Edited By ,Updated: 03 Jan, 2024 06:24 AM
जंगल में राज को लेकर बाघ-बघेरों में जंग छिड़ी हुई है। जंग भी ऐसी कि जिसकी कीमत जान देकर चुकानी पड़ रही है। जिस गति से जंगलों में बाघ-बघेरों का कुनबा बढ़ता जा रहा है, उसे देखकर लगता है कि आने वाले वर्षों में वन्यजीवों के बीच संघर्ष कम नहीं होने वाला।
जंगल में राज को लेकर बाघ-बघेरों में जंग छिड़ी हुई है। जंग भी ऐसी कि जिसकी कीमत जान देकर चुकानी पड़ रही है। जिस गति से जंगलों में बाघ-बघेरों का कुनबा बढ़ता जा रहा है, उसे देखकर लगता है कि आने वाले वर्षों में वन्यजीवों के बीच संघर्ष कम नहीं होने वाला। मौजूदा हालात में ऐसा लगता है कि बढ़ते कुनबे को रहने के लिए जंगल छोटे पड़ रहे हैं। टाइगर स्टेट मध्य प्रदेश में इस साल के अंत तक 38 बाघों की मौत चौंकाने वाली है। जबकि इसी अवधि में देश भर में यह आंकड़ा 168 तक जा पहुंचा है।
इन मौतों के पीछे का कारण बाघों की टैरिटोरियल फाइट ही है। दुनिया के सर्वाधिक बाघों वाले देश में अब बाघों का बढ़ता कुनबा वन्यजीव प्रेमियों से लेकर सरकार और समाज के लिए चुनौती बनता जा रहा है। जंगलों में पहले से ही मानवीय दखल और जीवों के प्रति संवेदनहीनता भी कोढ़ में खाज के हालात पैदा करने वाला है।
बांधवगढ़ में सर्वाधिक बाघों का टूटा दम : मध्य प्रदेश में बाघों के सर्वाधिक घनत्व के लिए पहचान रखने वाले बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में सबसे ज्यादा 11 बाघों की मौत हुई। कान्हा टाइगर रिजर्व में 8, पन्ना टाइगर रिजर्व में 5, सतपुड़ा में 2 और पेंच में 1 बाघ की मौत हुई। गौरतलब है कि वर्ष 2022 में 121 बाघों की मौत के मामले सामने आए थे, जबकि 2021 में 127 बाघों की मौत हुई थी।
रणथम्भौर-सरिस्का भी सुर्खियों में : राजस्थान के रणथम्भौर नैशनल पार्क, सरिस्का टाइगर रिजर्व और राजधानी जयपुर के झालाना लैपर्ड रिजर्व में इन दिनों बाघ-बघेरों के बीच भी खूनी संघर्ष चल रहा है। यहां अपना वर्चस्व जमाने के लिए कोई भाई से लड़ रहा है तो कहीं बहनों और मां-बेटी के बीच संघर्ष चल रहा है। वन्यजीव विशेषज्ञों की मानें तो ये हालात अभी थमने वाले नहीं हैं। इसका कारण प्रदेश में इनका आवास निरंतर सिकुड़ते जाना है।
समीप के जंगलों में ढूंढ रहे ठिकाना : करीब 1213 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले सरिस्का टाइगर रिजर्व में जंगली क्षेत्र बड़ा होने से बाघ-बघेरों में टकराव की स्थिति कम ही है, फिर भी वे यहां से आसपास के जंगलों में अपना वर्चस्व स्थापित करने को आतुर रहते हैं। जयपुर के समीप करीब 20 वर्ग किलोमीटर में फैले झालाना लैपर्ड रिजर्व में वर्तमान में 40 से ज्यादा बघेरों का आवास है। इनमें करीब 15 युवा बघेरे अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए समीप के जंगलों में घूमते देखे जा रहे हैं।
मानव आबादी तक बाघों की पहुंच: यहां आसपास के गांवों, यहां तक कि नैशनल पार्क से लगते बड़े होटलों तक टाइगर्स का मूवमैंट आमतौर पर होता रहता है। बाघ के हमले में जंगल में लोगों की जान भी चली जाती है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर जंगल छोड़कर वन्यजीव आए दिन गांव, कस्बे, ढाणी अथवा शहरों की इंसानी बस्तियों में क्यों घुस रहे हैं? इसका जवाब भी सीधा सा यही रहने वाला है कि जिस गति से जंगलों में इंसानों का दखल बढ़ता जा रहा है, उससे ऐसी घटनाओं मेें इजाफा स्वाभाविक है।
देश में 13,000 से अधिक तेंदुए : वन्यजीवों से संबंधित आंकड़ों के अनुसार देश में तेंदुआ परिवार का कुनबा 13,000 से अधिक है। राजस्थान में तेंदुओं की आबादी करीब 650 आंकी गई है। प्रदेश में 10 से अधिक तेंदुआ संरक्षित क्षेत्र हैं। इनमें से कई संरक्षित क्षेत्रों में लैपर्ड सफारी भी है। राजधानी जयपुर देश का एकमात्र ऐसा शहर है, जहां तीन लैपर्ड सफारी हैं। जिस प्रदेश में तेंदुए के संरक्षण के लिए इतनी कवायद चल रही है, वहां तेंदुओं का बस्ती में पहुंचकर लोगों पर हमला करना बहुत ही चिंता पैदा करने वाला है।
वन्यजीवों और इंसानों के बीच होने वाली भिड़ंत टालने के लिए वन्यजीवों को उनके अनुरूप प्राकृतिक माहौल उपलब्ध करवाने के लिए हर संभव प्रयास किए जाने जरूरी हैं। इस दिशा में जंगल और आबादी क्षेत्र की न्यूनतम दूरी तय किए जाने, जंगल में बसी आबादी को अन्यत्र बसाने, जंगलों में अवैध रूप से खनन और पेड़ों की कटाई पर स्थायी रूप से रोक लगाने सहित वन्यजीवों के लिए जंगल के भीतर ही पर्याप्त भोजन व पानी का प्रबंध किए जाने की जरूरत है। उपरोक्त में सबसे अहम, जंगलों में अवैध खनन और अन्य गतिविधियों पर सख्ती से रोक लगाने के लिए जनप्रतिनिधियों को इस पर ईमानदारी से गौर करने और दलगत राजनीति से ऊपर उठकर प्रयास करने की भी खासी जरूरत है।-हरिओम शर्मा