Edited By ,Updated: 20 Oct, 2019 02:17 AM
जब हम शहीदों के सपनों का भारत बनाने की कल्पना करते हैं तो यह आवश्यक तौर पर श्री गुरु नानक देव जी, गुरु रविदास, स्वामी विवेकानंद, गदरी बाबे, शहीद-ए-आजम भगत सिंह, मदन लाल ढींगरा तथा बाबा साहेब भीमराव अम्बेदकर जैसे महापुरुषों, विचारकों तथा इन्कलाबियों...
जब हम शहीदों के सपनों का भारत बनाने की कल्पना करते हैं तो यह आवश्यक तौर पर श्री गुरु नानक देव जी, गुरु रविदास, स्वामी विवेकानंद, गदरी बाबे, शहीद-ए-आजम भगत सिंह, मदन लाल ढींगरा तथा बाबा साहेब भीमराव अम्बेदकर जैसे महापुरुषों, विचारकों तथा इन्कलाबियों के विचारों तथा उनके कार्यान्वयन के अनुकूल होता है। ऐसा देश, जहां विभिन्न धर्मों, बोलियों, संस्कृतियों तथा जातियों के लोग गले मिल कर एक-दूसरे का सुख मांगते हों, गरीबों तथा अमीरों के बीच अंतर समाप्त हो जाए और किसी से जाति और धर्म के आधार पर कोई जबर-जुल्म न हो।
देश की मानववादी तथा खुद को बलिदान करने वाली ऐतिहासिक परम्पराओं को वर्तमान समय की सहयोगी बनाकर हम एक लोकतांत्रिक, बराबरी आधारित तथा लोगों की आकांक्षाएं पूरी करने वाला समाज बनाने के सक्षम बन सकते हैं। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए स्वतंत्रता आंदोलन तथा स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद जो कुछ सकारात्मक है, उसे सम्भालने की जरूरत है तथा जिन नीतियों ने देश के बड़े हिस्से को कंगाली, भुखमरी, बेकारी तथा अज्ञानता की ओर धकेला है, उसे बदलने की जरूरत है।
विपरीत दिशा में काम कर रही भाजपा
अफसोस इस बात का है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर.एस.एस.) तथा उसकी विचारधारा के अंतर्गत काम कर रही भाजपा सरकार गत साढ़े 5 वर्षों से ठीक इसकी विपरीत दिशा में काम कर रही है। बेशक दुनिया भर के देशों तथा भारतीय लोगों को गुमराह करने के लिए मीडिया के माध्यम से प्रधानमंत्री मोदी तथा संघ नेताओं द्वारा ‘सबका साथ, सबका विकास’ जैसे नारे भी दिए जाते हैं, परंतु हकीकत में वही किया जा रहा है जो संघ अपने घोषणा पत्र में लिख चुका है। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने दशहरे के अवसर पर अपने भाषण में सब कुछ स्पष्ट कर दिया।
संघ प्रमुख कहते हैं कि सभी भारतीय ‘हिन्दू’ हैं, इसलिए भारत एक ‘हिन्दू राष्ट्र’ है। यदि देखा जाए तो गत 72 सालों में भारतीयों ने अपनी मर्जी से जिन सरकारों का चुनाव किया है, उनमें अधिकतर हिन्दू धर्म से संबंध रखने वाले ही प्रधानमंत्री व उनके सहयोगी मंत्री रहे हैं। इसलिए हिन्दू धर्म के प्रति राजनीतिक, आर्थिक तथा सामाजिक क्षेत्र में किसी किस्म के भेदभाव का इल्जाम तो संघ प्रमुख लगा नहीं सकते। हां, उनको सरकारी तंत्र में दूसरे धर्मों जैसे मुस्लिम, ईसाई, सिख या किसी भी धर्म को न मानने वाले नास्तिकों की भागीदारी जरूर खटकती है।
उनकी इच्छानुसार जो काम मोदी सरकार के कार्यकाल में हो रहा है, अर्थात धार्मिक अल्पसंख्यकों से संबंधित लोगों, दलितों व महिलाओं पर हमले तथा अंधराष्ट्रवाद, असहनशीलता और साम्प्रदायिक नफरत का प्रसार इत्यादि, यह काम इस मात्रा में 1947 से ही शुरू क्यों नहीं किया गया? स्वतंत्रता के बाद भारत ने जितने भी युद्धों का सामना किया है, उनमें देश के बहादुर सैनिकों तथा आम लोगों ने अपनी देशभक्ति तथा कुर्बानी की भावना का पूरा-पूरा प्रकटावा किया है। सरकारें बदलने से देश की तीनों सेनाओं तथा आम लोगों की देश के लिए वफादारी में किसी किस्म की कोई कमी नहीं आई। आतंकवाद के दौर में सभी पंजाबियों ने मिलकर आतंकवादियों का डट कर मुकाबला किया। मगर मोदी सरकार ने संघ की संगठित प्रचार मशीनरी, मीडिया तथा सरकारी साधनों के माध्यम से यह प्रचार करने का प्रयास किया है कि मोदी शासन से पूर्व देश किसी भी पक्ष से न तो सुरक्षित था और न ही लोगों के मनों में देशभक्ति का कोई दीप ही जलता था। इससे बड़ा झूठ तथा गुनाह और क्या हो सकता है?
