सिद्धू के लिए अब ‘कम ही विकल्प’ बचे हैं

Edited By ,Updated: 18 Jul, 2019 02:28 AM

sidhu is now the only  few options  left

ऐसा लगता है कि क्रिकेटर से राजनीतिज्ञ बने नवजोत सिंह सिद्धू, जिन्हें समाचारपत्रों की सुॢखयों में बने रहने की आदत है, मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र के साथ अपने नवीनतम झगड़े में अपनी हद से कहीं ज्यादा ही आगे निकल गए। ऊर्जा मंत्री के तौर पर अपना नया...

ऐसा लगता है कि क्रिकेटर से राजनीतिज्ञ बने नवजोत सिंह सिद्धू, जिन्हें समाचारपत्रों की सुर्खियों में बने रहने की आदत है, मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र के साथ अपने नवीनतम झगड़े में अपनी हद से कहीं ज्यादा ही आगे निकल गए। 

ऊर्जा मंत्री के तौर पर अपना नया पदभार नहीं सम्भालने पर अड़े रह कर तथा अपने पुराने शहरी एवं स्थानीय निकाय मंत्रालय को बनाए रखने के लिए मुख्यमंत्री पर दबाव बनाने हेतु पार्टी की केन्द्रीय उच्चकमान को प्रभावित करने के लिए अपना बेहतरीन प्रयास करके नवजोत सिंह सिद्धू ने अपने तथा कांग्रेस के बीच पुलों को जला दिया है। अनुशासनहीनता का एक अन्य उदाहरण देते हुए उन्होंने मंत्रिमंडल से अपना इस्तीफा मुख्यमंत्री को भेजने की बजाय कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को भेज दिया। स्वाभाविक है कि वह राहुल गांधी तथा अन्य वरिष्ठ नेताओं के माध्यम से मुख्यमंत्री पर दबाव बनाना चाहते थे। 

समझौते के लिए राहुल गांधी तथा अन्यों द्वारा किए गए प्रयासों के दौरान कैप्टन अमरेन्द्र सिंह अपने स्टैंड पर टिके रहे लेकिन नवजोत सिंह सिद्धू को बचाने के लिए बहुत कम विकल्प बचे थे, जो एक कुशल मंत्री की बजाय एक निंदक के तौर पर अधिक जाने जाते हैं। कांग्रेस उच्चकमान का सिद्धू की ब्लैकमेङ्क्षलग के सामने झुकने से निश्चित तौर पर एक गलत संदेश जाता। कोई भी सरकार कार्य नहीं कर सकती जहां राज्यों के मुद्दों को सुलझाने के लिए मंत्री केन्द्रीय नेताओं के पास भागते हों। यदि सिद्धू परेशान थे तो उन्हें मुख्यमंत्री से बात करनी और उन्हें अपना इस्तीफा सौंपना चाहिए था। 

अनुकूल प्रतिक्रिया का इंतजार था
मुख्यमंत्री को सूचित किए बिना पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी को इस्तीफा सौंपना और फिर किसी से सम्पर्क नहीं करने से सिद्धू का कोई भला नहीं होगा। यह स्पष्ट है कि अनुकूल प्रतिक्रिया के लिए वह समय बिता रहे थे। राहुल गांधी के अध्यक्ष पद को लेकर अनिश्चितता के चलते, जिन्होंने पद से त्यागपत्र दे दिया है और कैप्टन अमरेन्द्र सिंह, जिनकी पार्टी में सुनी जाती है, की प्रतिष्ठित स्थिति को देखते हुए सिद्धू के लिए खुद को बचाने के बहुत कम अवसर थे। 

