अच्छे मानसून से अर्थव्यवस्था में सुकून भरा परिदृश्य

Edited By ,Updated: 26 Jun, 2020 04:07 AM

relaxed scenario in economy due to good monsoon

नि:संदेह कोविड-19 की चुनौतियों के बीच कृषि ही एकमात्र ऐसा क्षेत्र रहा है जिसने अर्थव्यवस्था को ढहने से बचाया है। ऐसे में अब अच्छे मानसून के आगमन से देश की अर्थव्यवस्था में सुकून भरा परिदृश्य उभरकर दिखाई दे रहा है। भारतीय मौसम विभाग और अन्य वैश्विक...

नि:संदेह कोविड-19 की चुनौतियों के बीच कृषि ही एकमात्र ऐसा क्षेत्र रहा है जिसने अर्थव्यवस्था को ढहने से बचाया है। ऐसे में अब अच्छे मानसून के आगमन से देश की अर्थव्यवस्था में सुकून भरा परिदृश्य उभरकर दिखाई दे रहा है। भारतीय मौसम विभाग और अन्य वैश्विक मौसम एजैंसियों ने वर्ष 2020 में बहुत अच्छे मानसून के अनुमान देते हुए कहा है कि मानसून के महीनों में देश में 96 से 100 फीसदी के बीच बारिश हो सकती है। इसी तारतम्य में मानसून देश में जून माह की शुरुआत में सही समय पर दस्तक दे चुका है। 

हमारे देश में अच्छा मानसून आर्थिक-सामाजिक खुशहाली का कारण माना जाता है। अगर देश में मानसून अच्छा रहता है, तो भारतीय अर्थव्यवस्था में चमक आती है और कोई खराब मानसून अर्थव्यवस्था की मुश्किलें बढ़ा देता है। देश में आधे से ज्यादा खेती सिंचाई के लिए बारिश पर ही निर्भर होती है। चावल, मक्का, गन्ना, कपास और सोयाबीन जैसी फसलों के लिए बारिश बेहद जरूरी होती है। यद्यपि हमारे देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में कृषि का योगदान करीब 17 फीसदी है, लेकिन देश के 60 फीसदी लोग खेती पर आश्रित हैं। ग्रामीण अर्थव्यवस्था में कृषि की हिस्सेदारी करीब 50 फीसदी है। 

इस वर्ष 2020 में अच्छे मानसून का महत्व इसलिए भी है क्योंकि कोविड-19 और लॉकडाऊन ने पूरे देश की अर्थव्यवस्था को चरमरा दिया है। ग्रामीण भारत इस समय दोहरी मार झेल रहा है। एक तरफ ग्रामीणों की कमाई प्रभावित हुई है, वहीं दूसरी तरफ शहरों में रहने वाले उनके जो परिजन अपनी कमाई का कुछ भाग गांवों के अपने परिजनों को भेजते थे, वे स्वयं कोविड-19 के बीच अपना रोजगार गंवाकर गांवों में लौट आए हैं। ऐसे में अच्छे मानसून से ऐसे परिवारों की खुशियां भी बढ़ेंगी। निश्चित रूप से अच्छे मानसून और कोविड-19 के बीच किसानों और ग्रामीण भारत के लिए दिए गए आर्थक प्रोत्साहनों के साथ-साथ खरीफ फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एम.एस.पी.) किसानों के लिए लाभप्रद होंगे। पिछले दिनों सरकार ने 17 खरीफ फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एम.एस.पी.) में 2 से 7.5 फीसदी के दायरे में बढ़ौतरी की घोषणा की है। खासतौर से खरीफ की मुख्य फसल धान के लिए 2.89 से 2.92 फीसदी, दलहनों के लिए 2.07 से 5.26 फीसदी तथा बाजरे के लिए 7.5 फीसदी एम.एस.पी. में बढ़ौतरी की गई है। 

यह बात भी महत्वपूर्ण है कि सरकार ने आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत उन्नत कृषि, शीत भंडार गृह, पशुपालन, डेयरी उत्पादन तथा खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों से संबंधित जो घोषणाएं की हैं, उन्हें शीघ्रतापूर्वक कारगर रूप से लागू किया जाना होगा। खासतौर से कृषि सुधार के जो तीन ऐतिहासिक निर्णय लिए गए हैं, उनके क्रियान्वयन के लिए सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी होगी। ज्ञातव्य है कि आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 में संशोधन करने के फैसले से अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेल, आलू और प्याज की कीमतें प्राकृतिक आपदाओं की स्थिति को छोड़कर भंडारण सीमा से स्वतंत्र हो जाएंगी। ऐसे में जब किसान अपनी फसल को तकनीक एवं वितरण नैटवर्क के सहारे देश और दुनिया भर में कहीं भी बेचने की स्थिति में होंगे, तो इससे निश्चित रूप से किसानों को उपज का बेहतर मूल्य मिलेगा। 

इससे जहां एक ओर बंपर फसल होने पर भी फसल की बर्बादी या फसल की कम कीमत मिलने की आशंका नहीं होगी तथा दूसरी ओर फसल के निर्यात की संभावना भी बढ़ेगी। इसी तरह किसानों को अनुबंध पर खेती की अनुमति मिलने से किसान बड़े रिटेल कारोबारियों, थोक विक्रेताओं तथा निर्यातकों के साथ समन्वय करके अधिकतम और लाभप्रद फसल उत्पादित करते हुए दिखाई दे सकेंगे। हम उम्मीद करें कि वर्ष 2020 के अच्छे मानसून का परिदृश्य और कोविड-19 के बीच सरकार द्वारा ग्रामीण अर्थव्यवस्था में नई जान फूंकने के लिए की गई विभिन्न घोषणाओं के कारगर क्रियान्वयन से देश के करोड़ों किसानों के चेहरे पर मुस्कुराहट और ग्रामीण अर्थव्यवस्था में खुशहाली आते हुए दिखाई दे सकेगी।-डा. जयंतीलाल भंडारी
 

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