फिर इंतजार है सबसे बड़े लोकतंत्र का मूड जानने का

Edited By ,Updated: 01 Apr, 2024 05:14 AM

then wait to know the mood of the biggest democracy

यूं तो राजनीतिक पंडित भारत के हर चुनाव को कभी अलग, कभी खास, कभी लिटमस  टैस्ट तो कभी राजनीति की दिशा और दशा बदलने वाला बतलाते हैं। लेकिन 2024 के आम चुनाव भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में सबसे अलग साबित होंगे।

यूं तो राजनीतिक पंडित भारत के हर चुनाव को कभी अलग, कभी खास, कभी लिटमस  टैस्ट तो कभी राजनीति की दिशा और दशा बदलने वाला बतलाते हैं। लेकिन 2024 के आम चुनाव भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में सबसे अलग साबित होंगे। कम से कम थोक में दल-बदल के चलते लंबे वक्त तक याद रहेंगे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ का नारा सच होने लगा क्योंकि लोग कांग्रेस से ऐसे छिटकना शुरू हुए कि पूछिए मत। कब तक छिटकते रहेंगे नहीं पता? पता है तो बस इतना कि भाजपा ने कांग्रेसियों के लिए दरवाजे क्या खोले, भीड़ संभालना मुश्किल हो रहा है। 

हां भाजपा के वह सिपहसालार, वफादार और जमीनी कार्यकत्र्ता असमंजस में होंगे कि नई भीड़ में उनकी हैसियत क्या होगी? दाद देनी होगी कि भाजपा के इतने विशाल संगठन में शीर्ष नेतृत्व के आगे कोई कितना भी बड़ा हो, चूं-चपड़ तक नहीं करता। यही अनुशासन है जिसे न केवल कांग्रेस बल्कि दूसरे राजनीतिक दलों को भी सीखना होगा। भाजपा की यही ताकत उसे दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बनाती है। इससे जुडऩे वालों की संख्या हमेशा नया रिकॉर्ड बनाती दिखती है। चुने हुए जनप्रतिनिधियों जिनमें सांसद से लेकर विधायक, मंत्री, पूर्व मंत्री, पूर्व नौकरशाह और न्यायाधीश तक लाइन लगाकर भाजपा में शामिल हो रहे हैं। देश पहली बार ऐसा दल-बदल देख रहा है। लेकिन राजनीतिक पंडितों में यह गुफ्तगू होने लगी है कि ऐसा आकर्षण भाजपा में कब तक रहेगा? निश्चित रूप से सवाल वाजिब है लेकिन मौजू नहीं। 

थोड़े दिन पहले लगता था कि इस चुनाव को इलैक्टोरल बांड अलग रंग देगा। लेकिन दो-चार दिन के हल्ला के बाद राजनीतिक दलों की इस पर धीमी और थमती चीख-चिल्लाहट बताती है कि हमाम में सब नंगे हैं। इसे मुद्दा बनने से पहले ही भुलाया जाने लगा। यह आम चुनाव पक्ष और विपक्ष की गारंटियों के भरोसे पर होगा। लेकिन मतदाता बेहद खामोश है। पहले चरण का नामांकन हो चुका है। 19 अप्रैल के मतदान को गिने-चुने दिन बचे हैं। 21 राज्यों की 102 सीटों पर मतदान होगा। प्रत्याशी तय हो चुके हैं। इस चरण में सीट शेयरिंग का तूफान या बवाल खास नहीं रहा। अगले चरणों को लेकर जरूर आहटें हैं। कहीं वही साधने के चलते तो पहले चरण का प्रचार रफ्तार नहीं पकड़ पा रहा है? इधर चुनावी रंग से पहले कांग्रेस आयकर विभाग से मिले हालिया नोटिस पर तिलमिलाई हुई है। आरोप है कि अगर समान मापदंडों का उपयोग होता तो भाजपा के टैक्स उल्लंघन पर आयकर विभाग आंखें नहीं मूंदता। उधर देशभर के सैंकड़ों वकील और बार एसोसिएशनों ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखा। 