हितों का टकराव
धर्म कभी भी किसी देश की एकता व मजबूती का केन्द्रबिन्दू नहीं हो सकता। ईसाई तथा मुस्लिम धर्म से संबंधित लोगों की आबादी वाले देशों के हित एक-दूसरे से टकराते रहते हैं और कई बार इसमें युद्धों की आग भी भड़की है। मुस्लिम धर्म पर आधारित पाकिस्तान अपना अस्तित्व नहीं बचा सका और आज यह दो देशों, पाकिस्तान व बंगलादेश में विभाजित हो गया है। आगे भी इसके और टुकड़े होने की सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता।
इस तथ्य के आधार पर कहा जा सकता है कि संघ की कल्पना वाला ‘हिन्दू राष्ट्र’ भारत को कदाचित एक नहीं रख सकता। इसकी खूबसूरत भिन्नताओं में ही इसकी मजबूती और शान बनी हुई है। बहुत से अल्पसंख्यक धार्मिक सम्प्रदायों तथा जातियों के बगैर हिन्दू धर्म के अनुयायियों की भी अनेक परतें हैं। उत्तरी तथा दक्षिणी, पूर्वी व पश्चिमी भागों में बस रहे हिन्दू बहुत से धार्मिक, सामाजिक व सांस्कृतिक अलगावों में बंटे हुए हैं।
देश के लोगों, विशेषकर संघ तथा मोदी सरकार के शुभचिंतकों को जरूर उपरोक्त तथ्यों पर विचार करने की जरूरत है। देश के प्रमुख बुद्धिजीवियों तथा अन्य बहुत से राजनीतिक दलों द्वारा ‘भीड़तंत्र’ के माध्यम से निर्दोष लोगों (खासकर मुसलमानों तथा दलितों) की हो रही निधड़क हत्याओं बारे गहन ङ्क्षचता का प्रकटावा किया गया है। मगर मोहन भागवत ने ‘लिंचिंग’ शब्द के ‘पश्चिमी’ (अर्थात गैर-भारतीय) होने का तर्क देकर ङ्क्षहसक भीड़ द्वारा की जा रही ऐसी हत्याओं को एक तरह से सही ठहराने का प्रयास किया है। अफसोस, किसी शब्द के विदेशी होने के नाते संघ प्रमुख द्वारा बेकसूर इंसानों की हत्या को जायज ठहराया जा रहा है। आर.एस.एस. के ‘चाल-चरित्र’ को समझने के लिए उपरोक्त बयान काफी है।
भागवत के विचार
मोहन भागवत के विचारों के अनुसार हमें देश में चल रही आर्थिक मंदी का जिक्र नहीं करना चाहिए, जिसके परिणामस्वरूप लाखों लोग नौकरियां गंवा रहे हैं तथा पहले ही बेकार लोगों को रोजगार मिलने का सपना बिल्कुल चकनाचूर हो गया है। इसी आर्थिक मंदी का असर कृषि संकट, कई प्रांतों में आधे से अधिक बच्चों को अनीमिया जैसे रोगों तथा छोटे दुकानदारों व व्यापारियों की आर्थिक तबाही में देखा जा सकता है। क्योंकि इन सबका जिक्र करने से देश की ‘बदनामी’ होती है, इसलिए संघ प्रमुख के निर्देशों के अनुसार ‘मोदी सरकार’ के सारे कदमों को अत्यंत सराहा जाना चाहिए, जो देश में वित्तीय मंदी के लिए सीधे रूप में जिम्मेदार हैं।
भागवत आगे फरमाते हैं कि ‘आर्थिक मंदी’ किसी देश के सकल घरेलू उत्पादन (जी.डी.पी.) के शून्य से नीचे जाने से शुरू होती है, क्योंकि अब हम जी.डी.पी. की 5 प्रतिशत वृद्धि की दर पर खड़े हैं, इसलिए ‘सब अच्छा’ है। गत 45 वर्षों में बेरोजगारी का सर्वोच्च स्तर, कर्ज के बोझ तले दबे लाखों मजदूरों-किसानों द्वारा की जा रही आत्महत्याएं, शिक्षा तथा स्वास्थ्य सुविधाओं का आम आदमी की पहुंच से बाहर होना इत्यादि सब कुछ भारत की ‘महानता तथा मजबूती’ को दर्शाता है... संघ प्रमुख का अर्थशास्त्र यही कहता है। मगर साथ ही संघ प्रमुख उस आर्थिक व्यवस्था, पूंजीवाद को पूरी तरह से कायम रखने के हक में हैं, जिसने भारतीय लोगों की सभी मुसीबतों को जन्म दिया है। वामपंथी ताकतें इसी कारण संघ के निशाने पर रहती हैं क्योंकि वे पूंजीवाद के खात्मे तथा समाजवादी व्यवस्था (सांझीवालता वाली) कायम करने हेतु प्रयत्नशील हैं।
स्पष्ट है कि जो भी भारतीय समाज में सम्मान योग्य है, उसे बदल कर एक ‘साम्प्रदायिक फासीवादी’ शासन स्थापित करना तथा जो मूल रूप में परिवर्तित करने वाली आर्थिक व्यवस्था है, जिसके जनविरोधी परिणामों का हम सभी भुगतान कर रहे हैं, जिसे पूरी तरह से कायम व सुरक्षित रखना संघ का मूल मंत्र है। सारे देश के लोगों को गुण-दोषों के आधार पर संघ विचारधारा तथा भाजपा सरकार की नीतियों का मंथन करने की जरूरत है। बिना तर्क के अंधविश्वासी होकर किसी सरकार या संस्था से जुड़े रहना न तो न्यायसंगत है और न ही वास्तविक देशभक्ति।-मंगत राम पासला