पद्म पुरस्कारों में सुधार तो हुआ है पर और है जरूरत

Edited By ,Updated: 28 Jan, 2024 05:04 AM

there has been improvement in padma awards but more is needed

वर्ष 2014 के बाद पद्म पुरस्कारों के वितरण को लेकर बड़ा सुधार हुआ है। अब इसके निर्धारण में आम लोगों की सलाह और अनुशंसा भी ली जाती है। अब कोई भी नागरिक अपने नायक की अनुशंसा कर सकता है।

वर्ष 2014 के बाद पद्म पुरस्कारों के वितरण को लेकर बड़ा सुधार हुआ है। अब इसके निर्धारण में आम लोगों की सलाह और अनुशंसा भी ली जाती है। अब कोई भी नागरिक अपने नायक की अनुशंसा कर सकता है। इसके लिए अलग वैबसाइट बनाई गई है। आम लोगों की सलाह से एक बड़ा बदलाव आया है। 

पुरस्कार पाने वालों की सूची में गुमनाम नायकों के नाम भी शामिल हो रहे हैं। पहले स्थिति यह होती थी कि इस सूची में महानगरों और बड़े शहरों के लोगों के नाम ही ज्यादा दिखते थे। पद्म पुरस्कारों को लेकर एक धारणा बन चुकी थी कि ये उन्हीं को मिलते रहे हैं जिनके ड्राइंग रूम काफी बड़े होते हैं। एक दौर ऐसा होता था कि मुंबई और दिल्ली के नायकों को ही ये पद्म पुरस्कार महानायक बनाने का काम करते थे। आधे से ज्यादा पुरस्कार इन 2 मैट्रो में ही निपट जाते थे। फिल्मी दुनिया के नाम आगे होते और ऐसे-वैसे यानी कई सैफ अली खानों को यह पुरस्कार मिल जाते थे। एक दौर तो ऐसा हो गया था कि हमेशा की तरह 25 जनवरी की रात राष्ट्रपति के अभिभाषण के बाद जब सूची जारी होती थी और उसमें नाम खोजने का सिलसिला शुरू होता था तो सिर्फ वे दिल्ली ,मुंबई  से ही आधे नाम होते थे।

फिल्मी दुनिया के नाम बहुतेरे होते और ऐसे-वैसे यानी कई सैफ अली खानों को यह पुरस्कार मिल जाते थे। लेकिन अब एक सकारात्मक परिवर्तन दिखता है। आप इस बार की पद्म पुरस्कारों की सूची को ही देख लीजिए। श्रीनगर के 70 वर्षीय शिल्पकार गुलाम नबी डार को पद्मश्री से नवाजा गया है। वह अखरोट की लकड़ी पर खूबसूरत नक्काशी के लिए जाने जाते हैं। गरीबी में पले-बड़े, इसलिए पिता ने 5वीं कक्षा में ही पढ़ाई छुड़वा कर लकड़ी की नक्काशी के काम में लगा लिया। आज उनकी कला की चमक थाइलैंड, जर्मनी, इराक तक पहुंच गई है। वह 60 साल से यह काम कर रहे हैं, मगर पद्मश्री के लिए अब चुने गए हैं। 

इस साल की पद्मश्री पाने वालों की सूची में 67 साल की पार्बती बरुआ भी हैं। वह देश की पहली महिला हाथी महावत हैं। बेकाबू हाथियों को संभालने में 3 राज्यों की सरकारें इनकी मदद लेती रही हैं। इन्होंने उस पेशे को चुना, जो पूरी तरह पुरुष प्रधान था और इसमें महारत हासिल की। असम के गुवाहाटी की रहने वालीं पार्बती ‘हाथी की परी’ के नाम से भी जानी जाती हैं। वह एशियाई हाथी विशेषज्ञ समूह आई.यू.सी.एन. की भी सदस्य हैं। बी.बी.सी. ने उनके जीवन पर एक डाक्यूमैंट्री भी बनाई थी। कुल मिलाकर इस साल 110 लोगों को पद्मश्री के लिए चुना गया है। इनमें 34 गुमनाम नायक हैं। सिर्फ छठी जमात तक पढ़ीं नारियल अम्मा को भी इस साल का पद्मश्री मिला है। उनका असली नाम के. चेल्लामल है। 69 वर्षीय चेल्लामल दक्षिणी अंडमान में 30 एकड़ पर आर्गेनिक खेती करती हैं। उन्होंने अदरक, अनानास और केले जैसी फसलों के लिए इंटरक्रॉपिंग तकनीक का इस्तेमाल किया, जिसे अन्य किसानों ने भी अपनाया। 