इस पर प्रधानमंत्री मोदी ने भी कांग्रेस पर जमकर हमला बोला। वकीलों ने चिट्ठी में ध्यान दिलाया कि एक गुट राजनीतिक और पेशेवर दबाव अपना कर न्यायपालिका की अखंडता कमजोर करने की कोशिशें कर रहा है। विपक्ष भाजपा के ‘मेक इन इंडिया’, ‘स्किल इंडिया’ और ‘आत्म निर्भर भारत’ को खोखली नारेबाजी बता 10 सालों में लोगों की नौकरी छोडऩे, छिनने को चिंताजनक बताकर पूछता है कि यदि मौजूदा सरकार के कार्यकाल में बेरोजगारी दर में गिरावट आई है तो उसके आंकड़े क्यों नहीं सार्वजनिक होते? वहीं उपलब्धियों से सराबोर एन.डी.ए. ‘अबकी बार, 400 पार’ के प्रधानमंत्री मोदी के नारे को चरितार्थ करने में जुटा है क्योंकि प्रधानमंत्री 1984-85 के कांग्रेस के 414 सीटों का रिकॉर्ड तोडऩा चाहते हों? भाजपा खुद 370 सीटें जीतने की बात कह कर कहीं न कहीं जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 खत्म करने और राष्ट्रवाद की याद दिला रही है। वहीं एक रोचक तथ्य भी है कि 1957 की चुनी लोकसभा में कांग्रेस को 371 सीटें मिली थीं। पं. नेहरू 16 साल 286 दिन प्रधानमंत्री रहे। शायद मोदी इससे भी बड़ी लकीर खींच रहे हैं जो दिखती भी है। 

चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों में एन.डी.ए. का साफ-साफ दो-तिहाई आंकड़ा छूता दिख रहा है। लेकिन भाजपा अपने दमखम पर सत्तासीन होना चाहती है। क्यों? सबको पता है। सूत्र बताते हैं भाजपा का आंतरिक सर्वे 330 सीटों की जीत बताता है। यह भी बड़ी उपलब्धि होगी। 2019 के चुनाव में 336 सीटों के साथ एन.डी.ए. सबसे बड़ा दल और 282 सीटों के साथ भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनी थी। वहीं संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन यानी यू.पी.ए.59 सीटों पर और कांग्रेस ने 44 सीटों पर जीत हासिल की। तब और अब का काफी वक्त निकल गया है। कल्पनाओं का राममंदिर आज हकीकत है। हिन्दुत्व के मुद्दे हमेशा दबंगई से भाजपा ने आगे रखे। इस पर खुलकर बात की। कांग्रेस का खुलकर न बोलना ही आज बड़ी चुनौती बनकर सामने है। 

दिल्ली में केजरीवाल तो झारखंड में हेमंत सोरेन की ऐन चुनाव के वक्त गिरफ्तारी जरूर मुद्दा होगा। पंजाब में ‘आप’ और कांग्रेस के मौजूदा सांसद का भाजपा में जाने पर जनादेश का मिजाज देखने लायक होगा। हिमाचल में सरकार के बावजूद संकटग्रस्त कांग्रेस अपनों से जूझ रही है। अरुणाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव 2024 में सात भाजपा उम्मीदवारों का निर्विरोध चुना जाना बड़ी शुरूआत है। लेकिन भाजपा को दक्षिण में चुनौतियां तो हैं। कांग्रेस और महागठबंधन को उत्तर, मध्य और शेष भारत में कितना समर्थन मिलेगा यह तो वक्त बताएगा। अब देखने लायक यह होगा कि कश्मीर से कन्याकुमारी और अरुणाचल प्रदेश से गुजरात के बीच अनेकों अनेक विविधताओं से युक्त दुनिया के इस सबसे बड़े लोकतंत्र से 2024 में क्या संदेश निकलेगा?-ऋतुपर्ण दवे
 

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