धार्मिक कट्टरता चाहे किसी भी रंग की हो, ठीक नहीं

Edited By Updated: 27 Apr, 2025 05:35 AM

religious fanaticism of any colour is not right

धर्म के नाम पर फैलाई जा रही साम्प्रदायिक नफरत का तूफान भारत की सभी गर्व करने योग्य परम्पराओं की तबाही करती जा रही है। अल्पसंख्यक आबादी, विशेष तौर पर मुस्लिम भाईचारे के बारे में प्रचारित की जा रही झूठी और मनगढ़ंत कहानियों का बाजार गर्म है। इन भड़काऊ...

धर्म के नाम पर फैलाई जा रही साम्प्रदायिक नफरत का तूफान भारत की सभी गर्व करने योग्य परम्पराओं की तबाही करती जा रही है। अल्पसंख्यक आबादी, विशेष तौर पर मुस्लिम भाईचारे के बारे में प्रचारित की जा रही झूठी और मनगढ़ंत कहानियों का बाजार गर्म है। इन भड़काऊ घोषणाओं और बयानबाजी पर कार्रवाइयां होने से ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे भारत के भीतर कोई बड़ा धर्म युद्ध लड़ा जा रहा है। अब तो इस तथ्य की पुष्टि भाजपा सांसद निशीकांत दुबे ने भी अपने बयान में कर दी है। बेशक इसका ठीकरा शीर्ष अदालत के माननीय मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना के सिर पर फोड़ा है। हिंदू धर्म के नाम पर विहिप नेता प्रवीण तोगडिय़ा ने देश में इसराईल जैसी व्यवस्था (जियोनिज्म) जिसके माध्यम से मुसलमानों और अल्पसंख्यक तथा विचारधारक विरोधियों का मुकम्मल तौर पर सफाया किया जा सके, लागू करने की वकालत कर दी है। 

विश्व के अंदर किसी भी धर्म, पंथ या सामाजिक-राजनीतिक लहर के उदय का संबंध उस दौर की ठोस आर्थिक-सामाजिक और राजनीतिक परिस्थितियों के साथ जुड़ा होता है। जनसाधारण को खत्म करने वाली लोकविरोधी नीतियों के कारण दरपेश मुश्किलों से छुटकारा हासिल करने के लिए किसी धर्म या पंथ का निर्माण किया जाता है। इसके बावजूद पीड़ित जनता आहिस्ता-आहिस्ता हर दौर की नई प्रगतिशील धारा के साथ जुडऩी शुरू हो जाती है। कार्ल माक्र्स सहित विश्व भर के दार्शनिकों ने सामाजिक विकास के अंदर धर्म की ओर से निभाई जा रही इस भूमिका को बाखूबी अंकित किया है। परन्तु मानव इतिहास इस तथ्य का गवाह भी है कि जैसे-जैसे प्रक्रिया तेज होती है वैसे ही समय के शासक, उनके हिमायती और सत्ता के साथ जुड़े स्वार्थी तत्व, लोगों की ओर से अपनाए जा रहे हर नए धर्म के बीच वाले मानवीय तत्वों को गिराने के लिए इस नई निर्मित लहर को जुर्म के साथ दबाने का प्रयास करते हैं। 

भारत के अंदर भी वर्तमान समय में कई धर्मों की स्थिति नाजुक बनी हुई है। ऐसे धर्मों को मानने वालों पर इनसे संबंधित आलीशान धार्मिक स्थानों की गिनती में अनगिनत बढ़ौतरी हो रही है। मगर वे सारी स्वस्थ और मानवीय कदरें और कीमतें जिनका समर्थन इन धर्मों का नेतृत्व करने वाले महापुरुषों और अन्य विद्वानों ने दिया था, विलुप्त होती जा रही है। यही कारण है कि किसी भी धार्मिक नेता या धार्मिक स्थान से ऐसी आवाज कम ही सुनाई पड़ती है कि जो भी व्यक्ति धर्म के नाम पर अन्य धर्मों के विरुद्ध नफरत फैलाता है या कोई विवाद उत्पन्न करने का प्रयत्न करता है, उसके साथ उनके धर्म का कोई संबंध नहीं है। 