वह पिछले 5 दशक से इस काम में हैं। त्रिपुरा की 63 वर्षीय स्मृति रेखा चकमा एक बुनकर हैं। वह लोइन लूम शॉल बुनती हैं। वह इस काम के लिए महिलाओं को ट्रेङ्क्षनग भी देती हैं और इसके लिए उन्होंने एक संगठन बना रखा है। वह अपने साथियों के साथ जंगल जाती हैं और वहां से पत्ते, जड़ें और बीज इकट्टा करती हैं और इनके रंगों से बुनाई के धागों को रंगती हैं। यह पूरी तरह प्राकृतिक होता है। इस बार पद्म पुरस्कार पाने वालों में 30 महिलाएं हैं। इनमें सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला जज रहीं फातिमा बीबी को मरणोपरांत इस सम्मान के लिए चुना गया है। पिछले 28 साल में 28 हजार महिलाओं को स्वरोजगार दे चुकीं झारखंड की पर्यावरण कार्यकत्र्ता चामी मुर्मू भी पद्मश्री पाने वालों की सूची में हैं। इस बार किसी तीसमार खान पत्रकार को यह पुरस्कार नहीं दिया गया । बल्कि पटना के  उन सुरेंद्र किशोर को दिया गया जो ईमानदारी के पर्याय रहे हैं और न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर की श्रेणी में रहते आए हैं। 

सबको पता है कि पद्म पुरस्कारों की मूलत: 3 श्रेणियां होती हैं। पद्म विभूषण, पद्म भूषण और पद्मश्री। ज्यादातर इन पुरस्कारों के साथ भारत रत्न देने की परम्परा भी रही है और कभी-कभी तो ऐसा भी होता रहा है कि भारत रत्न देने की घोषणा इनके साथ नहीं हुई और उन्हें किसी और मौके पर घोषित किया गया । इस बार भारत रत्न बिहार के मुख्यमंत्री रहे कर्पूरी ठाकुर को दिया गया है। दो बार बिहार के मुख्यमंत्री रहे कर्पूरी ठाकुर का निधन 1988 में हुआ और मृत्यु के 36 साल के उपरांत उन्हें देश का सर्वोच्च सम्मान दिया गया है। बिहार में नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव दोनों ही कर्पूरी ठाकुर की राजनीतिक विरासत पर दावा करते हैं। कर्पूरी ठाकुर का नाम सबको सुहाता है। भारतीय जनता पार्टी को भी और नीतीश कुमार को भी। 

कर्पूरी ठाकुर का नाम और काम विवाद से रहित है। लेकिन उसके राजनीतिक लाभांश भी हैं। कर्पूरी ठाकुर के बेटे रामनाथ ठाकुर नीतीश की पार्टी से राज्यसभा सांसद हैं। 24 जनवरी को कर्पूरी ठाकुर की जन्मशती पर नीतीश कुमार ने पटना में अति पिछड़ा रैली का भी आयोजन किया था। वर्ष 1977 में दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने पर कर्पूरी ठाकर ने मुंगेरीलाल कमीशन  लागू कर राज्य सरकार की नौकरियों में आरक्षण लागू किया था। कुल मिलाकर अब पद्म पुरस्कार देने की व्यवस्था बदल दी गई है। सभी आवेदनों को एक विशेष कमेटी से गुजरना होता है। इसके बाद गृहमंत्री से होते हुए प्रधानमंत्री ही इसके प्रमुख चयनकत्र्ता होते हैं। लेकिन अब भी यह कहना सही नहीं होगा कि सब कुछ साफ-साफ है। यानी सुधार तो हुआ है पर पर्याप्त सुधार की जरूरत है। जिन राजनीतिज्ञों के नाम इस सूची में आए हैं, उससे विवाद हर बार होता है। 

इस बार पद्म विभूषण पाने वालों में पूर्व उप-राष्ट्रपति वैंकेया नायडू और पद्मभूषण पाने वालों में पूर्व केंद्रीय मंत्री राम नाइक, पश्चिम बंगाल के नेता और केंद्रीय मंत्री रहे सत्यव्रत मुखर्जी, केरल के ओ. राजगोपाल जैसे नाम हैं। फिल्मी सितारों में पद्म विभूषण पाने वाले मिथुन चक्रवर्ती भाजपा से अपने खास जुड़ाव के लिए जाने जाते हैं। देखा जाए तो शुरू से ही लोक कार्यों और फिल्मी कलाकारों को दिए जाने वाले नामों पर विवाद होता रहा है। चाहे वह कांग्रेस की सरकार रही हो या फिर भाजपा की। पद्म पुरस्कारों में इनका नाम तमाम सवाल उठाता रहा है। इस बार भी है। 

अब यह चर्चा की जानी भी जरूरी हो गई है कि पद्म सम्मान की इस सूची को कैसे फिल्टर किया जाए ताकि कम से कम विवाद हो। पर इस बार यह जरूर हो गया है कि जिन जमीन से जुड़े लोगों को पद्म सम्मान से सम्मानित किया जा रहा है, उससे पद्म सम्मान सम्मानित हो रहा है और उनके टूटे-फूटे, बिखरे ड्राइंग रूम में किनारे पड़ा पद्म सम्मान भी खूब चमकता दिखाई देगा। यह गर्व और गौरव की बात है।-अकु श्रीवास्तव
 

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