इसके साथ ही पंजाब में भी पार्टी नेताओं द्वारा कभी भी उनका स्वागत नहीं किया गया क्योंकि उन्हें केन्द्र द्वारा थोपा गया समझा जाता था। सिद्धू खुद को कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के विकल्प के तौर पर पेश करने का प्रयास कर रहे थे लेकिन सफलता नहीं मिली। मनप्रीत सिंह बादल, प्रताप सिंह बाजवा तथा सुनील जाखड़ जैसे मुख्यमंत्री पद के अन्य आकांक्षावान भी केन्द्रीय नेतृत्व द्वारा सिद्धू के समर्थन का विरोध कर रहे थे। यहां तक कि कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने भी समय-समय पर अपनी नाखुशी जाहिर की और अंतत: उनका मंत्रालय बदल दिया। लोकसभा चुनावों में कुछ सीटें हारने को लेकर हाल ही में दोनों एक-दूसरे पर दोषारोपण में व्यस्त थे। निश्चित तौर पर ऐसे संबंध सिद्धू के लम्बे समय तक पार्टी में रहने के अनुकूल नहीं थे। 

विधायकों से करीबी नहीं
यहां महत्वपूर्ण है कि कोई भी, यहां तक कि एक-दो विधायक भी उनसे करीबी के लिए नहीं जाने जाते। हालांकि पूर्व भारतीय हाकी कप्तान परगट सिंह उनके समर्थन में आए। यह भी जानना महत्वपूर्ण है कि उन्होंने अपना इस्तीफा मंत्रिमंडल से भेजा है न कि पार्टी से। यदि वह पार्टी छोड़ते हैं तो अयोग्य घोषित हो जाएंगे और उन्हें फिर से चुनाव का सामना करना पड़ेगा। 

जहां तक भारतीय जनता पार्टी का संबंध है तो वह पहले से ही परित्यक्त हैं। उन्होंने अमृतसर की बजाय किसी भी अन्य सीट से चुनाव लडऩे का पार्टी का प्रस्ताव ठुकरा दिया था और इसके कड़े आलोचक रहे हैं। उन्होंने शिरोमणि अकाली दल के साथ भी तलवारें खींच रखी हैं, जो अकाली नेताओं, विशेषकर बिक्रम सिंह मजीठिया के साथ उनके झगड़े के कारण उन पर हमले करता रहा है। उन्होंने कुछ समय के लिए आम आदमी पार्टी पर भी डोरे डाले और इसके सर्वेसर्वा अरविन्द केजरीवाल के साथ मिलकर उन्हें पार्टी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर पेश करने की इच्छा जताई। ऐसा कोई आश्वासन न मिलने के बाद वह कांग्रेस में शामिल हो गए। इसलिए ‘आप’ में उनका स्वागत होने के बहुत कम अवसर हैं जो खुद पंजाब में बुरी स्थिति में है। 

कुछ राजनीतिक वर्गों का समर्थन
इससे सिद्धू को आम आदमी पार्टी से अलग हुए समूहों के एक वर्ग का ही समर्थन रह जाता है, जिनमें सुखपाल सिंह खैहरा नीत पंजाब एकता पार्टी तथा बैंस बंधुओं की लोक इंसाफ पार्टी शामिल हैं। ‘आप’ के विखंडित होने से उत्पन्न राजनीतिक शून्य के बाद इनका कुछ छोटे क्षेत्रों पर सांझा प्रभाव है। यदि वह कांग्रेस में रहने और अपने अवसर की प्रतीक्षा नहीं करते तो सिद्धू के लिए सम्भवत: यही एक विकल्प है। 

हालांकि एक क्रिकेटर और फिर एक टैलीविजन कॉमेडी शो के जज के तौर पर अपनी लोकप्रियता तथा वाकपटुता के कारण भीड़ को आकर्षित करने की अपनी क्षमता के बावजूद उन्हें जमीनी स्तर पर बहुत कम समर्थन प्राप्त है। यदि वह राज्य की राजनीति में कोई छाप छोडऩा चाहते हैं तो उन्हें एक मजबूत राजनीतिक आधार बनाने तथा अन्य नेताओं को साथ लेकर चलने के लिए दोगुनी मेहनत से काम करना होगा।-विपिन पब्बी

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