हिंदू धर्म के ज्यादातर वर्तमान संतों-महंतों और धर्म के स्वयं-भू ठेकेदारों ने इस धर्म की मानवीय कल्याण की ऊंची और साफ परम्पराओं पर विभिन्न धर्मों के मानने वाले लोगों के बीच प्रेम तथा सद्भावना मजबूत करने की महान शिक्षाओं को दर-किनार कर आम जनता को फिर से उसी अंधकारमय युग की ओर धकेलने की मुहिम छेड़ रखी है, जिसे हम सदियों पहले अलविदा कह आए थे। वैज्ञानिक सोच वाले आधुनिक युग के अंदर हिंदू धर्म का बोलबाला कायम करने के पर्दे के नीचे कुछ स्वार्थी लोगों ने उन्हें तर्कहीन बनाकर विज्ञान विरोधी रास्तों पर चला दिया है। 

यह तरीका अत्यंत शर्मनाक और दुखदायी है। पिछड़े विचारों का ऐसा प्रचार-प्रसार हिंदुओं की विशाल बहुगिनती के हितों के साथ उसी तरह का खिलवाड़ है जैसा पाकिस्तान और अफगानिस्तान में वहां के मुस्लिम कट्टरपंथियों ने आम मुसलमान आबादी के हितों के साथ किया है। विशाल और सहनशीलता जैसे विचारों से लबरेज हिंदू धर्म के अनुयायियों को दूसरे धर्म के पैरोकारों, विशेषकर मुसलमानों और ईसाइयों के धार्मिक स्थल गिराने, इनके धार्मिक समागमों में खलल डालने और बिना किसी ठोस सबूत के प्रत्येक मुसलमान, ईसाई या राजनीतिक विचारधारक विरोधी के माथे पर ‘देशद्रोही’ का तगमा टांगने का अधिकार देना किस धर्म ग्रंथ में लिखा है। शीर्ष अदालत की ओर से धर्म निरपेक्षता और लोकतांत्रिक प्रणाली के हक में किए जाने वाले फैसलों पर टिप्पणियों का जैसे आर.एस.एस. और भाजपा के नेताओं की ओर से मजाक उड़ाया जाता है। उससे यह स्पष्ट होता है कि संघ परिवार के भारतीय संविधान और अदालतों के प्रति सत्कार केवल दिखावा है। इस संविधान विरोधी मुहिम में अब तो  देश के उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ भी कूद पड़े हैं।

मुसलमानों के बीच कई धार्मिक नेता अपने स्वार्थ के लिए भारतीय संविधान की खूबसूरत धाराओं की बजाय ‘शरियत’ की पालना करनी और करवानी ज्यादा लाजिमी समझते हैं। यह देखना काफी तकलीफदेय है कि मुस्लिम भाईचारे से संबंधित काफी लोग आज भी तर्क-वितर्क और संविधान-कानून की व्यवस्थाओं के मुकाबले कट्टरपंथी मुल्लाओं के फतवों को ज्यादा तरजीह देते हैं। पश्चिम बंगाल में उठे साम्प्रदायिक तनाव के इस अंधेरे में एक रोशनी जगाने वाली घटना का घटना भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। यहां के मालदा जिले के किसी स्कूल में तीसरी श्रेणी में पढऩे वाले 2 बच्चे सुलेमान शेख और संदीप साहा एक प्लेट में ही खाना खाते और मुस्कुराते नजर आए हैं। ऐसी है हमारी महान गंगा-जमुनी तहजीब की खूबसूरती। विभिन्न धर्मों के मानने वाले करोड़ों लोगों को भी अपने-अपने धार्मिक विश्वासों पर कायम रहते हुए धर्म की मानवीय शिक्षाओं और लोकहित रिवायतों की रक्षा करने के लिए अपने बनते फर्ज की अदायगी करनी होगी। धार्मिक कट्टरता बेशक किसी भी रंग की हो अंत   में समस्त मानवता के विनाश से ही खत्म होती है।-मंगत राम पासला

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