्रांसफर पर जोर लगाने की जरूरत है। कुल मिलाकर राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा के पास लोकसभा चुनावों से ठीक पहले इंडिया मोर्चे के  पक्ष में माहौल बनाने का मौका है। क्या इंडिया मोर्चा इस आपदा को अवसर में बदल सकेगा।-विजय विद्रोही     
    

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